अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, December 16, 2010

क्षणिकाए

‎"ज्यों ही ये दिन............ बीतता है ...
न जाने मुझमे....... ?.
'क्या... 'भरता' है क्या...........'रीतता' है ..."
मेरे भावों के आगे ..हर बार
मेरा अहम् ही... क्यूँ ....... 'जीतता' है
चाहती हूँ जाना उस पार ..पर कुछ तो है
जो मुझे इस पार ........... 'खींचता' है "
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"जेहेन में ख्वाब बन दीये सा,कोई 'जल' रहा है
आहिस्ता आहिस्ता ये दिल 'संभल' रहा है
क्यूँ मेरी तन्हाई को वो ,इतना 'खल' रहा है
दरख़्त सी जिंदगी में बस,यही शाख' संदल'रहा है "
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"उम्र गुजारी 'खुद' को जानने में
फिर भी 'रूह' मेरी अजनबी सी लगती है"
सब कुछ पा लिया इस 'जहाँ' से
फिर भी कहीं कुछ 'कमी' सी लगती है "
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"आज,अपने बच्चो से हूँ बेहद.. खफा'
पढने से ' जी चुराते' हैं.
मै उनसे कहती हूँ देखो ! दीमकों' को ,....
पढना नहीं आता, फिर भी
कर जाते है पूरी की पूरी 'किताब..'सफा' ....:-))

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 ‎"दोस्तों!!
इस जमीं से आजिज़  आके
कभी 'चाँद' पर कदम ना रखना ..
वहां तन्हाई की गहरी खाईयों के सिवा कुछ नहीं
गो की, उसके पास उसका अपना कुछ भी नहीं
वो तो अपने हिस्से की रौशनी भी औरों पर लुटाता  है ".....
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"ऐ "जिंदगी".......
अब भी दिलकश है
तेरा हुस्न' .....मगर...
दिवानो' की कतार में
हम खड़े हैं........
...
सबसे 'आखिर' में "
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"दोस्त" अब ना रहे वो...'तवज्जो' देने वाले .......
फिर भी हर एक शब् ....मुझको आती है "हिचकियाँ ", ....
मेरे "दुश्मनों" से कह दे कोई... इतना याद न किया करें
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Saturday, December 11, 2010

'आभासी संसार'

 ‎"अंतरजाल के जाल में ..फैला
रिश्तों का 'आभासी संसार'
कुछ खट्टे,कुछ मीठे
कुछ झूठे,कुछ सच्चे
कुछ बने जीवन का आधार
कुछ मिले श्रधेय जन
कुछ सच्चे मार्गदर्शक
जिनका ह्रदय से है आभार "
.
"जितना सुलझाना चाहूँ
उतनी ही उलझती जाती हूँ
ऐसा है अंतरजाल का ये आभासी व्यापार
'अधिकार और अपेक्षाओं से लदे
वास्तविक जीवन' .......के रिश्तों से परे
कितना रोचक और विचित्र है,ये'आभासी संसार'


Tuesday, December 7, 2010

"बाबा काशी का रक्ताभिशेक

"बाबा काशी का रक्ताभिशेक ??
उबल पड़ा है 'लहू' मेरा इसे देख
बाबा!! अब खोलो तुम अपना 'तीसरा नेत्र'
"हे माँ गंगे !!अब मात्र पापियों का
तारण करना ही नहीं रहा शेष
अब लाओ अपने में "बडवानल "
जो निर्दोशो का बहा रहे रक्त
हमें चाहिए उनका "ध्वंसावशेष "
~~~स-रोज़~~~

Sunday, December 5, 2010

" उत्प्रेरक क्षणिकाएं

नहीं प्राप्त होता 'लक्ष्य' उसे
जो 'नियत' मार्ग पर रुक जाता है
मारने को 'पत्थर' हर उस स्वान पर
जो उसके ऊपर 'भौंकता' है ....."
"you will never reach your destination if you stop n throw stones at every dog that barks at you..."
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 ‎"यहाँ 'जिंदगी' आसां नहीं किसी की
गर चाहते हो भरना 'दामनों' में ख़ुशी
बजाय जोड़ने के 'दिन'..... जिंदगी में
जोड़ ले बचे 'दिनों' में ......'जिंदगी' "
.
Add Life To Your Days, Not Days To Your Life
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या रब !!!
हमें 'घासों' सी 'खुश-अख्लाकी' अता कर
क्योंके चलती है फिजां में जब तेज़ आंधियां
जड़, से उखड़ जातें है 'बद-अखलाक' 'पेड़'
और बदस्तूर 'जिन्दा' रहते है सब्ज"घास"
'खुश-अख्लाकी' =politeness(सौम्यता )
 
.SIMPLE and HUMBLE like grass,when a wild storm attacks all the big tree get uprooted but the simple grass
 
~~~S-ROZ~~~
 

Wednesday, December 1, 2010

"मन के उदगार"

 ‎"मन की,यही 'आकांक्षा'
बनकर तुम्हारी"सहचरिणी"
प्रीत के पल्लव संचित करूँ
घर आँगन में बसूं !!!!
रहूँ तुम्हारी"अनुगामिनी
मै,सदा !सदा !,...'सर्वदा'.!!...",
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"मेरा 'स्नेह' ,मेरी 'पूजा'
मात्र 'प्राक्कथन' है तुम्हारे लिए
..........
'मन' की 'शंकाएं' जलने लगे जब
मै 'उपलब्ध' हूँ 'हवन' के लिए " 
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"तेरी 'मुक़द्दस यादों' को छिपा लेती हूँ दिल में अपने
'गुनाहों' की तरह
'तन्हाई' की कड़ी धुप में तेरी यादों के साए हैं
पनाहों' की तरह "........
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गर जाने होते के
'मसर्रत' भी लेती है सूद 'महाजन' की तरह
उस रोज़ हम यूँ पुरजोर ना 'हसे' होते "
'मसर्रत' = ख़ुशी 
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"यूँ तो ..तन्हाई के ....ठहरने के...... ठिकाने हैं, बहुत
पर... उसे महफूज़...मेरा ही 'घर '..... लगता है
"यूँ तो... खुश रहने के ..... तरीके हैं बहुत
पर खुश रहने से......जाने क्यूँ.... 'डर'लगता है"
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जो तुमने कही!...... वो भी 'सच 'है
जो हमने कही!......वो भी 'सच' है
दरम्यां हमारे, सिर्फ सच' ही 'सच' है
फिर 'झूठ' कहाँ से ..'दर-पेश' आया"
...
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ओढ़ रखीं है,हमने जिस्मों में 'ऐब की चादर' ऐसे
छुपी हो 'रेत की परतों ' में 'सीपियाँ' जैसे "
"जो मेरे 'ऐब' छुपा दे मै वोही 'चादर' मांगू
जो 'सीपियों' को खुद में समो ले मै वो 'लहर' मांगू
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"कभी कभी ये एहसास होता है के "थम सी गयी है 'जिंदगी',
उस सूखे 'दरख़्त' की मानिंद,जो खड़ी तो है अपनी जगह,
पर ,रेल के हर मुसाफिर को वो भागती नज़र आती है"
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‎"बिना मौसम ... ये ठंडी 'बारिश?
'वाह!! ! शायद 'ओले' भी पड़ेंगे ,
हमारे निकलेंगे 'शाल' पश्मिनों के
फसल बर्बाद!!,खेतिहर क्या करेंगे ?
अगले साल चावल के'दाम' फिर बढ़ेंगे
...धान के बोरे' 'गोदामों' में फिर 'सड़ेंगे'
और बेचारे किसान,भुखमरी से फिर'मरेंगे' 
~~
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‎~~~S -ROZ ~~~

Monday, November 29, 2010

"प्रिय!! आज तुम्हारा जन्मदिन "

प्रिय!! आज तुम्हारा जन्मदिन
क्या दूँ मैं तुम्हे 'उपहार' ?
बहुमूल्य ना सही ,हो सबसे भिन्न
एक क्षण विशेष को कैसे सजा दूं
लगे तुम्हे हर दिन जैसे 'त्यौहार'
तुम्हारे 'ह्रदय' में एक साज़ बजा दूं
 जो बजता रहे,सुमधुर,संबंधों  का,
अदभुद  ,सुर्गम्य ,सरगम  'संसार  '
हमारे 'हृदय' के,पुराने होते रंगों,
को रंग दूँ इन्द्रधनुषी प्यार और विश्वास के
रंगों से जिससे आ जाये संबंधों में नया'निखार'
"तुम्हारे जनम दिन में यही है मेरा 'उपहार "

Friday, November 26, 2010

बेटे !!! मै 'माँ' हूँ .(जीवन की राह में कुछ दूर अभी और चलना है )............

पहली बार जब' तुम' मेरी गोद में आये थे
वो छवि आज भी  आईने की तरह साफ है
दोनों मुट्ठी   भीचें ,आँखे अधखुली सी
गुलाबी होठ, ओह !!देवतुल्य छवि !!!
तभी हमने  तुम्हारा नाम 'देवांश' रखने का सोचा  
मुझे याद है ..तोतली जबान में तुम्हारा कहना
मम्मी "थुनो तो!! प्लीज दोडी  लेलो न !.....(गोदी)
और मटकते हुए मेरे सीने  से चिपट जाते
मेरे गोद की गर्मी  तुम्हे आराम देती थी
दोनों बाहें  गले में डाल तुम ऐसे सोते की
अक्सर मेरी सारी रात एक ही करवट गुजरती
तुम्हारा,आंचल खीच  और गलबाही डाल कर
अपनी जिद मनवाना,मुझे  खूब भाता  था ..
फिर, खिलौनों ,तितलियों और हमजोलियों का 
तुम्हारे जीवन में शामिल होना ....
मेरी ऊँगली छुड़ाकर उनके पीछे भागना  
और फिर सपनो भरा  बस्ता लिए स्कुल जाना
याद है सब!,!!शायद वो पहला कदम था ........
मेरे अंग का मेरे ही अंग से अलग  होने का
किसी हरकत पर मेरा 'डांटना'
तुमपर नागवार गुजरता है ,पर बेटे !!
मै अब केवल "माँ" ही नहीं बलके
एक मार्गदर्शक एक संस्‍कार,एक संवेदना भी हूँ   
धीरे धीर मै तुमसे पीछे होती जा रही हूँ
'जीवन  की  राह'  में साथ  कुछ  दूर और  चलना  है
फिर  तुम्हारे संग और भी कई रिश्ते जुड़ेंगे  
मुझे वो जगह अब धीरे धीरे खाली करनी होगी
मेरी'ममता की छांव'तुम्हारे लिए तब  काफी न होगी
कोई 'खुश लम्स' हमसफ़र के हाथों  नरमी
तुम्हारे 'जीवन' को खुशरंग फूलों सा संजों देगा
मेरा दिल !!! !!शायद तुमको खो देगा
मेरी आँखें तेरा रास्ता तकती रहेंगी
बेटे! मै माँ हूँ!! और 'मेरी किस्मत' 'जुदाई " है ...
 
 

Friday, November 19, 2010

"चंद खयालात "

"चंद खयालात बांटे हैं जो दिल के आपसे ....
वो तो फ़क़त "बोहनी" हैं "
आलम वो हो के,
'कलम' चले कागज़ पे और हर्फ़ उभरे दिलों में ....
मुझे वो 'बाट जोहनी' है"
~~~S-ROZ~~~
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"अब किसी की 'कारगुजारी' बुरी नज़र नहीं आती...'ज़माने' में
   जब से नज़र डाली है  हमने, अपने.... 'दस्ताने' में "
~~~S-ROZ~~~
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"इत्तेफाकन जो हस लिए थे साथ ..............
"चंद  लम्हात की ख़ुशी के  लिए ...............
"बाद उसके इंतकामन उदास रहे ".........
~~~S-ROZ~~~
  
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"हम मगरूर थे  अपने 'मेयार' पे  इस 'क़दर'
औरों की मजबूरियां  न  आयीं कभी  'नज़र'
काश के समय रहते हो जाती इसकी 'खबर'
के, 'पत्थर' को 'पानी' काट देता है, अक्सर"
    ~~~~S-ROZ ~~~~
 
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‎"थाली में जितना हम 'जूठन' छोड़ते हैं
मुला! उतने में ही कितने निबाह करते हैं
जो पुराने कपडे के बदल हम बर्तन खरीदते हैं
उतने में ही कई, ओढ़ते बिछाते,पहिनते हैं "
 "
~~~S-ROZ~~~
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Thursday, November 18, 2010

सियासत-ए-हस्तियाँ

"गर एक चिंगारी उठे तो, तो भभक उठती हैं , सियासत-ए-हस्तियाँ

और टूट कर पानी बरसे ,तो कहते हैं ,देखो! ढह रही हैं बस्तियां "
.
 
अभी हाल ही में दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में जो हादसा हुआ यदि उस अवैध निर्माण को पहले ही रोका गया होता तो इतनी निर्दोष जाने जो गई हैं वो न जातीं ...मेरी .श्रधांजलि है उन्हें............

Wednesday, November 17, 2010

जीवन का गणित "

"गणित,जोड़ घटा गुणा ,भाग
बचपन में स्लेट से लेकर पन्नों तक
गणित के सवाल कठिन लगते थे,
पर मास्टर की छड़ी के डर से हल हो जाते,
.
गणित, अब जीवन का
जोड़+ निज सुख को औरों के सुख से
घटा -दुःख को औरों के दुःख से
गुणा* प्रेम का विश्वास से,
भाग% इर्ष्या का द्वेष से
कोई कठिन काम नहीं पर
हम हल करना ही नहीं चाहते
इस बात से अनभिग्य की
उसकी अदृश्य 'छड़ी' कब चल जाय"

Tuesday, November 16, 2010

"फासला "

"बीते दिनों के गलियारों में,हमारे दरम्यां  फासला  बहुत था
पर तुम्हारे खतों से तुम्हारे दिल की धड़कन सुनाई देती थी
अब बिलकुल करीब हो,पर उस धड़कन का एहसास ही नहीं होता
खता तुम्हारी कोई नहीं ,शायद बाहर  शोर बहुत है आजकल "

Monday, November 15, 2010

'आशियाँ-ए-सुकूं'

" हम 'चाँद' भी खंगाल चुके
'आशियाँ-ए-सुकूं'  की चाहत में....
बेशक वहां 'अमन- ओ-चैन'  बाबस्ता है,
पर तभी तलक जब तलक के .
इन्सां के कदम वहां नहीं हैं  पड़े "

Sunday, November 14, 2010

"ये दिल क्या क्या मांगे है"

"जेहेन में छाया  है उसका ऐसा 'वकार,'
के फरेबी दोस्त वो '''फ़रिश्ते' ' ' सा लागे  है "
 
" बंजर दिल को  'सरसब्ज' किया अश्कों से,
फिर भी ये जालिम दिल 'सहरा' मांगे है "
 
"नहीं देखते लोग अपनी  नीयतों को,
और  शक्ले  देखने को आईना   मांगे है "

Thursday, November 11, 2010

"भावों के जोड़ तोड़"

‎"नाउम्मीद" लोग
अक्सर अपनी 'किस्मत' को रोतें हैं
'उम्मीद' बशर लोग
'कंगाली' में भी "दौलत की फसल" बोते हैं "
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"हम तमाम 'उम्र'
नए नए 'ख्वाब' पलकों पे संजोते हैं
जो 'ख्वाब' होते नहीं पूरे
वो न जाने क्यूँ 'आँखों' में चुभे होते हैं "
 
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‎"रातों को जाग कर,
तेरी यादों के चादर में ,
जड़े थे मैने जो 'सितारे' नायाब"
.
उन्ही सितारों को
'पैबंद' कहकर उसने
दे दिए न जाने कितने 'अज़ाब'
.
अज़ाब = पीड़ा, सन्ताप
*****************************************************
"अब  ना होगा 'दिल के घरौंदे' में कोई दरवाज़ा,
ना होगा कोई खौफ किसी 'दस्तक' का
"रौशनी' नहीं आती टपकते'आँखों के रौशनदान' से
अब तो डर है उस 'घरौंदे' में 'सीलन' का "

Monday, November 8, 2010

"खुदा भी कच्चा सौदेबाज़ "


 ‎"खुदा भी कच्चा सौदेबाज़ है
अपनी 'पाक नेमतों' का मूल
बंद मुट्ठियों में भर हमें इस जहाँ में भेजता है
और हम उसे बेमोल गवां देते हैं
जाते वक़्त 'सूद तो सूद'
मूल' भी नहीं होता उसे लौटने को
बेमुरौवती से खुले हाथ चले जातें है
पास उसके इस गफलत में
के वो खुश होके 'जन्नत' बख्शेगा "
 

Thursday, November 4, 2010

""देवदूत"

"प्रायः अंत:करण के दर्पण में
"देवदूत" सी एक छवि उभरती है
जो  मुझसे सदा यह प्रश्न करती है
क्यों  हो मिलनों को आतुर मुझसे?  
दूर रह कर भी तो हम पास रहा करते हैं,
जीवन रंगमंच में हम 'सह-कलाकार'  ना सही  
उर के सुर मंडप में तो हम साथ रमा करते हैं ?

 


 

Wednesday, November 3, 2010

""अबके दिवाली " "

 

"पहले के जैसे लोग थे,वैसे सामान भी हुआ करते थे 

त्योहारों  पर लोग क्या  दिलखोल कर मिला करते थे!!

.

मिटटी के चराग कतारों में क्या खूब जला करते थे

मचलती सी लौ फ़ना होने तक रौशनी बिखेरती थी!!

.

अबके "बिजली के बुलबुले' और लोग एक से हो गए हैं  

चेहरे पर नकली हसी और रश्क लिए गले मिला करते हैं

.

एक 'स्विच' की मोहताज़ ये बुलबुलें  फ़ना नहीं होती

बेजान सी रौशनी देते हुए हर साल यही जला करती है" !!

Monday, October 25, 2010

"करवाचौथ"

"सुहागिनों के सुहाग का व्रत
उस सुहागन ने भी बड़े अरमानो से 
हाथों में मेहँदी रचाए ,गजरा  सजाए ,  
छत  पर उतावली सी किसी की प्रतीक्षा थी , 
उधर चाँद  भी  निकलने को था, तभी
फोन की घंटी बजी,झट उसने फोन उठाया 
मानों इसी की  उसे प्रतीक्षा थी
उधर से आवाज आई ,प्रिये !! 
मै, नहीं आ सका ,मुझे बहुत खेद है "
तुम जानती हो इसमें भी एक भेद है
मुश्किल घडी में उसे कैसे छोड़ सकता हूँ
अपने फ़र्ज़ से मै कैसे मुह मोड़ सकता हूँ
मै तुम्हारा  'करवाचौथ' हूँ ,
तो वो मेरा 'करवाचौथ' है,
तुम मेरी 'प्रतीक्षा'  करती हो ,
मै उसकी 'रक्षा' करता हूँ
तुम एक सुहाग की चिरायु की कमाना करती हो,
मै कई सुहागों की चिरायु होने का वचन  भरता  हूँ
तुम मेहंदी अपने हाथों में रचाती  हो
मै सीने पर लहू की मेहंदी रचाता हूँ
वो गर्व से मुस्काई ,बोली  प्यारे!
तुम ना आये!इसका मुझे  दुःख नहीं,
तुम मेरे पति हो इससे बड़ा कोई सुख नहीं 
देखो  प्रियतम! बाहर  'चाँद' निकल आया है
मै भी उसको तकती हूँ तुम भी उसको ताको
हमदोनो प्रतिबिंबित हो देख लेंगे एक दूजे  को
मेरा व्रत तो पानी पीकर शीघ्र शेष हो जायेगा
तुम अपना व्रत तोड़ ,दुश्मनों को पानी पिला
घर जल्दी वापस आ जाना
घर जल्दी वापस आ जाओ  ...............
 

Friday, October 22, 2010

"सोने की बालियाँ"

"तब के गेहूं की बालियाँ,
कितनी सच्ची लगती थी,
चूल्हे पर सिकीं रोटियों में
वाह! क्या स्वाद था,
अब के वोही बालियाँ
सोने की हो गईं हैं,
कुछ दाने मै भी सहेज लूं
बेटी के ब्याह  को काम आयेंगे,
इतनी महँगी चीज
भला कोई खाता हैं?
 
 
 
 

Sunday, October 17, 2010

"यह 'जीवन"एक 'नाव

"यह 'जीवन"एक 'नाव
'खेवूँ किस 'ठावँ '
मन"पीड़ा का 'गावँ '
उल्टा पड़ा हर 'दावँ '
कड़ी धुप,जैसे आवँ '
तपते मेरे पावँ 'पाव '
भ्रम मात्र है 'छावँ '
यह 'जीवन"एक 'नाव '

Saturday, October 16, 2010

"दसकंधर-दहन"

उल्लासित,"दशमी"को हम
दसकंधर-दहन देखने जायेंगे,
एक अग्निबाण !नाभि पर ,
और 'रावण' जल जाएगा
"असत्य  पर सत्य" की विजय
हर्षित हो हम चिल्लायेंगे  ,
जलते हुए रावण के मुख को
कभी गौर से देखा है?
एक कुटिल मुस्कान लिए,
मानों कह रहा हो........... ,
"मैं बुराई का पुतला,
क्षण में भष्म हो जाऊँगा
परन्तु!गहरे पैठा हूँ जो तुम्हारे ,
उसको भष्मित कैसे कर पाओगे ,
फिर कैसे करोगे  सत्य का आह्वान
लेकर मेरा ही अंश,.......
पुनः करोगे घर को प्रस्थान "

Saturday, October 9, 2010

"एहसास "

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‎"ये गुब्बारे भी के क्या खूब होते हैं ...,
जरा सी हवा में ही , अर्श को आशियाँ समझ लेते हैं
नादाँ है !उन्हें ये इल्म नहीं ..,के .............
एक चुभन ही काफी है फर्श पे फ़ना होने को ......."
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"आग, के दरिया में घर बनाने का हुनर' रखना,
और कलेजे, में मदमस्त समंदर" रखना,
बेहद जरुरी है ,इन हवाओं का रुख बदलना ,
वरना जुल्मोंसितम - हादसा और भी बदतर होगा "
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"जीते रहे अपने लिए तो क्या जीए
मरते रहे मरने के लिए तो क्या मरे "
"जाने से  से पहले काम कुछ ऐसा करें
दे जाएँ अपना ये  नूर किसी बेनूर के लिए "
"खाक से बने हैं हम खाक में मिल जायेंगे
हम फिर इससे  इतनी चाहत क्यूँ करें "
"उन्ही  नजरों से जल उठेंगे  दो बुझे  दिए"
जीते रहे अपने लिए तो क्या जीए "
 
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‎"आइना" भी क्या खूब 'कारसाज' है
जैसा दिखतें है 'हम, वैसा दिखाने में 'होशियार' है
बखूबी, वो झांक सकता है हमारे भीतर भी
पर हमारी 'रूहों' को देख वो खुद भी 'शर्मसार' है "
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"फुर्सत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है,
फिर हम ये क्यूँ सोचें के पूरी उम्र पड़ी है ...
गम औ ख़ुशी से तो अभी आंख लड़ी है ,
जिंदगी शमा लिए देखो दर पे खड़ी है
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"मुखबिरी तेरी आँखों के क्या कहने ...

जो छिपाती  हूँ वही पढ़ लेते हो .....

मेरे ग़मों को  बाँट के........

अपने दर्द क्यूँ  जकड लेते हो ?"

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"तन्हा है सफ़र ........... बेख़ौफ़ है ,डगर .......चलने दो.मुझे , ......रोका गया तो ...............काफिला बन जायेगा" 

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 ‎"जहाँ जाते है सब........,हम वहां जाते नहीं ,..........तयशुदा रास्ते........... हमें रास आते नहीं "........."

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"अब तलक जुगनुओं के आस पर थी जिंदगी बशर ....
सूरज ने तो अब किया है रौशन जहां मेरा 

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 ‎"तब खुले घरों के आँगन में,
अलगनियां डाल कपडे सुखाते थे ,
अब बंद सिटखनियों में ,......
मशीनों से कपडे निकलते हैं निचुड़े निचुडाय हुए.
तब घरों में भागते फिरते थे इधर उधर ,
...अब फ्लेटों में रहते है सिमटे सिमटाय हुए "....................

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 ‎"कोई साथ ना दे , गिला नहीं है मुझे,......, मेरा साथ ही काफिला है मुझे ......."

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Wednesday, September 29, 2010

"वही मेरा गाँव, "


वो पीपल की छाँव,
बरगद की ठाव  ,
गंगा   की  नाँव
वही मेरा गाँव, 
वो आँगन की खटिया 
जूट की मचिया ,
राब की हंडिया 
स्लेट की खड़िया,
 जब याद आता है मन भर आता  है
वो सावन की "कजरी"
बलिया की "ददरी "
"चईता, बिरहा" की नगरी , 
बगईचा की साँझ दुपहरी,
वो चूल्हे का धुआं
पास का कुआं
चाचा का अखाडा
वो गिनती वो पहाडा
जब याद आता है मन भर आता   है ,,
वो भूंजा  भुनाने
आजी   के उल्हाने 
बडकी  भौजी के ताने
मझली का गाने   
वो छट का ठेकुआ
फाग का फगुआ
लाई का तिलवा
आटे का हलुआ
जब याद  आता है मन भर आता   है .....
वो परसाद  की मिसरी
बसरोपन की टिकरी
मटर की घुघरी ,
सकरात की खिचड़ी  
वो लिट्टी वा चोखा
बेसन का "धोखा '
क्या था स्वाद अनोखा
खेल वो "ओका बोका"
जब याद आता है मन भर आता   है ...

Friday, September 17, 2010

तथ्य ,कथ्य व सत्य

किसी भी घटना के तीन पहलू होते हैं पहला - तथ्य ,दुसरा- कथ्य ,तिसरा- सत्य इन् तीन पह्लुओं से किसी घटना को समझने की कोशिश करनी चाहिए पर हम ऐसा नही करते हमारा मन जो चाह्ता है हम वही देखते हैं उदाहरण के तौर पर सडक के किनारे फूटपाथ   पर लेटे एक् व्यक्ति को देख्कर वहा से गुजरने वाले लोगो के मन मे क्या खयाल आए ,जरा देखिए
  • शराबी --लगता है रात ज्यादा  पी गया !सुबह हो गई.अभी तक उतरी नही ,
  • साधु --आहा!!कैसा ,समाधिस्थ साधक !रामकृष्ण जैस परम्हँस   प्रतीत होता है ,
  • डाक्टर --शायद कोमा मे है !ब्रेन हेम्रेज"का केस लग रहा है
  • भंगेडी  --वाह!उस्ताद ओवर डोज लोगे तो यू ही पडे रहोगे हमसे सीखो
  • अमीर व्यापारी --क्या घोडे बेचकर सो रहा है !एक् हम हैं की चिन्ता और अनिन्द्रा से पीडित हैं
  • पुलिस वाला --चलो १० रुपये की आमदनी हुइ  ,फूट पाथ पर सोने की फीस वसूली जाय
  • अविवाहित् युवक --  कुवारों का  दुख देखो .अकेले जीना अकेले मरना 
  • विवाहित प्रौढ   - काश मुझमे इतनी हिम्मत होती की मै अपनी झगडालु पत्नी से भाग कर सडक पर ही सो जाता ,यह साहसी मर्द वाह भाई वाह !!
  • नेता --एक् वोट यहाँ पडी है !थोडी दया दिखा दूँ  तो मेरी हो जाएगी ."ले नोट  दे वोट"
  • अभिनेता --गज़ब का सीन  है !अगली  फिल्म मे मै यहि किर्दार करूँगा
  • आम आदमी--भाग लो यहाँ से बच्चू!मर गया होगा तो गवाही देनी पड़ेगी फिर वही कोर्ट कचहरी का चक्कर ....    
हमारा ज्ञान ,पुर्व अनुभव ,भय,सन्देह,विश्वास,सोच-विचार का ढंग हमारी दृष्टि को लगातार अपने रंग मे रंगता रहता है ,हमे वास्तविकता के  सीधे सम्पर्क मे नही आने देता ,'जो है 'वह नही देख पाते,क्योकी जो नही है 'हम उसमे उलझ जाते हैं घटना का यथार्थ अनभिग्य ही रह जाता है
किसी भी घटना के तीन पहलू होते हैं पहला - तथ्य ,दुसरा- कथ्य ,तिसरा- सत्य इन् तीन पह्लुओं से किसी घटना को समझने की कोशिश  करें ,जब हम किसी घटना के आस पास कोइ कथा गढ कर देखते हैं तो हम अपनी कल्पना को ही देखते हैं 
काश हम सत्य को देख पाएँ तो हमारा   जीवन दुख मुक्त हो जाय 
हर कथा व्यथा मे ले जाती है ,सत्य द्वार है आनन्द का ,सच्चिदानन्द का ...........................      
 
 


श्रोत -a book "full of life by shree shailendr OSHO

Friday, September 10, 2010

" ये जिन्दगी"

गर्म रेत पर नंगे पावं चलने की जलन और दर्द सहने को विवश कराती  है,
ये जिन्दगी ........! 
किसी मोड पर  खुशी के फूल सी  सहलाती  तो कभी गम के काँटों  सी चुभती है,  
ये  जिन्दगी..........,!
कभी हमसफ़र के साथ् तो  कभी तन्हा  घुमाओदार  रास्तों  से गुजरती है,
ये  जिन्दगी ...........!
उलझे कटीले तारों से सिमटी ,खुद के बोझ से लदी,खिसकती जाती है ,
ये जिन्दगी........... !
कभी सुरज की तपिश तो कभी  चाँद  की शितलता का एहसास कराती  है ,
ये जिन्दगी ..........!
इन्सनियत के कफन मे लिपटी , अपने कई रिश्तों को  निभाती  है ,
ये जिन्दगी .........!
रिश्ते, वफा, दोस्ती,सब होते हुए भी किसी खालीपन  का एहसास कराती   है , 
ये जिन्दगी .............!
खुदा है और नही भी ,इन् सवालों से घिरी आसमा मे धरती सी समाती है
ये जिन्दगी...........!
कई रंग दिखाती इस जिंदगी को क्या नाम दें?  ,बड़ी जिंदगी सी नज़र आती है
ये ज़िन्दगी ..........!
 
 

Tuesday, September 7, 2010

"कब खिली गुलाब"

सुर्य देव पाठक "पराग"जी की लिखी ये भोजपुरी कविता भोजपुरी साहित्य की  एक् सुन्दर कृति है ...जो मुझे  बहुत पसंद है ......
 
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"
"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
सेंकेल जाता कसी के धरम के लंगोटी,
पहिरे के ताज सभे,देखत बा ख्वाब,
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब
 
मधुमासी मौसम पर ,पतझर के पहरा बा
आईल बरसात तबो,रेत  भरल सहरा बा,
चिखत बाते सवाल,कब मिली जवाब!
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"

कउओ अब बोलत बा,कोईल के बोली.
हँसन पर पर हावी बा बकुलन के टोली,
चोर आ चुहाड़ के समाज पर रुआब
,कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब

"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
सेंकेल जाता कसी के धरम के लंगोटी,
पहिरे के ताज सभे,देखात बा ख्वाब,
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब "

"करनी दसकंधर के,सूरत बा के राम के,
स्वारथ के झोरी में मूर्ति आवाम के
असली मुखड़ा तोपल,लागल बा नकाब!
 कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"
....................
सुर्य देव पाठक "पराग"(अध्यापक )
उच्च  विद्द्यालय ,कैतुकालछी
जीला -सारण(बिहार"
 

कठिन शब्द के हिन्दी अर्थ
१-कांट भारल =काँटों भरी
२-सेंकल=सेकना
३-पहिरे= पहनने
४-हंसन =हंसो
५-कउओ=कौवा
६=झोरी =झोली (झोला )
७-चुहाड़=लफंगे
८-तोपल-ढका हुआ

Saturday, September 4, 2010

दिल से निकले कुछ गुबार

"बचपन मे लकीरों के खेल बहुत खेलें हैं कुछ छोटी ,
कुछ बडी होती लकीरें पर क्या इन्सनियत के रुबरु कभी इन्सानो को मापा है?
इन्सानो की माप शायद कद से नही होती ,
मैने इस भीड मे ऐसे कई कद्दावर बौने देखे है जो गरीबों के घर जलाते ,
महिलाओं को बे आबरू करते
मानवता का खून करते निशछंद घुमते हैं
जो कद मे तो बहुत लम्बे हैं पर ना जाने क्यु दिखते बौने हैं "


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"रेल की इक पटरी ने दुसरी से कहा "क्या हमारा मिलन कभी सम्भव है?"
दुसरी ने जवाब दिया "कभी नही ",
"हम मात्र पटरियाँ ही नही ....."..
राह्गीरों को उनकी मन्जिल तक पहुचाते भी है ",
यदि हमारा मिलन हुआ तो ये अपनो से हमेशा के लिए बिछड जाएंगे ...... .
इससे बेहतर है के हम कभी ना मिले ......"


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‎"आहें भरोगे ,आवाज दोगे ...
कोइ ना होगा पास तुम्हारे ,
आवाज तुम्हारी ही तुम तक लौट के आएगी ,
दर्दोगम की साथी बन तुम्हारे मर्म सहलायेगी,
क्युकी ....................
अपनों से भरी दुनिया मे आपक़ा अपने सिवा "अपना" कोइ नही होता "
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‎"हम त जल के मछरिया हमरे लोरवा देखि के?
भैया जनमले थरिया बाजल,हमके जिए दिही के ?
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.कन्या भ्रूण को पैदा होने से पहले ही मार देना प्रगतिशीलता की देन है जिसे तकनीकी तरक्की ने आसान बना दिया है. लोग उसी डाल को काट रहे हैं जिस पर बैठे हैं. मूर्खता ही नहीं यह एक शर्मनाक कर्म है. इंसान के बनाये कानून का ही उल्लंघन ही नहीं, ख...ुदा के कानून का भी उल्लंघन है
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"गम के सहरा मे,मुट्ठी भर रेत सी खुशी,
संभाले ना सम्भाली गई
"बचे थे कुछ जर्रे मुट्ठी मे
 सोचा क्यु कैद करु इन्हे
सो उन्हे भी निजात मिल गई "


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Friday, August 13, 2010

शिव कि आराधना लिंग कि रुप मे क्यु होती है तथा उनके तत्वों क सार क्या है ?

विषय विषद है पर जहाँ तक मैने जानकारी हासिल कि है उसके अनुसार लिंग के रुप मे शिव कि  आराधना का
भाव यही है कि शिव अव्यक्त लिंग (बीज) के रूप में इस सृष्टि के पूर्व में स्थित हैं। वही अव्यक्त लिंग पुन: व्यक्त लिंग के रूप में प्रकट होता है। जिस प्रकार ब्रह्म को पूरी तरह न समझ पाने के कारण 'नेति-नेति' कहा जाता है, उसी प्रकार यह शिव व्यक्त भी है और अव्यक्त भी। वस्तुत: अज्ञानी और अशिक्षित व्यक्ति को अव्यक्त ब्रह्म (निर्गुण) की शिक्षा देना जब दुष्कर जान पड़ता है, तब व्यक्त मूर्ति की कल्पना की जाती है। शिवलिंग वही व्यक्त मूर्ति है।
 
यह शिव का परिचय चिह्न है। शिव के 'अर्द्धनारीश्वर' स्वरूप से जिस मैथुनी-सृष्टि का जन्म माना जा रहा है, यदि उसे ही जनसाधारण को समझाने के लिए लिंग और योनि के इस प्रतीक चिह्न को सृष्टि के प्रारम्भ में प्रचारित किया गया हो तो क्या यह अनुपयुक्त और अश्लील कहलाएगा। जो लोग इस प्रतीक चिह्न में मात्र भौतिकता को तलाशते हैं, उन्हें इस पर विचार करना चाहिए।
शिव कर्पूर गौर अर्थात सत्वगुण के प्रतीक हैं। वे दिगंबर अर्थात माया के आवरण से पूरी तरह मुक्त हैं।
शिव लिंग को अंतर्ज्योति का प्रतीक माना गया है। यह ध्यान की अंतिम अवस्था का प्रतीक है, क्योंकि सृष्टि के संहारक शिव भय, अज्ञान, काम, क्रोध, मद और लोभ जैसी बुराइयों का भी अंत करते हैं।

शंकर  जी  को  जगत पिता कहाँ गया है इसलिए पुर्व्काल मे मुर्ति शिश्नरूप मे होती थी , भग (योनी)एव लिंग इन् जनानिन्द्रियों के कारण हि प्राणी  सृष्टि उत्पत्ति सम्भव होती है ,यह जन्ते हुए आदिमनाव समाज ne इन्हे पुजत्व प्रदान किया इसिसे योनी के प्रतीक शालुका और लिंग के प्रतिक लिंग के संयोंजन से पिंडी निर्मित हुइ ,भूमि( याने सृजन और शिव याने पवित्रता इस प्रकार शालुका(लिंग्वेदी) मे सृजन और पवित्रता के रह्ते हुए भी ,विश्व कि उत्पत्ति वीर्य द्वारा नही हुइ है ,बल्कि  शिव  के  संकल्प द्वारा हुइ है .आठ शिव वा पार्वती जगत के मत पिता हुए ,
कनिष्क के पुत्र हुइइश्क  ने दुसरे  हस्तक से शिवलिंग पूजा कि शुरुआत कि ,शिव शक्ति सम्प्रदाय जब एकत्र हो गे तब शिवलिंग कि कल्पना कि गई ,शक्ति बिना शिव कुछ भी नही सकते इसलिए शिव(लिंग) के साथ् शक्ति (शालुका) का पुजन आरम्भ हुआ
 
शालुका(लिंग्वेदी)---दक्ष प्रजापति प्रथम कि कन्या भूमि है शालुका उनका हि एक रुप है ,शालुका का मूल नाम सुवर्ण शंख्नी है क्युकी शंख का आकार (कौडी )स्त्री के सर्जनेंद्रियो समान है ,शालुका कि पूजा अथार्थ मात्री देवी कि पूजा .शालुका के अंदर कि ओर पी जाने वाले खाचे महत्वपूर्ण होते है उनके कारण पिंडी निर्माण होने वली सात्विक शक्ति पिंडी वा गर्भ ग्रिह मे घुम्ती रहती है ,और विनाशकारी तम pradhaan   शक्ति शालुका स्रोत से भर निकलती है ....
इसलिए कहाँ जाता है कि जो जल शालुका से बहर नाली मे बह्ता है उसे लान्घ्ना नही चाहिए
 
शिव के तत्वो का सार
 
  •  उनकी जटाएं वेदों की ऋचाएं हैं। शिव त्रिनेत्रधारी हैं अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों के ज्ञाता हैं।
  • बाघंबर उनका आसन है और वे गज चर्म का उत्तरीय धारण करते हैं। हमारी संस्कृति में बाघ क्रूरता और संकटों का प्रतीक है, जबकि हाथी मंगलकारी माना गया है। शिव के इस स्वरूप का अर्थ यह है कि वे दूषित विचारों को दबाकर अपने भक्तों को मंगल प्रदान करते हैं।
  • शिव का त्रिशूल उनके भक्तों को त्रिताप से मुक्ति दिलाता है।
  •  उनके सांपों की माला धारण करने का अर्थ है कि यह संपूर्ण कालचक्र कुंडली मार कर उन्हीं के आश्रित रहता है। चिता की राख के लेपन का आशय दुनिया से वैराग्य का संदेश देना है। भगवान
  •  शिव के विष पान का अर्थ है कि वे अपनी शरण में आए हुए जनों के संपूर्ण दुखों को पी जाते हैं।
  •  शिव की सवारी नंदी यानी बैल है। यहां बैल धर्म और पुरुषार्थ का प्रतीक है।
 
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Friday, August 6, 2010

The Cloud and The Sand Dune((From Paulo Coelho's "Like A Flowing River")


A young cloud was born in the midst of a great storm over the Mediterranean Sea, but he did not even have time to grow up there, for a strong wind pushed all the clouds towards Africa. As soon as the clouds reached the continent the climate changed . A bright sun was shining in the sky and stretched out beneath them, lay the golden sands of the Sahara. Since it almost never rains in the desert, the wind continued pushing the clouds towards the forests in the south. Meanwhile, as happens with young humans too, the young cloud decided to leave his parents and his older friends in order to discover the world. 'What are you doing' cried the wind. 'The desert's the same all over. Rejoin the other clouds, and we'll go to Central Africa where there are amazing mountains and trees!' But the young cloud, natural rebel, refused to obey, and, gradually, he dropped down until he found a gentle, generous breeze that allowed him to hover over the golden sands. After much toing and froing, he noticed that one of the dunes was smiling at him. He saw that the dune was also young, newly formed by the wind that had just passed over. He fell in love with her golden hair right there and then. 'Good morning', he said. 'what's life like down there?' 'I have the company of the other dunes, of the sun and the wind, and of the caravans that occasionally pass through here. Sometimes it's really hot, but it's still bearable. What's life like up there?' 'We have the sun and the wind too, but the good thing is that I can travel across the sky and see more things.' 'For me,' said the dune, 'life is short. When the wind returns from the forests, I will disappear.' 'And does that make you sad?'

'It makes me feel that I have no purpose in life.' 'I feel the same. As soon as another wind comes along, I'll go south and be transformed into rain but that is my destiny.' The dune hesitated for a moment, then said: 'did you know that here in the desert, we call the rain paradise?' 'I had no idea that I could ever be that important,' said the cloud proudly. 'I've heard other older dunes tell stories about the rain. They say that, after the rain, we are all covered with grass and flowers. But I'll never experience that, because in the desert it rains so rarely.' It was the cloud's turn to hesitate now. Then he smiled broadly and said:'if you like, I could rain on you now. I know I've only just got here, but I love you, and I'd like to stay here forever.' 'When I first saw you up in the sky, I fell in love with you too' said the dune. ' But if you transform your lovely white hair into rain, you will die.' 'Love never dies', said the cloud 'it is transformed, and, besides, I want to show you what paradise is like.' And he began to caress the dune with little drops of rain so that they could stay together for longer, until a rainbow appeared. The following day, the little dune was covered in flowers. Other clouds that passed over, heading for Africa thought that it must be part of the forest they were looking for and scattered more rain. Twenty years later, the dune had been transformed into an oasis that refreshed travellers with the shade of its trees. And all because, one day, a cloud fell in love, and was not afraid to give his life for that love.

conclusion is that ..."the result of selfless love is not a mirage but  abeautyful oasis"

saroj




Tuesday, April 27, 2010

कब् लोगे अवतार प्रभु तुम



 कब् लोगे अवतार प्रभु तुम, अब किसका तुम्हे इन्तजार है
दुख से जीवन घिरा  हुआ है ,चारों  ओर फैला अत्याचार है
शान्ति कहाँ  है मानव मन मे,जब हर तरफ कदाचार है
भौतिकता के इस दुनिया मे,बस फैला अन्धकार है
मानवता के मुल्यों पर दानावता का प्रचार है
कब् लोगे अवतार प्रभु तुम अब किसका तुम्हे इन्तजार है ?
.
प्यार वफा इमान यहाँ अब बिकने   को तैयार है
अपने अपनों  को लूट रहे यह कैसा सन्सार है
काम क्रोध मद् लोभ तृष्णा का फैला अन्धकार है
हत्या, आतंक,नफरत,घृणा,हर जगह अनाचार है
कब् लोगे अवतार प्रभु तुम,अब किसका तुम्हे इन्तजार है ?
.
मानव मानव का नाश करे ,यह मानवता कि हार है
अत्त्याचार .भ्रष्टाचार ,शोषण,बन गया अब  शिष्टाचार है  
आज त्रस्त है मानव मानव से,अब नही कहिँ गुहार है
लूट मची है ,हम लुटे दुनिया को हर करता यहि विचार है
कब् लोगे अवतार प्रभु तुम,अब किसका तुम्हे इन्तजार है?
 
 

Monday, April 26, 2010

मेरे पसंदिदा संग्रह ..२..गुलजार

रितुपर्णो घोष द्वारा लिखित गीत पिया तोरा कैसा अभिमान . पर गुलज़ार साहब की आवाज़ में उनकी पढ़ी हुई एक नज़्म भी है.. किसी मौसम का झोंका था..
गीत है पिया तोरा कैसा अभिमान... जितने खूबसूरत इसके बोल है उतनी ही मधुरता शुभा मुदगल जी ने इसे गाकर प्रदान की है.. ऋतपर्णो घोष गुलज़ार साहब को 'गुलज़ार भाई' कहते है.. और उनकी खास फरमाइश पर गुलज़ार साहब ने खुद अपनी लिखी नज़्म को अपनी आवाज़ दी है..
आप पढ़िए इस एक और बेजोड़ नज़्म को. और सुनिए खुद गुलज़ार साहब की आवाज़ में..

एक बार सुनने के बाद खुद आपको लगेगा की ये गीत सुन ना आपके लिए कितना ज़रूरी था..



किसी मौसम का झोंका था,
जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है
गये सावन में ये दीवारें यूँ सीली नहीं थीं
ना जाने इस दफा क्यूँ इनमे सीलन आ गयी है
दरारें पड़ गयी हैं और सीलन इस तरह बैठी है
जैसे खुश्क रुक्सारों पे गीले आसूं चलते हैं

ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये घर कि खिड़कीयों के कांच पर उंगली से लिख जाती थी सन्देशे
देखती रहती है बैठी हुई अब, बंद रोशंदानों के पीछे से

दुपहरें ऐसी लगती हैं, जैसे बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं,
ना कोइ खेलने वाला है बाज़ी, और ना कोई चाल चलता है,

ना दिन होता है अब ना रात होती है, सभी कुछ रुक गया है,
वो क्या मौसम का झोंका था, जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया

इस गीत को आप यहाँ सुन सकते हैं ...



Saturday, April 24, 2010

मेरा पसंदीदा संग्रह....


"दायरा" काफी आजमी जी कि लिखी हुए जो मुझे बहुत पसंद है ....

"रोज़ बढ़ता हूँ जहा से आगे ,फिर वही लौट के आ जाता हूँ
बारहा तोड़ चूका हूँ जिनको ,उन्ही दीवारों से टकराता हूँ '

रोज़ बसते हैं कई शहर नए,रोज़ धरती में समां जाते हैं
जलजले में थी जरा सी गर्मी,वो भी अब रोज़ आ जाते हैं
जिस्म से रूह तलक रेत ही रेत,ना कही धुप ना साया ना सराब
कितने अरमान हैं किस सहरा में ,कोन रखता है मजारों का हिसाब
नब्ज़ बुझती भी भड़कती भी है ,दिल का मामुल है घबराना भी
रात अँधेरे ने अँधेरे से कहा .एक आदत है जिए जाना भी
कौस एक रंग कि होती है तुलुए,एक ही चाल भी पैमाने कि
गोशे गोशे में खड़ी है मस्जिद,शक्ल क्या हो गई मैखाने कि
कोई कहता है समंदर हु मै ,और मेरी जेब में कतरा भी नहीं
खैरियत अपनी लिखा करता हु अब तो तकदीरका खतरा भीनहीं
अपनी हाथों को पढ़ा करता हु,कभी कुरान कभी गीता कि तरह

चंद रेखाओं में सीमाओं में ,जिंदगी क़ैद है सीता कि तरह
राम कब लौटेंगे,मालूम नहीं,काश रावण ही कोई आ जाता .....

Friday, April 23, 2010

क्रंदन करता ये मन मेरा


 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
मानव जीवन पाकर भी
 व्यर्थ जीवन बिताया है
 
मन भटकाकर मोह माया में
यु ही समय  गवाया  है
बचपन बीता खेल कूद में
भोग वासना का यौवन  पाया
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
 
सुख दुःख संयोग वियोग में
मन को बस भरमाया है
भौतिकता कि चाहत में
खुद को बस बहकाया  है
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
 
एक तुम ही हो सर्वस्व मेरे
बाकी माया कि छाया  है
तुमको पाना लक्ष्य हो मेरा
यही समझ अब आया है
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
 क्या खोया क्या पाया है
 
 

कुछ अहसास मेरी नजरों से

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प्यास.....
खुश्क होठों पर जुबान फिराती नजरें
पानी कि तलाश में
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आसूं
वाह अव्यक्त दुःख जो कहा ना गया मुख से
मगर बह गया ....
आँखों से ....
*****************
जीवन मृत्यु
जीवन एक प्रश्न
और ...
मृत्यु सदा उत्तर होता है
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वर्तमान
अतीत कि ड्योढ़ी पर खड़ा
भविष्य को तकता पल.....
*****************************
वक़्त
सबसे बड़ा शिक्षक.......
मगर अपने किसी भी शिष्य को
जीवित नहीं छोड़ता ...
******************************
आत्मा
परमज्योति परमात्मा से निकली हुई
वह पवित्र जोत
जो हाड मॉस के इंसान तक आते ही
दूषित हो जाता है
और उसे पुनह पवित्र कर
विरले ही उस परमज्योति में विलीन हो पाते हैंta
****************************
रिश्ता
अकेलेपन से दूर
किसी दुसरे से बंधता स्निग्ध
.....सम्बन्ध
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तुम .......
तुम समाय हो मुझमे किसी पानी कि तरह
जहाँ पटाता है जेहन किसी तनहाई कि तरह
खुदा करे के रह जाऊं ना कभी
अधूरी
किसी कहनी कि तरह ....
************
इंसान ......
एक पतंग जिसकी डोर विधाता के हाथों में है .....
एक नाचता बंदर जिसका मदारी परमात्मा है
******************
सीमा
संबंधो कि तीव्रता में लागी रोक
और
शक्ति को बांधती
...अकाट्य रेखा
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ठोकर
लापरवाही का अहसास कराती
और
जिंदगी कि रफ़्तार को रोकती
......अड़चन
************************

वो पाकिस्तानी सही मायने में इंसान था"


 

"मेरी यादगार यात्रा दिल्ली से बोस्निया तक कि, ये घटना तब कि है जिस वर्ष 9/11/2001 में अमेरिका में आतंकवादी घटना घटित हुई थी।"

आज से करीब ८ वर्ष पूर्व  पहले .उस दौरान  मेरे  पतिदेव 1 वर्ष के लिए  यूनाइटेड नेसन पुलिस में( डेपूटेशन   पर  )बोस्निया (यूरोप)गए हुए थे। और मै समय मै धनबाद (झारखण्ड) में थी।.पतिदेव को गए ६ माह बीत चुके थे और उन्हें छुट्टी में(अगस्त)में  भारत आना था पर किन्ही  कारणों   उन्हें छुट्टी नहीं मिली  तो उन्होंने कहा कि क्यू नहीं तुम ही यहाँ आ जाओ कुछ दिनों के लिए ,मै तुम्हारा स्वीटज़रलैंड  देखने का सपना पूरा करा दूंगा ।...बस अँधा क्या मांगे दो आँखे .....मै तो  जैसे अपने को फिल्म चांदनी कि श्रीदेवी और पतिदेव को हृशिकपूर ही समझ कर स्वीटज़रलैंड के ही ख्वाब देखने लगी ,फटाफट अपने भैया से बोलकर शेंघेन वीसा(यूरोप  के 7 देशो का)बनवा लिया और 2 माह पहले ही टिकट भी बुक कर्वा लिया।
 
पर जब  ११ सितम्बर को जब मैंने टी वी में "वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर को ढहते हुए देख रही थी ......बिलकुल उसी क्रम    मे स्वीटज़रलैंड के  ख्वाब कि ईमारत  भी ढहती हुई प्रतीत होने लगी, क्युकी समाचार में ये दिखा रहे थे कि आतंकवादियों ने और भी हवाई हमले कि धमकी दी है इसलिए  सभी अपनी  हवाई यात्रा निरस्त्र कर  रहे थे.अम्मा बाबूजी ने भी जाने से मना कर दिया ,एक तो पति से मिलना और यूरोप घूमने कि ललक दोनों पर काले बादल  घुमड़ने लगे ।....
 
मगर तभी मेरे चहरे पर हरियाली छा गई जब पतिदेव का फोन आया कि नहीं आ जाओ कुछ नहीं होगा ।
टिकट भी कट ही चूका था २० अक्तूबर का "एरोफ्लोट एयर लाइंस(रस्सियन) जो कि पहले मास्को तक जाती फिर वहा से मुझे कनेक्टिंग फ्लाईट से जागरेब (क्रोअसिया) जाना था फिर बाय  रोड बोस्निया जाती जागरेब में पतिदेव लेने आनेवाले थे .....मै इतनी खुश थी कि सपने में भी यूरोप ही पहुंची रहती थी ।
 
खैर वो दिन भी आ पहुंचा जिसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी२०  अक्तूबर कि सुबह ५ बजे कि उड़ान थी सो १२ बजे रात में ही चेकिन के लिए एयर पोर्ट आ जाना था,और पहली बार मै विदेश यात्रा कर रही थी सो पतिदेव कि तरफ से एक पत्र के रूप में एक पूरी गाइड लाइन मिली हुई थी कि कैसे मुझे सारी  फारमेलिटीफारमेलिटीस.......निभानी हैं ।.अम्मा बाबूजी और भैयासारे  लोग रात को १२ दिल्ली एयर पोर्ट पर छोड़ कर चले गए ।
 
मै जब एअरपोर्ट के अन्दर पहुंची तब थोड़ी घबराहट होनी शुरू हुई फिर भी लगेज  चेक करा कर एक जगह बैठ कर दिल्ली एअरपोर्ट का नजारा देखने लागी ,जो एअरपोर्ट एक दम खाचाखाक भरा रहता था आज एकदम खाली खाली लग रहा था ..बहुत कम पेसेंजेर थे ,2 घंटे बाद घोषणा हुई कि जिस फ्लाईट से मै जाने वाली हु वो १२ बजे दिन में जाएगी यानि कि ६ घंटे लेट ,थोडा उत्साह वही ठंडा हो गया ....और एक डर और सताने लगा कि मास्को से जो कनेक्टिंग फ्लाईट है वो ना छुट जाये कुकी मास्को में मुझे ८ घंटे के बाद वो फ्लाईट पकडनी थी 2 घंटे का अंतराल अब भी था इसलिए उम्मीद थी कि वो फ्लाईट नहीं छुटेगी बहरहाल जोश   अभी   इतना  था  कि  .मैंने पूरी रात एक चेयर  पर बैठ कर बिता दिया ,इसी बीच दो  लडकियों से दोस्ती होगई  जो कि मास्को मेडिकल कि पढाई करने के लिए जा रही थी तबमुझे थोड़ी तसल्ली हुई कि चलो मास्को तक का तो साथ मिला।
 
आखिर सारी ओउप्चारिक्ताएं   निभाने के बाद जहाज में बैठ गई । अन्दर बहुत सी सीटें खाली थी बहुत कम यात्री थे ,और मै रात भर  सो भी नहीं पाई थी सो तीनो सीट कि हेंडल उठा कर आराम से सो गई ....8  घंटे का सफ़र कैसे ख़तम हुआ पता ही नहीं चला मास्को पहुचने का जब अनाउंस  किया गया तब नींद खुली ।
 
बहार निकल कर जब जब काउंटर पर पहुंची और अपना बोर्डिंग पास  दिखाया रस्सियन महिला ने कुछ देर तक मेरे बोर्डिंग पास को निहारा फिर फोन पर अपनी भाषा में कुछ बात कि फिर मुझसे टूटी फूटी अंग्रेजी में बोली कि आपकी फ्लाईट आज नहीं जाएगी 23  को सुबह 6  बजे जाएगी .आप कुछ देर वहा  इन्तजार कीजिये आपको होटल पहुंचा दिया जायेगा "....इतना सुनने के बाद तो मुझे लगा कि मुझे चक्कर आ जायेगा बस लग रहा था कि ये जमीन फटे और मै समां जाऊ "हे भगवान तीन रात मास्को में अकेले कैसे काटूँगी.......मुझे अम्मा बाबुजी कि बाते याद आने लगी कि मत जाओ काश उनकी  बात मान ली होती .......अन्दर से रोने का मन कर रहा था पर अपने को बहुत काबू किया हुआ था मै ये नहीं दिखाना चाह  रही थी कि मै पहली बार सफ़र कर रही हूँ ।
 
बहरहाल जहा बताया गया,वहा जाने पर मुझे  कुछ राहत महसूस हुई क्युकी मुझे वहा कुछ भारतीय लोग दिखे वही जाकर एक कुर्सी पर बैठ गई । अब चिंता हुई कि सबको खबर  कैसे करू क्युकी उस समय मेरे पास मोबाइल भी नहीं था.एअरपोर्ट पर जगह जगह फोन बूथ बने हुए थे पर वो सब तब मेरे लिए बेकार होगये जब मुझे पता चला किफोन कार्ड  रूबल से मिल सकेगा डालर  से नहीं  ।  अब मै बिलकुल ही रुआंसी हो गई और फिर उसी कुर्सी पर आ कर धम से  बैठ गई ,मेरे बगल में एक एक आदमी मुझे बड़े ध्यान से देख रहा था ,उसने मुझसे पूछा कि क्या आपको कॉल करना है कही ? मेरी आवाज और भर्रा गई केवल सर हिला हा में हिला दिया ,आप को        "अर्जेंट  है तो मेरे सेल से कॉल कर सकती है" 
 
इतना   सुनते ही मैंने संकुचाते  कहा प्लीज  बस एक कॉल अपने पति  को करके बता दू कि फ्लाईट  २३ को यहाँ से जाएगी...उसने तुरंत अपने सेल से नंबर मिला कर पति से बात करा दी .....बात करने के बाद बहुत राहत महसूस हुई...मैंने फिर उस महोदय को थैंक्स कहा और युही पूछने लगी आप इंडिया से कहा से हैं और कहा जाना है ?
उसने बोला "मै सुहैल करांची .......से कनाडा भाई के पास जाना है "
जबतक उसने सुहैल बोला मुझे ठीक लगा पर जैसे ही उसने करांची बोला मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मै एक आतंकवादी के बगल में बैठी हूँ ,हलकी दाढ़ी  थी उसकी रंग गोरा उम्र करीब 25-30 कि .......वो बिलकुल वैसा ही नज़र आने लगा
 
मै कुछ बहाने से वहा से उठ कर एक बुजुर्ग पंजाबी महिला थी उनके बगल में आ कर बैठ गई और उनसे बात करने कि कोशिश  करने लगी उस महिला को हिंदी भी नहीं आती थी केवल  पंजाबी बोलरही थी वहा जितने लोग रुके हुए थे उनमे एक बुजुर्ग पंजाबी जोड़ा ,  एक जोड़े कि नई नई शादी हुई थी पठानकोट के रहने वाले थे ,एक श्रीलंका का था जो अपने को पृष्ट(इसाई पुजारी) बता रहा था उसकी उम्र भी करीब45-50 का रहा होगी  ,और एक वो पाकिस्तानी ,मुझे छोड़ कर सबको टोरेन्टो जाना था ,जागरेब जाने वाली केवल मै थी ,उनलोगों कि भी फ्लाईट 23 को 10  बजे थी ,आतंकवादी धमकी कि वजह से काफी फ्लाईट निरस्त्र कर दी जारही थी 
रात के १२ बज गए एअरपोर्ट पर ही खाना खिला कर हमलोगों को एअरपोर्ट के निकट ही "नोवाटेल "होटल में ठहराया गया ,१४ माले पर सबको एक एक रूम दे दिया गया , मैंने जान बुझ कर बुजुर्ग दंपत्ति के बगल वाला रूम  लिया क्युकी एक तो उनलोगों को अपना रूम खोलना बंद करना हीं आ रहा था और भी कई दिक्कते हो रही थी वो भी बेचारे अपने बेटे बहु के पास पहली बार जा रहे थे .इसलिए मै उनका सहारा बन गई और वो मेरा मुझे भी ऐसा लगरहा था कि मेरे साथ कोई है ।,
 
हमलोगों को एक तरह से कैद ही किया गया था केवल तीन समय नास्ता दोपहर का खाना और रात्री भोजन के समय ही लिफ्ट का ताला खोला जाता रूम में फोन कर दिया जाता , एक  सिक्यूरिटी वाला आता और हमसब को एकसाथ ही नीचे डायनिंग  हाल तक लेजाता ,फिर खाने के बाद ऊपर लाकर लाक कर देता था,एक एक फोन कार्ड दे दिया गया था जिससे केवल ३ कॉल कही भी कर सकते थे ,
 
वो पाकिस्तानी कई बार बात करनी चाही पर मै हेलो हाय करके इग्नोर  कर देती ,हमलोगों कि मुलाकात तीन समय होती डायनिंग हॉल में होती ,मेरे मेज पर अंकल आंटी व श्रीलंका का जो अपने को पृष्ट बोलता था वो बैठता था उससे अक्सर इसाई धर्म व हिन्दू धर्म कि ही बाते होती बाचीत करने में वो ठीक लगा बाकि जो नए  शादी शुदा दम्पति थे उनकी तो लाटरी  लग गई थी दीन दुनिया से बेखबर तीन दिनों कि ऐश थी फ्री में ,वो पाकिस्तानी बिलकुल अलग बैठता था ,
 
असल घटना  घटित हुई आखरी रात को डायनिंग  हॉल में जब हम पहुंचे तो उस इसाई के नक्से ही अलग थे शराब के नशे में धुत्त बगल में जब बैठा तभी मुझे कुछ अजीब लगा ,उसके बाद जब उसने बोलना चालू किया ""सम बडी मेकिंग मी क्रेजी ...यु  शुड  एन्जॉय यौर लाइफ  ....और भी पता नहीं क्या क्या मुझे कुछ ठीक नहीं लगा मै वहा से उठकर जाने लगी तब झट उसने मेरा हाथ पकड़ कर जबरजस्ती वही बिठाने लगा  , उसकी उम्र का लिहाज कर के पहले तो  मैंने हाथ झटकते हुए कहा कि   "प्लीस लीव माय हैण्ड "उसने और जोर से पकड लिया,    अंकल आंटी तो भौंचक थे कि क्या हुआ , युवा जोड़े ने मुड कर देखा फिर खाने में मशगुल हो  गए , सिक्यूरिटी गार्ड को बुलाने लगी उसे अंग्रेजी समझ नहीं आरही थी वो समझ पता,इससे पहले ही वो पाकिस्तानी झटके से आया उससे मेरा हाथ छुड़ाते हुए   दोनों हाथ ऐंठ कर पीछे कर धकेलते हुए दीवाल पर उसका सर धम भिड़ा कर बोलने लगा "
"साले तुमको तमीज नहीं कि किसी लेडी से कैसे पेश आते है ?"
 
मै इतना घबरा गई कि दौड़ते हुए सिक्यूरिटी गार्ड के पास गई और कहा कि " आइ वांट टू गो माय रूम "प्लीज।।।
उसको भी ये अहसास हो गया कि कुछ गड़बड़ होगया है वो तुरंत मुझे मेरे रूम तक छोड़ कर आ गया ,
वो सारी रात मैंने बेड पर बैठे हुए गुज़ार दी ।,फोन कि घंटी बजती रही पर हिम्मत नहीं हुई कि उठा लू,४
 बजे वैन आ गई एअरपोर्ट के लिए ,जाने के समय एक बार मन हुआ कि उस पाकिस्तानी का दरवाजा खटखटाकर उसे गलत समझने के लिए माफ़ी मांगू और रात कि घटना के लिए उसका आभार प्रकट करू ....पर संकोच वश हिम्मत नहीं जुटा पाई .....।
 
दो घंटे में मै जाग्रेव पहुँच गई और जब एअरपोर्ट पर पतिदेव को देखा तो जान में जान आई ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई जंग जीत कर आ रही हूँ ,रास्ते में मैंने सारी घटना बताई तो कहने लागे कि "तुम्हे कमसे कम उसको थैंक्स तो बोल देना चाहिए था ,यहाँ तो मेरा सबसे अच्छा दोस्त ही पाकिस्तानी है .ये सुन कर मुझे अपनी सोच  पर ग्लानि होने लगी ,तब से आज तक उस अपराध बोध से उबार नहीं पाई हूँ ।,अभी भी मन में एक आस रहती है कि कास वो एक बार मिल जाये और मै उससे माफ़ी मांग सकू ......शायद इस  घटना का यहाँ जिक्र कर के मै अपने को हल्का महसूस कर सकू ..........।।।।।।

 



Thursday, April 22, 2010

"अधबनी लड़की कि दुहाई"

कन्या भ्रूण को पैदा होने से पहले ही मार देना प्रगतिशीलता की देन है जिसे तकनीकी तरक्की ने आसान बना दिया है. लोग उसी डाल को काट रहे हैं जिस पर बैठे हैं. मूर्खता ही नहीं यह एक शर्मनाक कर्म है. इंसान के बनाये कानून का ही उल्लंघन ही नहीं, खुदा के कानून का भी उल्लंघन है





"अधबनी लड़की कि दुहाई है ।
माँ के कोख से ये आवाजआई है ।
सुनकर किस का ना दिल पिघल जाय।
माँ बापू क्यू बने हो हरजाई।
मरने के पहले ...........
मै आपन कातिल से थोडा गुफ्तगुं कर लूं
मेरे दिल से उठी ये घोर व्यथा है ।
मै तो तुम्हारे प्यार कि निशानी हु,
बापू ! तुम तो इस बाग़ के माली हो।
फिर मुझे फूल बनने से क्यूँ रोकते हो?
बाहर कि सुगबुगाहट से जाहिर है ,
अब मेरा क़त्ल होने वाला है ।
कल डॉक्टर माँ को सूई चुभोने वाला है ।
माँ बापू कि जिद्द ये कहती है ,
कि मै ये दुनिया नहीं देख पाऊँगी।
हाय!मैं फरियाद करू भी तो किससे?
मै तो रो भी नहीं सकती कोख में ,
रोता ओ वो है जो जनम लेकर बहार आता है ।
अपने इस सोच को बदल बापू!
मुझे भी जीने का एक मौका दे दो बापू!
इस दुनिया में तेरा नाम करुँगी ।
हे! माँ तू इतनी कठोर ना बन
अपना दूधऔर आँचल के छाओं से दूर ना कर ।
बस एक बार लड़की कि माँ देख बनकर
बस एक बार लड़की कि माँ देख बनकर ।।
*भूण परीक्षण पर हो रहा खेल इस कडवी सच्चाई को और भी सामने लाता है । सरकार भले ही कितने नियम कानून बना ले अगर हमारे दिल मे लडका और लडकी मे अन्तर समा चुका है तो उसे कोई भी कानून बदल नही सकता । आवशकता है हमारी सोच , हमारी विचारधारा मे बदलाव की ।



"वर्दीधारी के प्रति हमारी सोच "

From a pool of more than 3000 entries,dis entry made it into the final list of winners of the Hai Baaton Mein Dum Contest!
आज कि समाज में हमारे पुलिस महकमे कि जो छवि है वो किसी से छुपी नहीं है पर यहाँ मै उनकी दुसरे पहलु से अवगत करना चाहूंगी....
मै "सी आई एस ऍफ़" (नागपुर )के "फॅमिली वेलफेअर अध्यक्ष" के नाते वर्दीधारी और उनके परिवारों को बहुत करीब से देखा है ,उनकी व्यक्तिगत-पारिवारिक जीवन कितना कठिन और दुरूह होता शायद इसका अंदाजा बाहरी व्यक्ति नहीं लगा सकता।
















"बाबूजी आज घर जल्दी आओगे ना क्यू रानी ?आज क्या है ?
जा बाबू तुम्हे कुछ याद नहीं रहता ,आज हमारा जन्मदिन है ।
बाबू का चेहरा कुम्भलाया ,क्या कहूँ बेटी से कुछ ना सुझाया
आज मंत्री जी को आना है।......
वी आई पी ड्यूटी है घर नहीं आ सकता ,
वर्दी पहनते सोचने लगा अब कोन बहानाकरूँ,पैंट खिचती बिटिया बोली,
क्या बाबू होली, दिवाली, ईद, पर भी तुम घर नहीं रहते ।
मीना को देखो उसके बाबू हर त्युहार मिठाई खिलौना लाते हैं ।
तुम तो घर पर ही रहते नहीं, हमारी दूरी कैसे हो सहते ?
बाबू कि आँख भर आई बात बदलते बोले,बोल रानी तुझे क्या लाऊं ?
रानी का चेहरा खिल आया ,बोली मीना के जैसी गुडिया लाना ।
फिर सोच बोली, गुडिया चाहे मत लाना,बाबू घर जल्दी आ जाना ।
भारी मन से बाबू गए ड्यूटी, यही सोचते कि,साहब से कैसे मिलेगी मुझे छुट्टी ?"


" काम चोर पुलिस".निकम्मी पुलिस,भ्रष्टाचारी पुलिस,और ना जाने क्या क्या ? रोज के समाचारों में यही रहता है शायद ही कोई हो जिसने पुलिस वाले के भीतर झाँकने कि कोशिश कि होगी । मै यहाँ कुछ बिन्दुओं द्वारा उनको आपके सामने दर्शाने कि कोसिस करती हूँ..।
*दर असल पुलिस को लेके सामाजिक सोच नेगेटिव होने का कारण जगजाहिर है असल में हमलोगों कि आदत है कि हर बात के लिए पुलिस को दोष दे ।पुलिस यदि अच्छा काम करे ता कुछ भी प्रसंशा नहीं मिलती ! बहुत हुआ तो विभागीय प्रोमोशन मिल जायेगा !
*अपने देश में यदि कही कोई बलात्कार के घटना घटित हुई तो १०० करोड़ जनता का नाम नहीं लिया जाता वरण जिसने ये कुकर्म किया है उसे दोषी करा दिया जाता है पर यदि किसी पुलिस वाले ने ये कुकर्म किया पूरा पुलिस डिपार्टमेंट बदनाम होजाता है सब पूरे पुलिस महकमे को ही एक बलात्कारी के दृष्टि से देखने लगती है !ये पुलिस वाले भी कहीं आसमान से नहीं आते हमारे बंधू बांधव और रिश्तेदार ही होते हैं ।
*सोचिये जब बेटी के साथमुस्कुराने का वक्त हो तब उनको वी आई पी ड्यूटी में जाना पड़े बाप बीमार है और सिपाही बेटा नौकरी बजा रहा हो ,तब वो पूरे मनोबल से कैसे ड्यूटी करेगा ?महीनो सालो परिवार से दूर रह के ड्यूटी करना कितना कठिन होता है ।
*आज भी उन्ही प्रशिक्षण तकनीक और उपकरनो का उपयोग कर जवान तैयार किये जाते हैं जो वर्षों पहले [ अंग्रेज जमाना या 1865 माडल कहा जाता tha] नकार दिया गया हैं मुझे याद है तुकाराम आम्ब्ले जिन्होंने अजमल कसब के इ के-४७ का सामना डंडे से किया और ८ गोली सिने पर खा ली यदि वो गोली खा कर कासब को पकड़ा नहीं होता तो ना जाने कितने और बे मौत मरते ,मै तो कहती हूँ कि उसे कासब ने नहीं सरकार ने मारा है यदि उसके पास भी आधुनिक हथियार होते तो शायद वो जिन्दा होता ।

*होली,दीवाली,ईद,दीवाली, सब राष्ट्रिय छुट्टी के दिन भी त्यौहार का मजा ना लेकर ड्यूटी बजाना पड़े तब ऐसे में पुलिस मन के संवेदना का हरण ही है ना ?

*अक्सर हमने लोगो से कहते सुना है "कि हमलोग टैक्स किसलिए भरते है अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस को तनख्वाह हमारे टैक्स से दिया जाता है,"मगर ये कोन समझाए कि पुलिस को तनख्वाह खाली दिन में ८ घंटा ड्यूटी करने के मिलते हैं पर जो 24 घंटे में कोई काम का घंटा तय न हो उस पर भी लगातार ड्यूटी करे और जगह ओवर टाइम का अतिरिक्त पैसा मिलता है वर्दीधारी को नहीं मिलता ।

*जो एजेन्सी के संख्या बल रोज बढती जनसंख्या और अपराध के अनुपात में हास्यास्पद अंक या नगण्य है [ पुलिस में अक्सर एके हौसला अफजाई के जुमला के रूप में इस्तेमाल किया जाता है कि एक सिपाही पूरे गाँव के हड़का आता है और एक थानेदार अपने इलाके का मालिक होता है पर अब हकीकत क्या है , चैतन्य जनता संग अपराधी भी समझने लगे हैं]
*जो आम से दूर होकर सदैव ख़ास(नेता ,मंत्री) के पास की ड्यूटी करना पड़ता है और जहाँ की एक ही जवान सफ़ेद वस्त्रधारियों की सुरक्षा, अपराध विवेचना, पतासाजी, धर पकड़ से लेकर मण्डी-मेले और ट्रैफिक की व्यवस्था सब में पारंगत हो और सब कर सके ऐसी उम्मीद कि जाति है।
*जब किसी आई पी एस कि ड्यूटी किसी अनपढ़ नेता कि सुरक्षा में लगा दिया जाए और उस नेता द्वारा उसे गाली खाने को मिले तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसके मान पर क्या बिताती होगी ।
*जिसके बढ़िया काम करने पर कभी-कभार यह कह दिया जाता है कि ठीक है !!ये तो उसका काम ही है और बिगड़ने पर दूसरों का दोष भी उनके सर फूटता हो ।
*यह भी एक विडम्बना ही है फील्ड पर ड्यूटी करने वाले 55-60 साल के कांस्टेबल/ हेड कांस्टेबल भी जवान ही काहे जाते है सो काम भी जवानों की तरह करे ऐसी उम्मीद कि जाती है । *जिसके पास कानूनी अधिकार ता है पर मगर मानव अधिकार नहीं?
*शहीद मोहन चन्द्र शर्मा का नाम शायद ही किसी ने नहीं सुना होगा जिसका बेटा अस्पताल में डेंगू से लड़ता रहा और वो आतंक्वादियों कि गोली के शिकार हो गए नमन है ऐसन जांबाज़ पुलिस को
*वर्ष- 2007-2008 के दौरान ख़ाली एक वर्ष की अवधि में 3000 से अधिक पुलिस जवान शहीद हुए केवल २१ अक्तूबर को शहीद दिवस मना कर श्रधांजलि दे दिया जाता है .......।

उपरोकत कुछ बिन्दुओं द्वारा मैंने अपने man कि कुछ भड़ास निकली है क्युकी मै भी एक पुलिस ऑफिसर कि पत्नी हूँ और मैंने भी बहुत कुछ झेला है और उसके बावजूद भी पुलिस महकमे कि मीडिया द्वारा छिछालेदर होते देखती हूँ तो मन उद्वेलित हो जाता है ।



सरकार को इनके ऊपर विशेष ध्यान देने कि जरुरत है ,और मीडिया और हमें इनके दुसरे पहलु को भी समझना होगा यहाँ ये सब लिख कर पुलिस महकमे कि सफाई देना मेरा उद्देश्य नहीं है बल्कि आपलोग के मन में जो पुलिस को लेकर कटुता है उसमे थोड़ी कमी आ जाये। .....आखिर।।।।।
तिरंगा झंडा कि शान है वर्दी
भारत के पहचान है वर्दी
जन गन मन कि आन है वर्दी।

धन्यवाद्.............

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