अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, April 23, 2010

क्रंदन करता ये मन मेरा


 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
मानव जीवन पाकर भी
 व्यर्थ जीवन बिताया है
 
मन भटकाकर मोह माया में
यु ही समय  गवाया  है
बचपन बीता खेल कूद में
भोग वासना का यौवन  पाया
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
 
सुख दुःख संयोग वियोग में
मन को बस भरमाया है
भौतिकता कि चाहत में
खुद को बस बहकाया  है
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
 
एक तुम ही हो सर्वस्व मेरे
बाकी माया कि छाया  है
तुमको पाना लक्ष्य हो मेरा
यही समझ अब आया है
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
 क्या खोया क्या पाया है
 
 

7 comments:

  1. दीदी मै आपके भोजपुरी लेखन से तो पहले से ही परिचित था पर आज आपका ब्लॉग और हिंदी कविता देख कर मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ , आपका "क्रंदन करता ये मन मेरा " कविता पढ़ा बहुत ही उम्द्दा और जीवन के मूल्यों को दिखाती हुई एक दार्शनिक अंदाज की कविता है , सच मे बहुत ही सुंदर रचना बन पडा है, खास कर के last conclusion stenja.
    एक तुम ही हो सर्वस्व मेरे
    बाकी माया कि छाया है
    तुमको पाना लक्ष्य हो मेरा
    यही समझ अब आया है
    Ganesh Jee "Bagi"

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  2. कविता मन कि अभिव्यक्ति है| पारस कि तरह, ना जाने किस कण को सोने में बदल दे| आपके इस कविता में आर्त कि अधिकता मिली|
    एक यह रूप भी प्रशंशनीय है| हमारे कलम घिसाई पर भी नजर डालियेगा|
    http://humbhojpuriya.blogspot.com/

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  3. "सुख दुःख संयोग वियोग में
    मन को बस भरमाया है
    भौतिकता कि चाहत में
    खुद को बस बहकाया है"
    अध्यात्मिक सन्देश देती सुंदर रचना

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  4. Hello Sarojji,asthir man ki uthti asankhya lahare se janme aapke ek ek shabda dil ko choo lete hai..kuch panktiya usi kram me..
    जब मानव अपनों से पराया हो , परायो में भरमाया है ,
    उसके जीवन में असत , स्वार्थ ने पैर जमाया है ,
    भृष्ट हो उसने अपना जीवन गंवाया है ,
    जब ये सब उस प्रभु की माया है ,
    तो मेरा यह स्वरुप भी उस माया की ही छाया है..

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  5. Sarojji,uprokta panktiyo ke manthan se manaspatal pe ubhari kuch panktiya samarpit karna chahuga..
    इसलिए कर्म अपने किये जा ,
    परहित में जीवन जीए जा,
    ऐसा आदर्श बन , कि सब तुझसे प्रेरित हो ,
    परहित में जीए और जीवन रस प्रेम से पीये ,
    इससे ही संसार आनंद विटप बन जायेगा ,
    मत सोच कि क्या खोया और क्या पाया ,
    क्या जायेगा लेकर जग से ,
    और क्या था जो लेकर आया..

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  6. बहूत अच्छा लिखती हैं आप... क्रंदन करता ये मन मेरा क्या खोया क्या पाया हैं..
    कविता दिल को छु गयी... यूँही लिखते रहिये हमारी सुभकामनाएँ...

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