अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, October 22, 2010

"सोने की बालियाँ"

"तब के गेहूं की बालियाँ,
कितनी सच्ची लगती थी,
चूल्हे पर सिकीं रोटियों में
वाह! क्या स्वाद था,
अब के वोही बालियाँ
सोने की हो गईं हैं,
कुछ दाने मै भी सहेज लूं
बेटी के ब्याह  को काम आयेंगे,
इतनी महँगी चीज
भला कोई खाता हैं?
 
 
 
 

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