"गणित,जोड़ घटा गुणा ,भाग
बचपन में स्लेट से लेकर पन्नों तक
गणित के सवाल कठिन लगते थे,
पर मास्टर की छड़ी के डर से हल हो जाते,
.
गणित, अब जीवन का
जोड़+ निज सुख को औरों के सुख से
घटा -दुःख को औरों के दुःख से
गुणा* प्रेम का विश्वास से,
भाग% इर्ष्या का द्वेष से
कोई कठिन काम नहीं पर
हम हल करना ही नहीं चाहते
इस बात से अनभिग्य की
उसकी अदृश्य 'छड़ी' कब चल जाय"
बचपन में स्लेट से लेकर पन्नों तक
गणित के सवाल कठिन लगते थे,
पर मास्टर की छड़ी के डर से हल हो जाते,
.
गणित, अब जीवन का
जोड़+ निज सुख को औरों के सुख से
घटा -दुःख को औरों के दुःख से
गुणा* प्रेम का विश्वास से,
भाग% इर्ष्या का द्वेष से
कोई कठिन काम नहीं पर
हम हल करना ही नहीं चाहते
इस बात से अनभिग्य की
उसकी अदृश्य 'छड़ी' कब चल जाय"
अपने गणित के सूत्र से जीवन को अच्छा समझाया है | इसी शीर्षक से मेरी एक रचना भी है
ReplyDeleteबहन सरोज सिंह जी जीवन के गणित का आपने न्य अंदाज़ बनाया हे बहन जी तबियत खुस हो गयी नई चीज़ सिखने को मिली हे मुबारक हो . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान my blo akhtarkhanakela.blogspot he
ReplyDeleteसरोज जी,
ReplyDeleteवाह....जीवन को नए गणित के सूत्र में बाँध दिया है आपने....बहुत खूब...