सुर्य देव पाठक "पराग"जी की लिखी ये भोजपुरी कविता भोजपुरी साहित्य की एक् सुन्दर कृति है ...जो मुझे बहुत पसंद है ......
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"
"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
सेंकेल जाता कसी के धरम के लंगोटी,
पहिरे के ताज सभे,देखत बा ख्वाब,
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब
मधुमासी मौसम पर ,पतझर के पहरा बा
आईल बरसात तबो,रेत भरल सहरा बा,
चिखत बाते सवाल,कब मिली जवाब!
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"
कउओ अब बोलत बा,कोईल के बोली.
कउओ अब बोलत बा,कोईल के बोली.
हँसन पर पर हावी बा बकुलन के टोली,
चोर आ चुहाड़ के समाज पर रुआब
,कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब
"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
सेंकेल जाता कसी के धरम के लंगोटी,
पहिरे के ताज सभे,देखात बा ख्वाब,
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब "
"करनी दसकंधर के,सूरत बा के राम के,
"करनी दसकंधर के,सूरत बा के राम के,
स्वारथ के झोरी में मूर्ति आवाम के
असली मुखड़ा तोपल,लागल बा नकाब!
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"
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सुर्य देव पाठक "पराग"(अध्यापक )
उच्च विद्द्यालय ,कैतुकालछी
जीला -सारण(बिहार"
कठिन शब्द के हिन्दी अर्थ
१-कांट भारल =काँटों भरी
२-सेंकल=सेकना
३-पहिरे= पहनने
४-हंसन =हंसो
५-कउओ=कौवा
६=झोरी =झोली (झोला )
७-चुहाड़=लफंगे
८-तोपल-ढका हुआ
सच बात तो ये है की भोजपुरी में होने के कारण मैं इस कविता को पूरी तरह से समझ नहीं पाया ....माफ़ कीजिये क्योंकि मुझे भोजपुरी नहीं आती .....पर कविता के भावो को कुछ समझ पाया हूँ....मज़हब का आग ...वाली पंक्तिया पसंद आई ...........शुभकामनाये .....
ReplyDeleteकभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
भोजपुरी बोलनी नहीं आती लेकिन काफी समझ में आती है। एक तो मीठी-सी भाषा...उस पर आपका लिखना...काश! मैं भोजपुरी में लिख पाती...बहुत सुंदर लिखा है...
ReplyDeletesaroj ji..blog par pahli baar aayi..lekin ye bhojpuri palle hi nahi padi :)
ReplyDeleteआप ये हिन्दी ब्लॉग लेखन का कार्य करके सच्ची देश सेवा कर रही है। हिन्दी जो हमारी मातृ भाष इसका प्रचार प्रसार करना ही हर नागरिक का सच्चा धर्म है और वह आप कर रही है। आश है आप इसे ऐसे ही बनाये रखेगी
ReplyDeleteआपसे निवेदन है कि दूसरी भाषा की कविता लिखने के साथ उसके नीचे अगर कठिन शब्दों के हिन्दी अर्थ लिख दिये जाये तो कविता को समझने में ज्यादा सहायता हो सकेगी
‘‘ आदत यही बनानी है ज्यादा से ज्यादा(ब्लागों) लोगों तक ट्प्पिणीया अपनी पहुचानी है।’’
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
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बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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