कमाऊ बेटे से
माँ की फटी एडियाँ,रुखी दरारें
शायद देखी ना गयीं होंगी ...........
सो ले आया उसके लिए
एक जोड़ी गुलाबी चप्पल
पर जिसने ता-जिंदगी नंगे पाँव बोझा ढोते काट दी हो
अपना सुख- श्रृंगार अपने परिवार में बाँट दी हो
भला वो चप्पल उसका दुःख कैसे बाँट सकता है
वो तो बस उसके पैरों को काट सकता है
फिर भी बेटे के सकून को वो .....
रोज घर से निकलती है चप्पल पहन कर
कुछ दूर चल कर चप्पलों को धर लेती है सर पर
वो चप्पल उसके बोझ में इक इजाफा सा है
पर बेटे की ख़ुशी के आगे वो बिलकुल जरा सा है
~s-roz ~
अधूरे ख्वाब
"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Tuesday, April 24, 2012
"पाँव नंगे चप्पल है सरपर"
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माँ बेटे की खुशी के लिए यह बोझ भी सहर्ष उठा लेती है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletehardik Abhar Sangeeta ji
ReplyDeleteदोनों ही अपनी अपनी जगह सही.....दिल को छूती रचना सरोज जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सरस जी !!
Deleteहाँ ...बेटा सुकून से होगा तो माँ कुछ भी सह लेगी.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका शिखा जी !
Deleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार आपका यशवंत जी !
Deleteमन को छूते हुए भाव .. उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सदा जी !
Deletedono ki bhawnao ka samman ho raha hai. sunder prastuti.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका अनामिका जी !
Deleteमाँ का मन ऐसा ही होता है !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका प्रतिभा जी
Deleteसंघर्ष का बोझ ... बहुत खूब .. !!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका क्षितिजा जी
Deleteहार्दिक आभार आपका संगीता जी
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