अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, November 18, 2010

सियासत-ए-हस्तियाँ

"गर एक चिंगारी उठे तो, तो भभक उठती हैं , सियासत-ए-हस्तियाँ

और टूट कर पानी बरसे ,तो कहते हैं ,देखो! ढह रही हैं बस्तियां "
.
 
अभी हाल ही में दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में जो हादसा हुआ यदि उस अवैध निर्माण को पहले ही रोका गया होता तो इतनी निर्दोष जाने जो गई हैं वो न जातीं ...मेरी .श्रधांजलि है उन्हें............

1 comment:

  1. सरोज जी,

    आपके जज्बे को सलाम|

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