इस शहर के लोग
जो खुली आँखों से सोतें है
और बंद आँखों से जागतें है
अब मुर्गे की बांग से नहीं
मज़हबी बांग से जागकर
अंधी दौड़ में शामिल हो जाते हैं
ऐसे आलिम इंसानों के
कानून के क़ायेदे.. फ़ाख्ता हैं
इस शहर में अब तो....
जंगल राज ही नाफ़िज़ हो
कम से कम...
उनके अपने क़ायदे कानून तो होते हैं ?
गर कोई सैलाब आये तो
शेर, गाय, बकरी और चीता
गिद्ध, गिलहरी सांप और तोता
साथ एक ही नाव(नोवा) में होते हैं
अँधेरे में जब सहम जाते हैं
बया के घोंसले के चूज़े
तब वन के जुगनू जगमगाकर
उन्हें रौशनी का हौसला देतें हैं
गर पेट भरा हो शेर का तो
वो कभी हमला नहीं करता
सभी परिंदे और चरिंदे
अमन के गीत गाते हैं
कोयल अपना ठिकाना नहीं बनाती
उसके अंडों को भी कव्वे
अपनी जात का ही समझ
अपने परों की गर्मी देते हैं
इस शहर में जंगल राज ही नाफ़िज़ हो
कम से कम......
उनके अपने क़ायदे कानून तो होते हैं ?
~s-roz~
प्रशंसनीय
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteहार्दिक आभार राकेश जी
Deleteहार्दिक आभार राकेश जी
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ReplyDeleteसरोज जी आपकी इस कविता में एक प्रकार का जो सामाजिक चित्रण किया है जिसमे सब अपने स्वार्थ भाव से जीवन यापन कर रहे हैं आपका शीर्षक "जंगलराज " बहुत ही अच्छा है आप इसी प्रकार से अपनी कविताओं को
ReplyDeleteशब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकती हैं .........