अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, November 16, 2010

"फासला "

"बीते दिनों के गलियारों में,हमारे दरम्यां  फासला  बहुत था
पर तुम्हारे खतों से तुम्हारे दिल की धड़कन सुनाई देती थी
अब बिलकुल करीब हो,पर उस धड़कन का एहसास ही नहीं होता
खता तुम्हारी कोई नहीं ,शायद बाहर  शोर बहुत है आजकल "

2 comments: