अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, May 31, 2011

"यादों के जख्म "

सुनो ! 
तुम्हारे खयालो में गुम   
आज,गरम  पतीले से
ऊँगली जल गई 
फफोला निकल आया है
उसे मसलकर नमक लगा दूँ
म स कम ...आज !
तुम्हारी यादों के जख्म
दर्द तो ना  देंगे  ......!!
~~S-ROZ~~~

Monday, May 23, 2011

"इक ख्वाब संजोया है मैंने ,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना"

परिंदों से पूछा है मैंने
ठौर ठिकाना तिनकों का
प्यार का आशियाँ बनाने को
कुछ तिनके तुम ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने ,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है ,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....
जिसमे नेह की निवाड़ होगी
प्रेम की किवाड़ होगी
होगी विश्वास की इक खिड़की
और होगी मीठी तकरार की झिडकी
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....
घर में उजाला करने को
सूरज की रेज़े ले आउंगी
चंदा की चिरौरी करके तुम
चांदनी को घर ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना
घर को और सजाने को
अरमानो के झालर लटकाऊंगी
आँगन की तारीकी मिटाने को
तुम बन से जुगनू ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....

~~~S -ROZ ~~~

Saturday, May 21, 2011

तुम जो हस दो एकबार .......

"दरकिनार कर चेहरे की
उदास परतों को
तुम जो हस दो एकबार
मेरे लफ़्ज जाग उठे
नज़्म भी साँस लेने लगे
धड़क उठे ग़ज़लों के दिल
सफ़्हा दर सफ़्हा
किरदार जी उठे
हर्फ़ों को मानी मिल जाये
तुम जो हस दो एकबार .......
~~~S-ROZ ~~~

Saturday, May 7, 2011

"माँ की खुशबु "("मातृ दिवस "पर सभी मित्रों को शुभकामनायें )


'पीहर' आते  ही,'माँ' जब तू  गले लगाती है  
अपने हाथों से जब तू कौर बना खिलाती है  
तुझसे 'माँ' वही पहचानी  सी  खुशबु आती है
नए घड़े  के पानी से जैसे सोंधी खुशबु आती है "
~~~S-ROZ ~~~
 

Thursday, May 5, 2011

"ये कैसा प्रेम कैसी भक्ति है?"

प्रभु ! मै तुम्हे दूर से प्रणाम करती हूँ
क्यूँ, पास आकर तुम्हारा  हाथ नहीं थामती?
पिता समान तुम्हारे  चरण स्पर्श करती हूँ 
क्यूँ,  मित्र स्वरुप  गले नहीं लगा पाती  
पता है मुझे तुमसे, मिलन का मार्ग 
क्यूँ, उस मार्ग पर चलने का साहस नहीं जुटा पाती 
भक्ति से नैवेद्य,पुष्प अर्पण करती हूँ
क्यूँ, मीत समझ प्रीत नहीं कर पाती
जीवन पथ पर चलते चलते थक जाती हूँ
क्यूँ, तब अनंत विश्राम को  तुम्हारे पास आने से डरती हूँ !
प्रभु! तुमसे ये कैसा प्रेम ,कैसी भक्ति है?
~~~S-ROZ ~~~
 
 

Tuesday, May 3, 2011

"पावं जलते हैं,"

"सुनहरे ख्वाब!!!
जो सच होते नहीं फिर भी
क्यूँ आँखों में वो पलते हैं
चलो अब लौट चले,इस
तपते इंतज़ार के सहरा से
जो चल ना पड़े तो पावं जलते हैं,
~~~S ROZ ~~~

Sunday, May 1, 2011

"गावं और बुजुर्ग "

"गावं के घर कि दीवार ढह चुकी!
अब कोई नहीं रहता वहां,
सिवाय चमगादड़ों के
पर कराहती आवाजों में
बुजुर्गों कि दुआएं
अब भी वहां गूंजती है कानो में
~~~S-ROZ~~~