अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, November 29, 2010

"प्रिय!! आज तुम्हारा जन्मदिन "

प्रिय!! आज तुम्हारा जन्मदिन
क्या दूँ मैं तुम्हे 'उपहार' ?
बहुमूल्य ना सही ,हो सबसे भिन्न
एक क्षण विशेष को कैसे सजा दूं
लगे तुम्हे हर दिन जैसे 'त्यौहार'
तुम्हारे 'ह्रदय' में एक साज़ बजा दूं
 जो बजता रहे,सुमधुर,संबंधों  का,
अदभुद  ,सुर्गम्य ,सरगम  'संसार  '
हमारे 'हृदय' के,पुराने होते रंगों,
को रंग दूँ इन्द्रधनुषी प्यार और विश्वास के
रंगों से जिससे आ जाये संबंधों में नया'निखार'
"तुम्हारे जनम दिन में यही है मेरा 'उपहार "

Friday, November 26, 2010

बेटे !!! मै 'माँ' हूँ .(जीवन की राह में कुछ दूर अभी और चलना है )............

पहली बार जब' तुम' मेरी गोद में आये थे
वो छवि आज भी  आईने की तरह साफ है
दोनों मुट्ठी   भीचें ,आँखे अधखुली सी
गुलाबी होठ, ओह !!देवतुल्य छवि !!!
तभी हमने  तुम्हारा नाम 'देवांश' रखने का सोचा  
मुझे याद है ..तोतली जबान में तुम्हारा कहना
मम्मी "थुनो तो!! प्लीज दोडी  लेलो न !.....(गोदी)
और मटकते हुए मेरे सीने  से चिपट जाते
मेरे गोद की गर्मी  तुम्हे आराम देती थी
दोनों बाहें  गले में डाल तुम ऐसे सोते की
अक्सर मेरी सारी रात एक ही करवट गुजरती
तुम्हारा,आंचल खीच  और गलबाही डाल कर
अपनी जिद मनवाना,मुझे  खूब भाता  था ..
फिर, खिलौनों ,तितलियों और हमजोलियों का 
तुम्हारे जीवन में शामिल होना ....
मेरी ऊँगली छुड़ाकर उनके पीछे भागना  
और फिर सपनो भरा  बस्ता लिए स्कुल जाना
याद है सब!,!!शायद वो पहला कदम था ........
मेरे अंग का मेरे ही अंग से अलग  होने का
किसी हरकत पर मेरा 'डांटना'
तुमपर नागवार गुजरता है ,पर बेटे !!
मै अब केवल "माँ" ही नहीं बलके
एक मार्गदर्शक एक संस्‍कार,एक संवेदना भी हूँ   
धीरे धीर मै तुमसे पीछे होती जा रही हूँ
'जीवन  की  राह'  में साथ  कुछ  दूर और  चलना  है
फिर  तुम्हारे संग और भी कई रिश्ते जुड़ेंगे  
मुझे वो जगह अब धीरे धीरे खाली करनी होगी
मेरी'ममता की छांव'तुम्हारे लिए तब  काफी न होगी
कोई 'खुश लम्स' हमसफ़र के हाथों  नरमी
तुम्हारे 'जीवन' को खुशरंग फूलों सा संजों देगा
मेरा दिल !!! !!शायद तुमको खो देगा
मेरी आँखें तेरा रास्ता तकती रहेंगी
बेटे! मै माँ हूँ!! और 'मेरी किस्मत' 'जुदाई " है ...
 
 

Friday, November 19, 2010

"चंद खयालात "

"चंद खयालात बांटे हैं जो दिल के आपसे ....
वो तो फ़क़त "बोहनी" हैं "
आलम वो हो के,
'कलम' चले कागज़ पे और हर्फ़ उभरे दिलों में ....
मुझे वो 'बाट जोहनी' है"
~~~S-ROZ~~~
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"अब किसी की 'कारगुजारी' बुरी नज़र नहीं आती...'ज़माने' में
   जब से नज़र डाली है  हमने, अपने.... 'दस्ताने' में "
~~~S-ROZ~~~
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"इत्तेफाकन जो हस लिए थे साथ ..............
"चंद  लम्हात की ख़ुशी के  लिए ...............
"बाद उसके इंतकामन उदास रहे ".........
~~~S-ROZ~~~
  
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"हम मगरूर थे  अपने 'मेयार' पे  इस 'क़दर'
औरों की मजबूरियां  न  आयीं कभी  'नज़र'
काश के समय रहते हो जाती इसकी 'खबर'
के, 'पत्थर' को 'पानी' काट देता है, अक्सर"
    ~~~~S-ROZ ~~~~
 
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‎"थाली में जितना हम 'जूठन' छोड़ते हैं
मुला! उतने में ही कितने निबाह करते हैं
जो पुराने कपडे के बदल हम बर्तन खरीदते हैं
उतने में ही कई, ओढ़ते बिछाते,पहिनते हैं "
 "
~~~S-ROZ~~~
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Thursday, November 18, 2010

सियासत-ए-हस्तियाँ

"गर एक चिंगारी उठे तो, तो भभक उठती हैं , सियासत-ए-हस्तियाँ

और टूट कर पानी बरसे ,तो कहते हैं ,देखो! ढह रही हैं बस्तियां "
.
 
अभी हाल ही में दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में जो हादसा हुआ यदि उस अवैध निर्माण को पहले ही रोका गया होता तो इतनी निर्दोष जाने जो गई हैं वो न जातीं ...मेरी .श्रधांजलि है उन्हें............

Wednesday, November 17, 2010

जीवन का गणित "

"गणित,जोड़ घटा गुणा ,भाग
बचपन में स्लेट से लेकर पन्नों तक
गणित के सवाल कठिन लगते थे,
पर मास्टर की छड़ी के डर से हल हो जाते,
.
गणित, अब जीवन का
जोड़+ निज सुख को औरों के सुख से
घटा -दुःख को औरों के दुःख से
गुणा* प्रेम का विश्वास से,
भाग% इर्ष्या का द्वेष से
कोई कठिन काम नहीं पर
हम हल करना ही नहीं चाहते
इस बात से अनभिग्य की
उसकी अदृश्य 'छड़ी' कब चल जाय"

Tuesday, November 16, 2010

"फासला "

"बीते दिनों के गलियारों में,हमारे दरम्यां  फासला  बहुत था
पर तुम्हारे खतों से तुम्हारे दिल की धड़कन सुनाई देती थी
अब बिलकुल करीब हो,पर उस धड़कन का एहसास ही नहीं होता
खता तुम्हारी कोई नहीं ,शायद बाहर  शोर बहुत है आजकल "

Monday, November 15, 2010

'आशियाँ-ए-सुकूं'

" हम 'चाँद' भी खंगाल चुके
'आशियाँ-ए-सुकूं'  की चाहत में....
बेशक वहां 'अमन- ओ-चैन'  बाबस्ता है,
पर तभी तलक जब तलक के .
इन्सां के कदम वहां नहीं हैं  पड़े "

Sunday, November 14, 2010

"ये दिल क्या क्या मांगे है"

"जेहेन में छाया  है उसका ऐसा 'वकार,'
के फरेबी दोस्त वो '''फ़रिश्ते' ' ' सा लागे  है "
 
" बंजर दिल को  'सरसब्ज' किया अश्कों से,
फिर भी ये जालिम दिल 'सहरा' मांगे है "
 
"नहीं देखते लोग अपनी  नीयतों को,
और  शक्ले  देखने को आईना   मांगे है "

Thursday, November 11, 2010

"भावों के जोड़ तोड़"

‎"नाउम्मीद" लोग
अक्सर अपनी 'किस्मत' को रोतें हैं
'उम्मीद' बशर लोग
'कंगाली' में भी "दौलत की फसल" बोते हैं "
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"हम तमाम 'उम्र'
नए नए 'ख्वाब' पलकों पे संजोते हैं
जो 'ख्वाब' होते नहीं पूरे
वो न जाने क्यूँ 'आँखों' में चुभे होते हैं "
 
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‎"रातों को जाग कर,
तेरी यादों के चादर में ,
जड़े थे मैने जो 'सितारे' नायाब"
.
उन्ही सितारों को
'पैबंद' कहकर उसने
दे दिए न जाने कितने 'अज़ाब'
.
अज़ाब = पीड़ा, सन्ताप
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"अब  ना होगा 'दिल के घरौंदे' में कोई दरवाज़ा,
ना होगा कोई खौफ किसी 'दस्तक' का
"रौशनी' नहीं आती टपकते'आँखों के रौशनदान' से
अब तो डर है उस 'घरौंदे' में 'सीलन' का "

Monday, November 8, 2010

"खुदा भी कच्चा सौदेबाज़ "


 ‎"खुदा भी कच्चा सौदेबाज़ है
अपनी 'पाक नेमतों' का मूल
बंद मुट्ठियों में भर हमें इस जहाँ में भेजता है
और हम उसे बेमोल गवां देते हैं
जाते वक़्त 'सूद तो सूद'
मूल' भी नहीं होता उसे लौटने को
बेमुरौवती से खुले हाथ चले जातें है
पास उसके इस गफलत में
के वो खुश होके 'जन्नत' बख्शेगा "
 

Thursday, November 4, 2010

""देवदूत"

"प्रायः अंत:करण के दर्पण में
"देवदूत" सी एक छवि उभरती है
जो  मुझसे सदा यह प्रश्न करती है
क्यों  हो मिलनों को आतुर मुझसे?  
दूर रह कर भी तो हम पास रहा करते हैं,
जीवन रंगमंच में हम 'सह-कलाकार'  ना सही  
उर के सुर मंडप में तो हम साथ रमा करते हैं ?

 


 

Wednesday, November 3, 2010

""अबके दिवाली " "

 

"पहले के जैसे लोग थे,वैसे सामान भी हुआ करते थे 

त्योहारों  पर लोग क्या  दिलखोल कर मिला करते थे!!

.

मिटटी के चराग कतारों में क्या खूब जला करते थे

मचलती सी लौ फ़ना होने तक रौशनी बिखेरती थी!!

.

अबके "बिजली के बुलबुले' और लोग एक से हो गए हैं  

चेहरे पर नकली हसी और रश्क लिए गले मिला करते हैं

.

एक 'स्विच' की मोहताज़ ये बुलबुलें  फ़ना नहीं होती

बेजान सी रौशनी देते हुए हर साल यही जला करती है" !!