अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, April 27, 2010

कब् लोगे अवतार प्रभु तुम



 कब् लोगे अवतार प्रभु तुम, अब किसका तुम्हे इन्तजार है
दुख से जीवन घिरा  हुआ है ,चारों  ओर फैला अत्याचार है
शान्ति कहाँ  है मानव मन मे,जब हर तरफ कदाचार है
भौतिकता के इस दुनिया मे,बस फैला अन्धकार है
मानवता के मुल्यों पर दानावता का प्रचार है
कब् लोगे अवतार प्रभु तुम अब किसका तुम्हे इन्तजार है ?
.
प्यार वफा इमान यहाँ अब बिकने   को तैयार है
अपने अपनों  को लूट रहे यह कैसा सन्सार है
काम क्रोध मद् लोभ तृष्णा का फैला अन्धकार है
हत्या, आतंक,नफरत,घृणा,हर जगह अनाचार है
कब् लोगे अवतार प्रभु तुम,अब किसका तुम्हे इन्तजार है ?
.
मानव मानव का नाश करे ,यह मानवता कि हार है
अत्त्याचार .भ्रष्टाचार ,शोषण,बन गया अब  शिष्टाचार है  
आज त्रस्त है मानव मानव से,अब नही कहिँ गुहार है
लूट मची है ,हम लुटे दुनिया को हर करता यहि विचार है
कब् लोगे अवतार प्रभु तुम,अब किसका तुम्हे इन्तजार है?
 
 

Monday, April 26, 2010

मेरे पसंदिदा संग्रह ..२..गुलजार

रितुपर्णो घोष द्वारा लिखित गीत पिया तोरा कैसा अभिमान . पर गुलज़ार साहब की आवाज़ में उनकी पढ़ी हुई एक नज़्म भी है.. किसी मौसम का झोंका था..
गीत है पिया तोरा कैसा अभिमान... जितने खूबसूरत इसके बोल है उतनी ही मधुरता शुभा मुदगल जी ने इसे गाकर प्रदान की है.. ऋतपर्णो घोष गुलज़ार साहब को 'गुलज़ार भाई' कहते है.. और उनकी खास फरमाइश पर गुलज़ार साहब ने खुद अपनी लिखी नज़्म को अपनी आवाज़ दी है..
आप पढ़िए इस एक और बेजोड़ नज़्म को. और सुनिए खुद गुलज़ार साहब की आवाज़ में..

एक बार सुनने के बाद खुद आपको लगेगा की ये गीत सुन ना आपके लिए कितना ज़रूरी था..



किसी मौसम का झोंका था,
जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है
गये सावन में ये दीवारें यूँ सीली नहीं थीं
ना जाने इस दफा क्यूँ इनमे सीलन आ गयी है
दरारें पड़ गयी हैं और सीलन इस तरह बैठी है
जैसे खुश्क रुक्सारों पे गीले आसूं चलते हैं

ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये घर कि खिड़कीयों के कांच पर उंगली से लिख जाती थी सन्देशे
देखती रहती है बैठी हुई अब, बंद रोशंदानों के पीछे से

दुपहरें ऐसी लगती हैं, जैसे बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं,
ना कोइ खेलने वाला है बाज़ी, और ना कोई चाल चलता है,

ना दिन होता है अब ना रात होती है, सभी कुछ रुक गया है,
वो क्या मौसम का झोंका था, जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया

इस गीत को आप यहाँ सुन सकते हैं ...



Saturday, April 24, 2010

मेरा पसंदीदा संग्रह....


"दायरा" काफी आजमी जी कि लिखी हुए जो मुझे बहुत पसंद है ....

"रोज़ बढ़ता हूँ जहा से आगे ,फिर वही लौट के आ जाता हूँ
बारहा तोड़ चूका हूँ जिनको ,उन्ही दीवारों से टकराता हूँ '

रोज़ बसते हैं कई शहर नए,रोज़ धरती में समां जाते हैं
जलजले में थी जरा सी गर्मी,वो भी अब रोज़ आ जाते हैं
जिस्म से रूह तलक रेत ही रेत,ना कही धुप ना साया ना सराब
कितने अरमान हैं किस सहरा में ,कोन रखता है मजारों का हिसाब
नब्ज़ बुझती भी भड़कती भी है ,दिल का मामुल है घबराना भी
रात अँधेरे ने अँधेरे से कहा .एक आदत है जिए जाना भी
कौस एक रंग कि होती है तुलुए,एक ही चाल भी पैमाने कि
गोशे गोशे में खड़ी है मस्जिद,शक्ल क्या हो गई मैखाने कि
कोई कहता है समंदर हु मै ,और मेरी जेब में कतरा भी नहीं
खैरियत अपनी लिखा करता हु अब तो तकदीरका खतरा भीनहीं
अपनी हाथों को पढ़ा करता हु,कभी कुरान कभी गीता कि तरह

चंद रेखाओं में सीमाओं में ,जिंदगी क़ैद है सीता कि तरह
राम कब लौटेंगे,मालूम नहीं,काश रावण ही कोई आ जाता .....

Friday, April 23, 2010

क्रंदन करता ये मन मेरा


 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
मानव जीवन पाकर भी
 व्यर्थ जीवन बिताया है
 
मन भटकाकर मोह माया में
यु ही समय  गवाया  है
बचपन बीता खेल कूद में
भोग वासना का यौवन  पाया
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
 
सुख दुःख संयोग वियोग में
मन को बस भरमाया है
भौतिकता कि चाहत में
खुद को बस बहकाया  है
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
क्या खोया क्या पाया है
 
एक तुम ही हो सर्वस्व मेरे
बाकी माया कि छाया  है
तुमको पाना लक्ष्य हो मेरा
यही समझ अब आया है
 
क्रंदन करता ये मन मेरा
 क्या खोया क्या पाया है
 
 

कुछ अहसास मेरी नजरों से

***********************
प्यास.....
खुश्क होठों पर जुबान फिराती नजरें
पानी कि तलाश में
******************************
आसूं
वाह अव्यक्त दुःख जो कहा ना गया मुख से
मगर बह गया ....
आँखों से ....
*****************
जीवन मृत्यु
जीवन एक प्रश्न
और ...
मृत्यु सदा उत्तर होता है
****************************
वर्तमान
अतीत कि ड्योढ़ी पर खड़ा
भविष्य को तकता पल.....
*****************************
वक़्त
सबसे बड़ा शिक्षक.......
मगर अपने किसी भी शिष्य को
जीवित नहीं छोड़ता ...
******************************
आत्मा
परमज्योति परमात्मा से निकली हुई
वह पवित्र जोत
जो हाड मॉस के इंसान तक आते ही
दूषित हो जाता है
और उसे पुनह पवित्र कर
विरले ही उस परमज्योति में विलीन हो पाते हैंta
****************************
रिश्ता
अकेलेपन से दूर
किसी दुसरे से बंधता स्निग्ध
.....सम्बन्ध
**************************
तुम .......
तुम समाय हो मुझमे किसी पानी कि तरह
जहाँ पटाता है जेहन किसी तनहाई कि तरह
खुदा करे के रह जाऊं ना कभी
अधूरी
किसी कहनी कि तरह ....
************
इंसान ......
एक पतंग जिसकी डोर विधाता के हाथों में है .....
एक नाचता बंदर जिसका मदारी परमात्मा है
******************
सीमा
संबंधो कि तीव्रता में लागी रोक
और
शक्ति को बांधती
...अकाट्य रेखा
***********************
ठोकर
लापरवाही का अहसास कराती
और
जिंदगी कि रफ़्तार को रोकती
......अड़चन
************************

वो पाकिस्तानी सही मायने में इंसान था"


 

"मेरी यादगार यात्रा दिल्ली से बोस्निया तक कि, ये घटना तब कि है जिस वर्ष 9/11/2001 में अमेरिका में आतंकवादी घटना घटित हुई थी।"

आज से करीब ८ वर्ष पूर्व  पहले .उस दौरान  मेरे  पतिदेव 1 वर्ष के लिए  यूनाइटेड नेसन पुलिस में( डेपूटेशन   पर  )बोस्निया (यूरोप)गए हुए थे। और मै समय मै धनबाद (झारखण्ड) में थी।.पतिदेव को गए ६ माह बीत चुके थे और उन्हें छुट्टी में(अगस्त)में  भारत आना था पर किन्ही  कारणों   उन्हें छुट्टी नहीं मिली  तो उन्होंने कहा कि क्यू नहीं तुम ही यहाँ आ जाओ कुछ दिनों के लिए ,मै तुम्हारा स्वीटज़रलैंड  देखने का सपना पूरा करा दूंगा ।...बस अँधा क्या मांगे दो आँखे .....मै तो  जैसे अपने को फिल्म चांदनी कि श्रीदेवी और पतिदेव को हृशिकपूर ही समझ कर स्वीटज़रलैंड के ही ख्वाब देखने लगी ,फटाफट अपने भैया से बोलकर शेंघेन वीसा(यूरोप  के 7 देशो का)बनवा लिया और 2 माह पहले ही टिकट भी बुक कर्वा लिया।
 
पर जब  ११ सितम्बर को जब मैंने टी वी में "वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर को ढहते हुए देख रही थी ......बिलकुल उसी क्रम    मे स्वीटज़रलैंड के  ख्वाब कि ईमारत  भी ढहती हुई प्रतीत होने लगी, क्युकी समाचार में ये दिखा रहे थे कि आतंकवादियों ने और भी हवाई हमले कि धमकी दी है इसलिए  सभी अपनी  हवाई यात्रा निरस्त्र कर  रहे थे.अम्मा बाबूजी ने भी जाने से मना कर दिया ,एक तो पति से मिलना और यूरोप घूमने कि ललक दोनों पर काले बादल  घुमड़ने लगे ।....
 
मगर तभी मेरे चहरे पर हरियाली छा गई जब पतिदेव का फोन आया कि नहीं आ जाओ कुछ नहीं होगा ।
टिकट भी कट ही चूका था २० अक्तूबर का "एरोफ्लोट एयर लाइंस(रस्सियन) जो कि पहले मास्को तक जाती फिर वहा से मुझे कनेक्टिंग फ्लाईट से जागरेब (क्रोअसिया) जाना था फिर बाय  रोड बोस्निया जाती जागरेब में पतिदेव लेने आनेवाले थे .....मै इतनी खुश थी कि सपने में भी यूरोप ही पहुंची रहती थी ।
 
खैर वो दिन भी आ पहुंचा जिसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी२०  अक्तूबर कि सुबह ५ बजे कि उड़ान थी सो १२ बजे रात में ही चेकिन के लिए एयर पोर्ट आ जाना था,और पहली बार मै विदेश यात्रा कर रही थी सो पतिदेव कि तरफ से एक पत्र के रूप में एक पूरी गाइड लाइन मिली हुई थी कि कैसे मुझे सारी  फारमेलिटीफारमेलिटीस.......निभानी हैं ।.अम्मा बाबूजी और भैयासारे  लोग रात को १२ दिल्ली एयर पोर्ट पर छोड़ कर चले गए ।
 
मै जब एअरपोर्ट के अन्दर पहुंची तब थोड़ी घबराहट होनी शुरू हुई फिर भी लगेज  चेक करा कर एक जगह बैठ कर दिल्ली एअरपोर्ट का नजारा देखने लागी ,जो एअरपोर्ट एक दम खाचाखाक भरा रहता था आज एकदम खाली खाली लग रहा था ..बहुत कम पेसेंजेर थे ,2 घंटे बाद घोषणा हुई कि जिस फ्लाईट से मै जाने वाली हु वो १२ बजे दिन में जाएगी यानि कि ६ घंटे लेट ,थोडा उत्साह वही ठंडा हो गया ....और एक डर और सताने लगा कि मास्को से जो कनेक्टिंग फ्लाईट है वो ना छुट जाये कुकी मास्को में मुझे ८ घंटे के बाद वो फ्लाईट पकडनी थी 2 घंटे का अंतराल अब भी था इसलिए उम्मीद थी कि वो फ्लाईट नहीं छुटेगी बहरहाल जोश   अभी   इतना  था  कि  .मैंने पूरी रात एक चेयर  पर बैठ कर बिता दिया ,इसी बीच दो  लडकियों से दोस्ती होगई  जो कि मास्को मेडिकल कि पढाई करने के लिए जा रही थी तबमुझे थोड़ी तसल्ली हुई कि चलो मास्को तक का तो साथ मिला।
 
आखिर सारी ओउप्चारिक्ताएं   निभाने के बाद जहाज में बैठ गई । अन्दर बहुत सी सीटें खाली थी बहुत कम यात्री थे ,और मै रात भर  सो भी नहीं पाई थी सो तीनो सीट कि हेंडल उठा कर आराम से सो गई ....8  घंटे का सफ़र कैसे ख़तम हुआ पता ही नहीं चला मास्को पहुचने का जब अनाउंस  किया गया तब नींद खुली ।
 
बहार निकल कर जब जब काउंटर पर पहुंची और अपना बोर्डिंग पास  दिखाया रस्सियन महिला ने कुछ देर तक मेरे बोर्डिंग पास को निहारा फिर फोन पर अपनी भाषा में कुछ बात कि फिर मुझसे टूटी फूटी अंग्रेजी में बोली कि आपकी फ्लाईट आज नहीं जाएगी 23  को सुबह 6  बजे जाएगी .आप कुछ देर वहा  इन्तजार कीजिये आपको होटल पहुंचा दिया जायेगा "....इतना सुनने के बाद तो मुझे लगा कि मुझे चक्कर आ जायेगा बस लग रहा था कि ये जमीन फटे और मै समां जाऊ "हे भगवान तीन रात मास्को में अकेले कैसे काटूँगी.......मुझे अम्मा बाबुजी कि बाते याद आने लगी कि मत जाओ काश उनकी  बात मान ली होती .......अन्दर से रोने का मन कर रहा था पर अपने को बहुत काबू किया हुआ था मै ये नहीं दिखाना चाह  रही थी कि मै पहली बार सफ़र कर रही हूँ ।
 
बहरहाल जहा बताया गया,वहा जाने पर मुझे  कुछ राहत महसूस हुई क्युकी मुझे वहा कुछ भारतीय लोग दिखे वही जाकर एक कुर्सी पर बैठ गई । अब चिंता हुई कि सबको खबर  कैसे करू क्युकी उस समय मेरे पास मोबाइल भी नहीं था.एअरपोर्ट पर जगह जगह फोन बूथ बने हुए थे पर वो सब तब मेरे लिए बेकार होगये जब मुझे पता चला किफोन कार्ड  रूबल से मिल सकेगा डालर  से नहीं  ।  अब मै बिलकुल ही रुआंसी हो गई और फिर उसी कुर्सी पर आ कर धम से  बैठ गई ,मेरे बगल में एक एक आदमी मुझे बड़े ध्यान से देख रहा था ,उसने मुझसे पूछा कि क्या आपको कॉल करना है कही ? मेरी आवाज और भर्रा गई केवल सर हिला हा में हिला दिया ,आप को        "अर्जेंट  है तो मेरे सेल से कॉल कर सकती है" 
 
इतना   सुनते ही मैंने संकुचाते  कहा प्लीज  बस एक कॉल अपने पति  को करके बता दू कि फ्लाईट  २३ को यहाँ से जाएगी...उसने तुरंत अपने सेल से नंबर मिला कर पति से बात करा दी .....बात करने के बाद बहुत राहत महसूस हुई...मैंने फिर उस महोदय को थैंक्स कहा और युही पूछने लगी आप इंडिया से कहा से हैं और कहा जाना है ?
उसने बोला "मै सुहैल करांची .......से कनाडा भाई के पास जाना है "
जबतक उसने सुहैल बोला मुझे ठीक लगा पर जैसे ही उसने करांची बोला मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मै एक आतंकवादी के बगल में बैठी हूँ ,हलकी दाढ़ी  थी उसकी रंग गोरा उम्र करीब 25-30 कि .......वो बिलकुल वैसा ही नज़र आने लगा
 
मै कुछ बहाने से वहा से उठ कर एक बुजुर्ग पंजाबी महिला थी उनके बगल में आ कर बैठ गई और उनसे बात करने कि कोशिश  करने लगी उस महिला को हिंदी भी नहीं आती थी केवल  पंजाबी बोलरही थी वहा जितने लोग रुके हुए थे उनमे एक बुजुर्ग पंजाबी जोड़ा ,  एक जोड़े कि नई नई शादी हुई थी पठानकोट के रहने वाले थे ,एक श्रीलंका का था जो अपने को पृष्ट(इसाई पुजारी) बता रहा था उसकी उम्र भी करीब45-50 का रहा होगी  ,और एक वो पाकिस्तानी ,मुझे छोड़ कर सबको टोरेन्टो जाना था ,जागरेब जाने वाली केवल मै थी ,उनलोगों कि भी फ्लाईट 23 को 10  बजे थी ,आतंकवादी धमकी कि वजह से काफी फ्लाईट निरस्त्र कर दी जारही थी 
रात के १२ बज गए एअरपोर्ट पर ही खाना खिला कर हमलोगों को एअरपोर्ट के निकट ही "नोवाटेल "होटल में ठहराया गया ,१४ माले पर सबको एक एक रूम दे दिया गया , मैंने जान बुझ कर बुजुर्ग दंपत्ति के बगल वाला रूम  लिया क्युकी एक तो उनलोगों को अपना रूम खोलना बंद करना हीं आ रहा था और भी कई दिक्कते हो रही थी वो भी बेचारे अपने बेटे बहु के पास पहली बार जा रहे थे .इसलिए मै उनका सहारा बन गई और वो मेरा मुझे भी ऐसा लगरहा था कि मेरे साथ कोई है ।,
 
हमलोगों को एक तरह से कैद ही किया गया था केवल तीन समय नास्ता दोपहर का खाना और रात्री भोजन के समय ही लिफ्ट का ताला खोला जाता रूम में फोन कर दिया जाता , एक  सिक्यूरिटी वाला आता और हमसब को एकसाथ ही नीचे डायनिंग  हाल तक लेजाता ,फिर खाने के बाद ऊपर लाकर लाक कर देता था,एक एक फोन कार्ड दे दिया गया था जिससे केवल ३ कॉल कही भी कर सकते थे ,
 
वो पाकिस्तानी कई बार बात करनी चाही पर मै हेलो हाय करके इग्नोर  कर देती ,हमलोगों कि मुलाकात तीन समय होती डायनिंग हॉल में होती ,मेरे मेज पर अंकल आंटी व श्रीलंका का जो अपने को पृष्ट बोलता था वो बैठता था उससे अक्सर इसाई धर्म व हिन्दू धर्म कि ही बाते होती बाचीत करने में वो ठीक लगा बाकि जो नए  शादी शुदा दम्पति थे उनकी तो लाटरी  लग गई थी दीन दुनिया से बेखबर तीन दिनों कि ऐश थी फ्री में ,वो पाकिस्तानी बिलकुल अलग बैठता था ,
 
असल घटना  घटित हुई आखरी रात को डायनिंग  हॉल में जब हम पहुंचे तो उस इसाई के नक्से ही अलग थे शराब के नशे में धुत्त बगल में जब बैठा तभी मुझे कुछ अजीब लगा ,उसके बाद जब उसने बोलना चालू किया ""सम बडी मेकिंग मी क्रेजी ...यु  शुड  एन्जॉय यौर लाइफ  ....और भी पता नहीं क्या क्या मुझे कुछ ठीक नहीं लगा मै वहा से उठकर जाने लगी तब झट उसने मेरा हाथ पकड़ कर जबरजस्ती वही बिठाने लगा  , उसकी उम्र का लिहाज कर के पहले तो  मैंने हाथ झटकते हुए कहा कि   "प्लीस लीव माय हैण्ड "उसने और जोर से पकड लिया,    अंकल आंटी तो भौंचक थे कि क्या हुआ , युवा जोड़े ने मुड कर देखा फिर खाने में मशगुल हो  गए , सिक्यूरिटी गार्ड को बुलाने लगी उसे अंग्रेजी समझ नहीं आरही थी वो समझ पता,इससे पहले ही वो पाकिस्तानी झटके से आया उससे मेरा हाथ छुड़ाते हुए   दोनों हाथ ऐंठ कर पीछे कर धकेलते हुए दीवाल पर उसका सर धम भिड़ा कर बोलने लगा "
"साले तुमको तमीज नहीं कि किसी लेडी से कैसे पेश आते है ?"
 
मै इतना घबरा गई कि दौड़ते हुए सिक्यूरिटी गार्ड के पास गई और कहा कि " आइ वांट टू गो माय रूम "प्लीज।।।
उसको भी ये अहसास हो गया कि कुछ गड़बड़ होगया है वो तुरंत मुझे मेरे रूम तक छोड़ कर आ गया ,
वो सारी रात मैंने बेड पर बैठे हुए गुज़ार दी ।,फोन कि घंटी बजती रही पर हिम्मत नहीं हुई कि उठा लू,४
 बजे वैन आ गई एअरपोर्ट के लिए ,जाने के समय एक बार मन हुआ कि उस पाकिस्तानी का दरवाजा खटखटाकर उसे गलत समझने के लिए माफ़ी मांगू और रात कि घटना के लिए उसका आभार प्रकट करू ....पर संकोच वश हिम्मत नहीं जुटा पाई .....।
 
दो घंटे में मै जाग्रेव पहुँच गई और जब एअरपोर्ट पर पतिदेव को देखा तो जान में जान आई ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई जंग जीत कर आ रही हूँ ,रास्ते में मैंने सारी घटना बताई तो कहने लागे कि "तुम्हे कमसे कम उसको थैंक्स तो बोल देना चाहिए था ,यहाँ तो मेरा सबसे अच्छा दोस्त ही पाकिस्तानी है .ये सुन कर मुझे अपनी सोच  पर ग्लानि होने लगी ,तब से आज तक उस अपराध बोध से उबार नहीं पाई हूँ ।,अभी भी मन में एक आस रहती है कि कास वो एक बार मिल जाये और मै उससे माफ़ी मांग सकू ......शायद इस  घटना का यहाँ जिक्र कर के मै अपने को हल्का महसूस कर सकू ..........।।।।।।

 



Thursday, April 22, 2010

"अधबनी लड़की कि दुहाई"

कन्या भ्रूण को पैदा होने से पहले ही मार देना प्रगतिशीलता की देन है जिसे तकनीकी तरक्की ने आसान बना दिया है. लोग उसी डाल को काट रहे हैं जिस पर बैठे हैं. मूर्खता ही नहीं यह एक शर्मनाक कर्म है. इंसान के बनाये कानून का ही उल्लंघन ही नहीं, खुदा के कानून का भी उल्लंघन है





"अधबनी लड़की कि दुहाई है ।
माँ के कोख से ये आवाजआई है ।
सुनकर किस का ना दिल पिघल जाय।
माँ बापू क्यू बने हो हरजाई।
मरने के पहले ...........
मै आपन कातिल से थोडा गुफ्तगुं कर लूं
मेरे दिल से उठी ये घोर व्यथा है ।
मै तो तुम्हारे प्यार कि निशानी हु,
बापू ! तुम तो इस बाग़ के माली हो।
फिर मुझे फूल बनने से क्यूँ रोकते हो?
बाहर कि सुगबुगाहट से जाहिर है ,
अब मेरा क़त्ल होने वाला है ।
कल डॉक्टर माँ को सूई चुभोने वाला है ।
माँ बापू कि जिद्द ये कहती है ,
कि मै ये दुनिया नहीं देख पाऊँगी।
हाय!मैं फरियाद करू भी तो किससे?
मै तो रो भी नहीं सकती कोख में ,
रोता ओ वो है जो जनम लेकर बहार आता है ।
अपने इस सोच को बदल बापू!
मुझे भी जीने का एक मौका दे दो बापू!
इस दुनिया में तेरा नाम करुँगी ।
हे! माँ तू इतनी कठोर ना बन
अपना दूधऔर आँचल के छाओं से दूर ना कर ।
बस एक बार लड़की कि माँ देख बनकर
बस एक बार लड़की कि माँ देख बनकर ।।
*भूण परीक्षण पर हो रहा खेल इस कडवी सच्चाई को और भी सामने लाता है । सरकार भले ही कितने नियम कानून बना ले अगर हमारे दिल मे लडका और लडकी मे अन्तर समा चुका है तो उसे कोई भी कानून बदल नही सकता । आवशकता है हमारी सोच , हमारी विचारधारा मे बदलाव की ।



"वर्दीधारी के प्रति हमारी सोच "

From a pool of more than 3000 entries,dis entry made it into the final list of winners of the Hai Baaton Mein Dum Contest!
आज कि समाज में हमारे पुलिस महकमे कि जो छवि है वो किसी से छुपी नहीं है पर यहाँ मै उनकी दुसरे पहलु से अवगत करना चाहूंगी....
मै "सी आई एस ऍफ़" (नागपुर )के "फॅमिली वेलफेअर अध्यक्ष" के नाते वर्दीधारी और उनके परिवारों को बहुत करीब से देखा है ,उनकी व्यक्तिगत-पारिवारिक जीवन कितना कठिन और दुरूह होता शायद इसका अंदाजा बाहरी व्यक्ति नहीं लगा सकता।
















"बाबूजी आज घर जल्दी आओगे ना क्यू रानी ?आज क्या है ?
जा बाबू तुम्हे कुछ याद नहीं रहता ,आज हमारा जन्मदिन है ।
बाबू का चेहरा कुम्भलाया ,क्या कहूँ बेटी से कुछ ना सुझाया
आज मंत्री जी को आना है।......
वी आई पी ड्यूटी है घर नहीं आ सकता ,
वर्दी पहनते सोचने लगा अब कोन बहानाकरूँ,पैंट खिचती बिटिया बोली,
क्या बाबू होली, दिवाली, ईद, पर भी तुम घर नहीं रहते ।
मीना को देखो उसके बाबू हर त्युहार मिठाई खिलौना लाते हैं ।
तुम तो घर पर ही रहते नहीं, हमारी दूरी कैसे हो सहते ?
बाबू कि आँख भर आई बात बदलते बोले,बोल रानी तुझे क्या लाऊं ?
रानी का चेहरा खिल आया ,बोली मीना के जैसी गुडिया लाना ।
फिर सोच बोली, गुडिया चाहे मत लाना,बाबू घर जल्दी आ जाना ।
भारी मन से बाबू गए ड्यूटी, यही सोचते कि,साहब से कैसे मिलेगी मुझे छुट्टी ?"


" काम चोर पुलिस".निकम्मी पुलिस,भ्रष्टाचारी पुलिस,और ना जाने क्या क्या ? रोज के समाचारों में यही रहता है शायद ही कोई हो जिसने पुलिस वाले के भीतर झाँकने कि कोशिश कि होगी । मै यहाँ कुछ बिन्दुओं द्वारा उनको आपके सामने दर्शाने कि कोसिस करती हूँ..।
*दर असल पुलिस को लेके सामाजिक सोच नेगेटिव होने का कारण जगजाहिर है असल में हमलोगों कि आदत है कि हर बात के लिए पुलिस को दोष दे ।पुलिस यदि अच्छा काम करे ता कुछ भी प्रसंशा नहीं मिलती ! बहुत हुआ तो विभागीय प्रोमोशन मिल जायेगा !
*अपने देश में यदि कही कोई बलात्कार के घटना घटित हुई तो १०० करोड़ जनता का नाम नहीं लिया जाता वरण जिसने ये कुकर्म किया है उसे दोषी करा दिया जाता है पर यदि किसी पुलिस वाले ने ये कुकर्म किया पूरा पुलिस डिपार्टमेंट बदनाम होजाता है सब पूरे पुलिस महकमे को ही एक बलात्कारी के दृष्टि से देखने लगती है !ये पुलिस वाले भी कहीं आसमान से नहीं आते हमारे बंधू बांधव और रिश्तेदार ही होते हैं ।
*सोचिये जब बेटी के साथमुस्कुराने का वक्त हो तब उनको वी आई पी ड्यूटी में जाना पड़े बाप बीमार है और सिपाही बेटा नौकरी बजा रहा हो ,तब वो पूरे मनोबल से कैसे ड्यूटी करेगा ?महीनो सालो परिवार से दूर रह के ड्यूटी करना कितना कठिन होता है ।
*आज भी उन्ही प्रशिक्षण तकनीक और उपकरनो का उपयोग कर जवान तैयार किये जाते हैं जो वर्षों पहले [ अंग्रेज जमाना या 1865 माडल कहा जाता tha] नकार दिया गया हैं मुझे याद है तुकाराम आम्ब्ले जिन्होंने अजमल कसब के इ के-४७ का सामना डंडे से किया और ८ गोली सिने पर खा ली यदि वो गोली खा कर कासब को पकड़ा नहीं होता तो ना जाने कितने और बे मौत मरते ,मै तो कहती हूँ कि उसे कासब ने नहीं सरकार ने मारा है यदि उसके पास भी आधुनिक हथियार होते तो शायद वो जिन्दा होता ।

*होली,दीवाली,ईद,दीवाली, सब राष्ट्रिय छुट्टी के दिन भी त्यौहार का मजा ना लेकर ड्यूटी बजाना पड़े तब ऐसे में पुलिस मन के संवेदना का हरण ही है ना ?

*अक्सर हमने लोगो से कहते सुना है "कि हमलोग टैक्स किसलिए भरते है अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस को तनख्वाह हमारे टैक्स से दिया जाता है,"मगर ये कोन समझाए कि पुलिस को तनख्वाह खाली दिन में ८ घंटा ड्यूटी करने के मिलते हैं पर जो 24 घंटे में कोई काम का घंटा तय न हो उस पर भी लगातार ड्यूटी करे और जगह ओवर टाइम का अतिरिक्त पैसा मिलता है वर्दीधारी को नहीं मिलता ।

*जो एजेन्सी के संख्या बल रोज बढती जनसंख्या और अपराध के अनुपात में हास्यास्पद अंक या नगण्य है [ पुलिस में अक्सर एके हौसला अफजाई के जुमला के रूप में इस्तेमाल किया जाता है कि एक सिपाही पूरे गाँव के हड़का आता है और एक थानेदार अपने इलाके का मालिक होता है पर अब हकीकत क्या है , चैतन्य जनता संग अपराधी भी समझने लगे हैं]
*जो आम से दूर होकर सदैव ख़ास(नेता ,मंत्री) के पास की ड्यूटी करना पड़ता है और जहाँ की एक ही जवान सफ़ेद वस्त्रधारियों की सुरक्षा, अपराध विवेचना, पतासाजी, धर पकड़ से लेकर मण्डी-मेले और ट्रैफिक की व्यवस्था सब में पारंगत हो और सब कर सके ऐसी उम्मीद कि जाति है।
*जब किसी आई पी एस कि ड्यूटी किसी अनपढ़ नेता कि सुरक्षा में लगा दिया जाए और उस नेता द्वारा उसे गाली खाने को मिले तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसके मान पर क्या बिताती होगी ।
*जिसके बढ़िया काम करने पर कभी-कभार यह कह दिया जाता है कि ठीक है !!ये तो उसका काम ही है और बिगड़ने पर दूसरों का दोष भी उनके सर फूटता हो ।
*यह भी एक विडम्बना ही है फील्ड पर ड्यूटी करने वाले 55-60 साल के कांस्टेबल/ हेड कांस्टेबल भी जवान ही काहे जाते है सो काम भी जवानों की तरह करे ऐसी उम्मीद कि जाती है । *जिसके पास कानूनी अधिकार ता है पर मगर मानव अधिकार नहीं?
*शहीद मोहन चन्द्र शर्मा का नाम शायद ही किसी ने नहीं सुना होगा जिसका बेटा अस्पताल में डेंगू से लड़ता रहा और वो आतंक्वादियों कि गोली के शिकार हो गए नमन है ऐसन जांबाज़ पुलिस को
*वर्ष- 2007-2008 के दौरान ख़ाली एक वर्ष की अवधि में 3000 से अधिक पुलिस जवान शहीद हुए केवल २१ अक्तूबर को शहीद दिवस मना कर श्रधांजलि दे दिया जाता है .......।

उपरोकत कुछ बिन्दुओं द्वारा मैंने अपने man कि कुछ भड़ास निकली है क्युकी मै भी एक पुलिस ऑफिसर कि पत्नी हूँ और मैंने भी बहुत कुछ झेला है और उसके बावजूद भी पुलिस महकमे कि मीडिया द्वारा छिछालेदर होते देखती हूँ तो मन उद्वेलित हो जाता है ।



सरकार को इनके ऊपर विशेष ध्यान देने कि जरुरत है ,और मीडिया और हमें इनके दुसरे पहलु को भी समझना होगा यहाँ ये सब लिख कर पुलिस महकमे कि सफाई देना मेरा उद्देश्य नहीं है बल्कि आपलोग के मन में जो पुलिस को लेकर कटुता है उसमे थोड़ी कमी आ जाये। .....आखिर।।।।।
तिरंगा झंडा कि शान है वर्दी
भारत के पहचान है वर्दी
जन गन मन कि आन है वर्दी।

धन्यवाद्.............

http://..http://knol.google.com/k/वर-द-ध-र-क-प-रत-हम-र-स-च#