अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, September 18, 2013

"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम"(हम दूब (हरियाली)की तरह हर बार उगें है )

गए लम्हात के सोये तूफानों में
ख़ामोशी ............
माँ, की तरह एकटक चेहरा देखती रही
वो ,खुश्क आँखों में नहीं
नम आस्तीनों को निहारती रही
उसके सवालात सरकारी वकील थे
और जवाब ..............

जवाब थे ......किसी मुजरिम की मानिंद
उनसे गुरेजां .....!

इन सब से बे-ख़बर
वक़्त तसल्ली का कांधा आगे बढाता है
और राजदाँ हवाओं के मार्फ़त
"रूमी "के बेनजीर लफ़्ज़ों को
मेरे कानों की सीपियों में
गुहर की मानिंद डालता है
"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम"
(हम दूब की तरह बार-बार उगे हैं )

के तभी लॉन में खिले
सभी गुलों के रुखसारों पर
तुम्हारी हसीं तब्बसुम तैर गई है
गेराज की खिड़की पर
जो नीले खुबसूरत से अंडे चिड़िया ने सहेजे हैं
एक एक कर के चूजे बाहर आ रहे हैं
जो तुम्हारे लौट आने का संदेशा है
नज़्मों में जो बिम्ब क़ैद किये थे तुमने
अब सब आज़ाद से हवाओं में घुल गए हैं
सारी कायनात एक नज़्म बन गई है
साइंस कहता है के ..................
"वादी में घुली हुई चीज़ जिंदा रहती है अज़ल तक "

~s-roz~
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हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम---"रूमी "
बेनजीर =अनुपम
गुहर =मोती
गुरेजां=भागता हुआ
तब्बसुम=मुस्कराहट
राजदाँ=मर्मज्ञ,भेद जानने वाला
अज़ल =अनादि काल

Monday, September 9, 2013

"ट्वीट कथाएं " (अथार्थ वो कथायें जो चन्द पंक्तियों में सिमट जाए ) एक कोशिश

ट्वीट-कथा(मैं /तुम) ..........1

सुख,स्नेह एवं संतुष्टि की तृष्णा जाने कहाँ कहाँ नहीं भटकाया ,अंततः स्वयं को एक फकीर के समक्ष पाया ,अपना दुःख उसे सुनाया ..उसने कहाँ अपनी सबसे प्रिय वस्तु का त्याग कर उसका नाम पर्ची पर लिखकर उस  डलिया में डाल दो और उसके बदले उसमे से एक पर्ची उठा लो ! मैंने ठीक वैसा ही किया ...

जो पर्ची मैंने उठाई थी उसमे लिखा था "तुम "और जो पर्ची त्यागी थी उसपर लिखा था "मैं


ट्वीट-कथा("लालबत्ती )...........2
 
वही लालबत्ती, वही औरत और उसके आँचल में लिपटा बच्चा ,तल्ख़ धूप हो कोहरा हो या बारिश,आँखों में नमी लिए वो नज़र आ जाती , उस दिन बारिश में ट्रेफिक जाम की वजह से कुछ ज्यादा पैसे मिल गए थे खिड़की-खिड़की भाग कर भीग चुकी थी और वो बच्चा भी ! दुसरे दिन, वो अपना ख़ाली आंचल फैलाए थी ,आज उसके आंसू में नमक बहुत था !

 

 ट्वीट-कथा ('रजनीगंधा") ..... 3
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उसकी ज़िन्दगी में वो दोनों थे, एक जब भी आता, साथ रजनीगंधा का फूल लाता, उसकी स्निग्ध खुशबू में लीन आँखें बंद कर सपने बुनने लगती ..उनमे खुशबु तो होती मगर कोई रंग नहीं होता .....दूसरा उसके लिए सुर्ख रंगों वाला गुलाब लाता ...उसने ज़िन्दगी में रंग भरने को गुलाब चुना ......ज़िन्दगी की रंगीनियों में उसे अब काँटों का अहसास होने लगा था.... वो भूल गई थी कि, गुलाब के साथ उसकी ज़िन्दगी में कांटे भी तो आयेंगे,..अब उसकी ज़िन्दगी फीकी और आँखे सुर्ख रहने लगी थी .....अब आँखे बंद कर वो रजनीगंधा की खुशबु महसूस करना चाहती थी पर सुर्ख आँखों के कोरों से वो खुशबु बह जाती ....!
काश वो पहले जान पाती कि सफ़ेद रंग में ही वो अपने रंग भर सकती थी जो पहले से रंगीन था उसपर उसका रंग कैसे चढ़ता ?
.........
ट्वीट कथा ("सज़ा)"................ 4
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अनु,जिसका वक़्त कभी वक़्त पर नहीं आता! इंतज़ार जैसे उसकी नियति बन गई थी! "सॉरी यार आज फिर लेट हो गया "ये जुमला डेली रूटीन में शुमार था !ऐसे ही किसी एक शाम लेट आने पर उलाहना देते हुए अनु ने मिहीर को चाय पकड़ाई ,चुहल करता हुआ मिहीर कहने लगा "यार तुम प्रेम मुझसे इतना आधिक करती हो थोड़ा इंतज़ार भी कर लिया करो"
 "क्या,थोड़ा इंतज़ार? "ठीक है तुम भी अपनी बची ज़िन्दगी के थोड़े वक़्त के पहले थोडा इंतज़ार करना !तब मैं इसी बालकनी की मुंडेर पर चिड़िया बन तुम्हे देखूंगी ... तब बड़ी जोर से हंसा था मिहीर, चाय प्याली से छलक पड़ी थी उसके कुरते पर "
 अब हर शाम मिहिर बालकनी में चाय लिए उस मुंडेर पर किसी चिड़िया का इंतज़ार करता है गर कोई चिड़िया आकर बैठ जाती है, तो उससे मुखातिब हो यही बुदबुदाता है "यार ये कैसी सज़ा दी तुमने,थोडा इंतज़ार भी नहीं होता मुझसे" कहते वक़्त उसकी चाय खामोश रहती है पर आँखें छलक पड़ती हैं !
 ~s-roz

Monday, September 2, 2013

"शबदेग".../नज़्म

कल सारी रात, तेरे तस्सवुर की भट्टी पर
 
मेरे नज़्मों की, शबदेग पकती रही
तुम्हारे  होने का एहसास
 
भट्टी में ईधन लगाता रहा
 
बारहा, दर्द का धुंआ

आँखों में नमी लाता रहा

हसीं तब्बसुम नज़्मों में कलछी घुमाता रहा

बंद खिड़कियों पर थपकियाँ

बारिश की आमद बताती रही

आंच भभकती रही, ख्वाब ख़दक़ते रहे

देग से उठती हुई इश्क़ की खुशबुओं से

आलम सारा सराबोर था

मेरे बेक़रार सफ़हों को, बेनजीर नज़्मों का इंतज़ार था

मेरी नींद जो अरसों से

पसे-पर्दा थी , ख्वाबे परीशां थी

जाने किस पहर वो भूख से बेज़ार ,नमूदार हुई

शबदेग देख उसके लबों पर तल्ख़ हँसी फिसलती रही

वो ज़ालिम , मेरी नज़्मों का लुकमा निगलती रही

सुबह की पहली किरन ने नींद के जाने की इत्तला दी

उठकर देखा तो ......भट्टी में बची थी राख

और गुमसुम पड़े शबदेग के कोरों में

नज़्मों के कुछ लफ्ज़ चिपके पड़े थे !!

....................................,

आज की रात मैं नींद पर पहरा दूंगी !!!!!

~s-roz~

तस्सवुर =याद

शबदेग =वह हांड़ी जो रातभर पकाई जाती है

बारहा=बहुदा /बार बार

तब्बसुम=मुस्कराहट

बेनजीर =अद्वितीय

पसे-पर्दा=परदे के पीछे /आड़ में

ख्वाबे परीशां =उचटती हुई नींद

नमूदार =आविर्भूत/ प्रकट

लुक़मा =कौर/ निवाला