अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, September 24, 2012

"हे शब्द शिल्पी "

तुम !
शब्दों के धनी मनी
शब्द शिल्पी हो !
गढ़ लेते हो
प्रेम की अनुपम कविता !
किन्तु भावों के मेघ
मेरे मन में भी
कम नहीं घुमड़ते !
मेरा ,आतुर ,उद्दांत हृदय
कसमसाता है
छटपटाता है
प्रेम के उदगार को
किन्तु मेरे निर्धन शब्द
श्रृंगारित नहीं कर पाते
मन के अगाध भावों को
यदा कदा....
दरिद्रता झलक ही जाती है
हे शब्द शिल्पी !
क्या ही अच्छा होता
शब्दों के साथ साथ
भावों के भाव भी
तुम समझ पाते !
~s-roz ~

Sunday, September 9, 2012

"उनके बस्ते में"..."ग़ज़ल "

तालीम--तर्बीयत नहीं बसती उनके बस्ते में !
है तो बस भूख,गरीबी,जुर्म,ज़लालत उनके बस्ते में !!
हाथ जख्मी और मैले हो जातें हैं कचरे में उनकें !
रद्दी के साथ हैं ख्वाब भरे तितलियों के पर भी उनके बस्ते में !!
अलसुबह जो बाँटते हैं अखबार पढने को घरो में !
नहीं मिलती वर्णमाला की कोई पुस्तक उनके बस्ते में !!
ढाबों में लज़ीज़ खानों के नाम जुबानी याद है जिन्हें !
दो जून की सूखी रोटियां भी नहीं अटती उनके बस्ते में !!
गर्म जोशी से कागजों पर निपटाए जाते हैं तालीमी मस,अले:!
बाद उसके वो कागजें हो जाती हैं बिलकुल ठंडी उनके बस्ते में !!
~S-roz~
 

Thursday, September 6, 2012

"तर्पण"


हताहत हैं सभी
कोई ना कोई अंग
जख्मी  है सभी का
मरणासन्न ,...किन्तु
अदम्य जिजीविषा
मारे डाल रही
न निकलते है प्राण
न मिलता है त्राण
मृत्यु जागृत हो रही
चहुँ  ओर  !
क्या,
अब कोई बचा नहीं  
अखंडित ?
जिसके हाथों
हो सके अर्पण .
हम सभी के  
तर्पण का !!
~S-roz ~