अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, April 26, 2013

प्रेम" के फैलाव को स्पेस की दरकार होती है".......(यादें जो अक्सर दस्तक देती हैं ........II )

पहले जब मेरे बाल लम्बे घने थे और खुले बालों से उलझन होने लगती! तो दोनों हाथों को घुमाकर जूड़ा बना लेती थी ! हालाँकि,सिल्की बाल होने की वजह से वो जूड़ा देर तक टिक नहीं पाता और बार बार ऐसा करने पर तुम खीज जाते कहते "खुला ही रहने दो अच्छा लगता है तुमपर" ........! फिर मै उसे खुला ही छोड़ देती .....पर शायद उस जुड़े के साथ ऐसा बहुत कुछ था जिसे मैं बांधना चाहती थी पर उन रेशमी बालों की तरह कभी कायदे से बाँध नहीं पाई ..............!

पर अब सोचती हूँ तो, अपनी नादानी पर हँसी आती है.....ये बात इतने दिनों बाद समझ आई कि गर उस समय उन्हें बाँध लिया होता तो उस बाँध की जकड़ से अब तक कई अनमोल चीजें टूट गईं होती ..........!जिसमे से खास था तुम्हारा "प्रेम "

अब समझ आई ये बात कि प्रेम को पनपने और उड़ने के लिए ढील और स्पेस की दरकार होती है, ठीक उसी पतंग की तरह ......जिसे स्वछन्द और ऊँचा उड़ने के लिए ढील देनी जरुरी होती है .. और प्रेम वो महीन मांझा है जो अद्रश्य सा होते हुए भी पतंग चाहे जितना दूर तक जाए अपने तक खींच ही लाता है बशर्ते रास्ते में कोई कांच का चुरा लगा धार वाला मंझा रास्ता न काट दे ..:)

प्रेम के पनपने को आपसी ऐतबार को विस्तार देना निहायत जरुरी है .......हालाँकि न चाहते हुए भी कई दफे इस गहरे एतबार ने नींद से झिंझोड़ डाला ,लगा इतना ऐतबार शायद मेरी गलती थी ......!

लगा के हालात के नावेल निगार ने ज़िन्दगी के नावेल में कुछ पन्ने गैर जरुरी ,बेमतलब डाल दियें हों जिसके बगैर भी कहानी पूरी हो सकती थी ..पर हर नावेल निगार अपनी कहानी को दिलचस्प बनाने के लिए कहानी में कुछ टर्निंग पॉइंट लाता ही है , और सच भी तो है वो मेरी ज़िन्दगी का टर्निंग पॉइंट ही तो था ...!

पर शुक्र है उस परवरदिगार का, जो उसने मेरा हौसला टूटने न दिया ...गर जरा भी कमजोर पड़ी होती तो आज नतीजा बहुत ही भयावाह हो सकता था !अपने अहम् को ताक़ पर रख थोडा सब्र और थोडा हौसला ही तो चाहिए होता है...... अपने घरौंदे को बचाने के लिए ..........!

नावेल के उन तारीक पन्नो को मैंने एकसाथ कर आलपिन से जड़ दिया है ताकि कभी उस नावेल को दुबारा पढना चाहूँ तो भूले से भी वो सफहें न खुलें ....:) और बाकि के उन खुशरंग पन्नो पर तुम्हरे लिखे उन खतों को बुक-मार्क बनाकर लगा दिया है .................ताकि जब भी खोलू तो तुम्हारे साथ बीताये उन्ही खुशगवार लम्हों के खुश लम्स गोद में पहुच जाऊं !

 बस उस नोवेल निगार से यही इल्तजा है, के इस नावेल के आखिरी पन्ने का क्लाईमेक्स पढ़ते वक़्त तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में रहे ..तुम तो जानते ही हो मुझे कहानी का दुखद अंत कतई पसंद नहीं !

 ~S-roz~

Wednesday, April 17, 2013

"मानव सभ्यता चूहों की कब्र पर खड़ी है ,


अभी कल के अखबार में ही तो पढ़ा था ..अब इंसान की ख़राब किडनी को फिर से ठीक कर प्रत्यारोपित किया जा सकेगा ......इस सफल प्रयोग का पूरा श्रेय चाहें डॉक्टर्स लें पर मेरी नजर में तो वो निरीह: चूहें हैं जिन्होंने जाने कितने ही ज़ुल्म जलालतों को सह कर और शायद कितनी ही शहदातें देकर इस अज़ीम काम को अंजाम दिया होगा ......... !...
कभी कभी सोचती हूँ, कि गर ये चूहें न रहे होते तो हमारी तादाद और उम्र कितनी कम होती .....जानलेवा बीमारियों से निजात ,खुबसूरत और जवां दिखने के तरीके ,मन के विज्ञानं और व्यवहार को समझने ,और न जाने कितनी असम्भव चीजों को सम्भव बनाया है ......इन चूहों ने !
और ये बताने की जरुरत नहीं कि इसके एवज चूहों ने जने क्या क्या नहीं झेला होगा ...सच है ना ,
ज़िंदा रहने की होड मे मरते लोग
खुद को बचाने के एवज़
औरों का क़त्ल करते लोग .................! एक तरह से यह कहना बेजां न होगी कि .......

"मानव सभ्यता चूहों की कब्र पर खड़ी है ,
खैर जो है सो है ............. !
इससे एक बात और ज़ेहन में उभरी कि देश की ७०% जनता वो चूहे ही तो हैं ................
जिनपर प्रयोग पर प्रयोग किये जाते हैं ....और गर प्रयोग करने वाले जीत गये तो क्या कहने
हारे भी तो बाज़ी मात नहीं .................!
तभी तो विश्व के धनाढ्य लोगों में हमारे देश के लोगों का भी नाम आ ही जाता है ..ये कोई मामूली बात नहीं ...चाहें गरीबी की रेखा जमीन से चिपकी चल रही हो ..................वो कहते हैं न ..........
बड़े लोगों को
बड़ा बनाने के लिये
होना होता है
छोटे लोगों को
और .....
और भी छोटा !!!
~s-roz~

"अभी जो आया भूकंप"

अभी जो आया भूकंप, काँप गयी धरती भी
रौंदा गया है इतना के हांप गयी धरती भी !

हमारी कारस्तानियों का कोई हिसाब नहीं
इसका लेखा जोखा नाप गयी धरती भी !

पुत्र कुपत्र भले हो माता कुमाता नहीं होती
खुराफातों को ममता से ढांप गई धरती भी !

देखकर आतंक के साए अपने बदन पर 
विश्वशांति के मन्त्र जाप गई धरती भी !

जब होगा असंतुलन धरा पर,बरसेगा कोप
ऐसा सभी को प्रेम से श्राप गई धरती भी !!!
~s-roz~

Sunday, April 7, 2013

"एकै चाक के माटी हम सब "


सखी री ....,
एकै चाक के माटी हम सब
कुछ गढ़ी कुछ टूट गईं
कुछ बची कुछ फूट गईं
कुछ संभली कुछ छूट गईं
कुछ कच्ची कुछ सूख गईं 
कुछ पलीं कुछ मारी गईं
कुछ बिगड़ीं कुछ संवारी गईं 
कुछ हलके कुछ भारी  गईं 
कुछ जीतीं कुछ हारी गईं  
कुछ सच्ची कुछ झूठी गई
कुछ छुटीं कुछ लूटीं गईं 
 कुछ कुंवारी कुछ ब्याही गईं
कुछ सादे कुछ शाही गईं 
कुछ भरी कुछ  रीत गईं
 सबही की जिनगी बीत गई
सखी री ....,
एकै चाक के माटी हम सब
कुछ गढ़ी कुछ टूट गईं !!!!!
~s-roz~

Saturday, April 6, 2013

ये ज़िन्दगी क़स्बे की, खराब रास्ते की पुरानी बस है"


 ये ज़िन्दगी क़स्बे की खराब रास्ते की पुरानी बस है ! जो खचाखच सवारियों से भरी लचकती-धचकती चलती है ! कई मर्तबा ऐसा जान पड़ता है कि बस अब पलटी की तब पलटी....बस की आखिरी सीट की खिड़की वाली सीट पर बैठी सब देख रही हूँ .....!
जिस जगह अभी बस रुकी है कुछ सवारीयां उतरी .......उससे ज्यादा भर गयी "वक़्त का कं...डक्टर" भरी बस की परवाह किये बगैर सवारी भरने में मशगूल है ,अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं बची ! बस घरघराती फिर चल पड़ती है, कंडक्टर सभी से टिकट वसूलने लगा है .......उसे इतनी जल्दी है कि किराये के बकाये पैसे लौटाता नहीं टिकट के पीछे लिखकर सवारी को दे देता है, यह कहकर की छुट्टा नहीं है उसके पास ! अपने काम से फारिग हो कंडक्टर सीट पर आकर बीडी सुलगा कर आराम से पी रहा है .....इस बात से बेफिक्र की पिछली सीट पर एक औरत पल्लू से नाक दबाये है, एकबारगी मन हुआ उठू और उसकी बीडी खिड़की के बाहर फेंक दूँ पर तुरंत अपनी सीट खो देने का खौफ हो आया .....खैर !!
मेरी अगली सीट पर एक जोड़ा आकर बैठा है अभी .....सर पर पल्लू धरे ,लाल बिंदी ,पैरो में महावर,नारंगी सिन्दूर माथे पर चमक रहा है, गवना करा कर ला रहा है शायद....!कनखियों अपने साथी को देख लेती है, सकून दिख रहा है उसके चेहरे पर ,मानो चाह रही हो कि ये सफ़र कभी ख़त्म न हो .....बेहतर जानती है वो कि ससुराल में साथी का साथ रात के कुछ पहर तक का ही होगा ! बाकी वक़्त घरवालो के नाम ! बस जब जब हिचकोले खाती है दोनों कुछ ज्यादा ही एक दुसरे के ऊपर गिरते हैं और हलकी मुस्कान आ जाती है दोनों के चेहरे पर !
मेरे बायीं तरफ वाली रो के अगली सीट पर एक बूढा एक पुरानी काली बैग जिसकी ज़िप टूटी हुई है और सेफ्टी पिन से जोड़ी गई है फिर भी अन्दर से खिलौने का डब्बा झाँक रहा है..और साथ में दवा की शीशी और दवाइयों का चमकीला फ्लेप भी दिखाई पड़ रहा है !खिलौना शायद अपने नाती के लिए शहर से खरीद कर ला रहा है और दवा अपनी बुढ़िया के लिए शायद ! बैग को छाती से चिपकाए है और आँखों में बेचैनी है !घर पहुचने की बेहद जल्दी है उसे ...जाने दवा जरुरी है या नाती का खिलौना ?
बस के एक तेज़ धचके से आगे बैठे किसी बच्चे को चोट लगी है शायद रो रहा है !बाकी सवारी की शक्लें मैं नहीं देख पा रही सबसे पीछे जो बैठी हूँ ...खड़े सवारियों के चेहरे पर बस एक से भाव है 'मेरा घर जल्दी आये" झुक झुक कर खिड़की से देख लेते हैं कि कहाँ पहुचे ?
आखिर मेरी मंजिल भी आ ही गई धक्का मुक्की करते बाहर निकल ही आई .......बस फिर चल पड़ी ..अचानक से याद आया मैंने कंडक्टर से बकाये पैसे तो लिए ही नहीं ?......अफ़सोस हुआ और साथ यह इल्म भी के "वक़्त खुद हमें कभी वक़्त नहीं देता, हमें वक़्त से माक़ूल वक़्त लेना होता है" !!
मैं उस बस में बैठी यही सोच रही थी कि"जिंदगी कमोबेश सभी की एक सी होती है ....ये कभी धीरे कभी तेज़ कभी हिचकोले खाते चलती है और मंजिल तक पंहुचा ही देती है , चाहे ये ज़िन्दगी क़स्बे की खराब रास्ते की पुरानी बस ही क्यूँ न हो ! :)
~s-roz`