अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, October 25, 2010

"करवाचौथ"

"सुहागिनों के सुहाग का व्रत
उस सुहागन ने भी बड़े अरमानो से 
हाथों में मेहँदी रचाए ,गजरा  सजाए ,  
छत  पर उतावली सी किसी की प्रतीक्षा थी , 
उधर चाँद  भी  निकलने को था, तभी
फोन की घंटी बजी,झट उसने फोन उठाया 
मानों इसी की  उसे प्रतीक्षा थी
उधर से आवाज आई ,प्रिये !! 
मै, नहीं आ सका ,मुझे बहुत खेद है "
तुम जानती हो इसमें भी एक भेद है
मुश्किल घडी में उसे कैसे छोड़ सकता हूँ
अपने फ़र्ज़ से मै कैसे मुह मोड़ सकता हूँ
मै तुम्हारा  'करवाचौथ' हूँ ,
तो वो मेरा 'करवाचौथ' है,
तुम मेरी 'प्रतीक्षा'  करती हो ,
मै उसकी 'रक्षा' करता हूँ
तुम एक सुहाग की चिरायु की कमाना करती हो,
मै कई सुहागों की चिरायु होने का वचन  भरता  हूँ
तुम मेहंदी अपने हाथों में रचाती  हो
मै सीने पर लहू की मेहंदी रचाता हूँ
वो गर्व से मुस्काई ,बोली  प्यारे!
तुम ना आये!इसका मुझे  दुःख नहीं,
तुम मेरे पति हो इससे बड़ा कोई सुख नहीं 
देखो  प्रियतम! बाहर  'चाँद' निकल आया है
मै भी उसको तकती हूँ तुम भी उसको ताको
हमदोनो प्रतिबिंबित हो देख लेंगे एक दूजे  को
मेरा व्रत तो पानी पीकर शीघ्र शेष हो जायेगा
तुम अपना व्रत तोड़ ,दुश्मनों को पानी पिला
घर जल्दी वापस आ जाना
घर जल्दी वापस आ जाओ  ...............
 

Friday, October 22, 2010

"सोने की बालियाँ"

"तब के गेहूं की बालियाँ,
कितनी सच्ची लगती थी,
चूल्हे पर सिकीं रोटियों में
वाह! क्या स्वाद था,
अब के वोही बालियाँ
सोने की हो गईं हैं,
कुछ दाने मै भी सहेज लूं
बेटी के ब्याह  को काम आयेंगे,
इतनी महँगी चीज
भला कोई खाता हैं?
 
 
 
 

Sunday, October 17, 2010

"यह 'जीवन"एक 'नाव

"यह 'जीवन"एक 'नाव
'खेवूँ किस 'ठावँ '
मन"पीड़ा का 'गावँ '
उल्टा पड़ा हर 'दावँ '
कड़ी धुप,जैसे आवँ '
तपते मेरे पावँ 'पाव '
भ्रम मात्र है 'छावँ '
यह 'जीवन"एक 'नाव '

Saturday, October 16, 2010

"दसकंधर-दहन"

उल्लासित,"दशमी"को हम
दसकंधर-दहन देखने जायेंगे,
एक अग्निबाण !नाभि पर ,
और 'रावण' जल जाएगा
"असत्य  पर सत्य" की विजय
हर्षित हो हम चिल्लायेंगे  ,
जलते हुए रावण के मुख को
कभी गौर से देखा है?
एक कुटिल मुस्कान लिए,
मानों कह रहा हो........... ,
"मैं बुराई का पुतला,
क्षण में भष्म हो जाऊँगा
परन्तु!गहरे पैठा हूँ जो तुम्हारे ,
उसको भष्मित कैसे कर पाओगे ,
फिर कैसे करोगे  सत्य का आह्वान
लेकर मेरा ही अंश,.......
पुनः करोगे घर को प्रस्थान "

Saturday, October 9, 2010

"एहसास "

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‎"ये गुब्बारे भी के क्या खूब होते हैं ...,
जरा सी हवा में ही , अर्श को आशियाँ समझ लेते हैं
नादाँ है !उन्हें ये इल्म नहीं ..,के .............
एक चुभन ही काफी है फर्श पे फ़ना होने को ......."
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"आग, के दरिया में घर बनाने का हुनर' रखना,
और कलेजे, में मदमस्त समंदर" रखना,
बेहद जरुरी है ,इन हवाओं का रुख बदलना ,
वरना जुल्मोंसितम - हादसा और भी बदतर होगा "
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"जीते रहे अपने लिए तो क्या जीए
मरते रहे मरने के लिए तो क्या मरे "
"जाने से  से पहले काम कुछ ऐसा करें
दे जाएँ अपना ये  नूर किसी बेनूर के लिए "
"खाक से बने हैं हम खाक में मिल जायेंगे
हम फिर इससे  इतनी चाहत क्यूँ करें "
"उन्ही  नजरों से जल उठेंगे  दो बुझे  दिए"
जीते रहे अपने लिए तो क्या जीए "
 
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‎"आइना" भी क्या खूब 'कारसाज' है
जैसा दिखतें है 'हम, वैसा दिखाने में 'होशियार' है
बखूबी, वो झांक सकता है हमारे भीतर भी
पर हमारी 'रूहों' को देख वो खुद भी 'शर्मसार' है "
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"फुर्सत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है,
फिर हम ये क्यूँ सोचें के पूरी उम्र पड़ी है ...
गम औ ख़ुशी से तो अभी आंख लड़ी है ,
जिंदगी शमा लिए देखो दर पे खड़ी है
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"मुखबिरी तेरी आँखों के क्या कहने ...

जो छिपाती  हूँ वही पढ़ लेते हो .....

मेरे ग़मों को  बाँट के........

अपने दर्द क्यूँ  जकड लेते हो ?"

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"तन्हा है सफ़र ........... बेख़ौफ़ है ,डगर .......चलने दो.मुझे , ......रोका गया तो ...............काफिला बन जायेगा" 

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 ‎"जहाँ जाते है सब........,हम वहां जाते नहीं ,..........तयशुदा रास्ते........... हमें रास आते नहीं "........."

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"अब तलक जुगनुओं के आस पर थी जिंदगी बशर ....
सूरज ने तो अब किया है रौशन जहां मेरा 

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 ‎"तब खुले घरों के आँगन में,
अलगनियां डाल कपडे सुखाते थे ,
अब बंद सिटखनियों में ,......
मशीनों से कपडे निकलते हैं निचुड़े निचुडाय हुए.
तब घरों में भागते फिरते थे इधर उधर ,
...अब फ्लेटों में रहते है सिमटे सिमटाय हुए "....................

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 ‎"कोई साथ ना दे , गिला नहीं है मुझे,......, मेरा साथ ही काफिला है मुझे ......."

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