अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, April 23, 2010

वो पाकिस्तानी सही मायने में इंसान था"


 

"मेरी यादगार यात्रा दिल्ली से बोस्निया तक कि, ये घटना तब कि है जिस वर्ष 9/11/2001 में अमेरिका में आतंकवादी घटना घटित हुई थी।"

आज से करीब ८ वर्ष पूर्व  पहले .उस दौरान  मेरे  पतिदेव 1 वर्ष के लिए  यूनाइटेड नेसन पुलिस में( डेपूटेशन   पर  )बोस्निया (यूरोप)गए हुए थे। और मै समय मै धनबाद (झारखण्ड) में थी।.पतिदेव को गए ६ माह बीत चुके थे और उन्हें छुट्टी में(अगस्त)में  भारत आना था पर किन्ही  कारणों   उन्हें छुट्टी नहीं मिली  तो उन्होंने कहा कि क्यू नहीं तुम ही यहाँ आ जाओ कुछ दिनों के लिए ,मै तुम्हारा स्वीटज़रलैंड  देखने का सपना पूरा करा दूंगा ।...बस अँधा क्या मांगे दो आँखे .....मै तो  जैसे अपने को फिल्म चांदनी कि श्रीदेवी और पतिदेव को हृशिकपूर ही समझ कर स्वीटज़रलैंड के ही ख्वाब देखने लगी ,फटाफट अपने भैया से बोलकर शेंघेन वीसा(यूरोप  के 7 देशो का)बनवा लिया और 2 माह पहले ही टिकट भी बुक कर्वा लिया।
 
पर जब  ११ सितम्बर को जब मैंने टी वी में "वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर को ढहते हुए देख रही थी ......बिलकुल उसी क्रम    मे स्वीटज़रलैंड के  ख्वाब कि ईमारत  भी ढहती हुई प्रतीत होने लगी, क्युकी समाचार में ये दिखा रहे थे कि आतंकवादियों ने और भी हवाई हमले कि धमकी दी है इसलिए  सभी अपनी  हवाई यात्रा निरस्त्र कर  रहे थे.अम्मा बाबूजी ने भी जाने से मना कर दिया ,एक तो पति से मिलना और यूरोप घूमने कि ललक दोनों पर काले बादल  घुमड़ने लगे ।....
 
मगर तभी मेरे चहरे पर हरियाली छा गई जब पतिदेव का फोन आया कि नहीं आ जाओ कुछ नहीं होगा ।
टिकट भी कट ही चूका था २० अक्तूबर का "एरोफ्लोट एयर लाइंस(रस्सियन) जो कि पहले मास्को तक जाती फिर वहा से मुझे कनेक्टिंग फ्लाईट से जागरेब (क्रोअसिया) जाना था फिर बाय  रोड बोस्निया जाती जागरेब में पतिदेव लेने आनेवाले थे .....मै इतनी खुश थी कि सपने में भी यूरोप ही पहुंची रहती थी ।
 
खैर वो दिन भी आ पहुंचा जिसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी२०  अक्तूबर कि सुबह ५ बजे कि उड़ान थी सो १२ बजे रात में ही चेकिन के लिए एयर पोर्ट आ जाना था,और पहली बार मै विदेश यात्रा कर रही थी सो पतिदेव कि तरफ से एक पत्र के रूप में एक पूरी गाइड लाइन मिली हुई थी कि कैसे मुझे सारी  फारमेलिटीफारमेलिटीस.......निभानी हैं ।.अम्मा बाबूजी और भैयासारे  लोग रात को १२ दिल्ली एयर पोर्ट पर छोड़ कर चले गए ।
 
मै जब एअरपोर्ट के अन्दर पहुंची तब थोड़ी घबराहट होनी शुरू हुई फिर भी लगेज  चेक करा कर एक जगह बैठ कर दिल्ली एअरपोर्ट का नजारा देखने लागी ,जो एअरपोर्ट एक दम खाचाखाक भरा रहता था आज एकदम खाली खाली लग रहा था ..बहुत कम पेसेंजेर थे ,2 घंटे बाद घोषणा हुई कि जिस फ्लाईट से मै जाने वाली हु वो १२ बजे दिन में जाएगी यानि कि ६ घंटे लेट ,थोडा उत्साह वही ठंडा हो गया ....और एक डर और सताने लगा कि मास्को से जो कनेक्टिंग फ्लाईट है वो ना छुट जाये कुकी मास्को में मुझे ८ घंटे के बाद वो फ्लाईट पकडनी थी 2 घंटे का अंतराल अब भी था इसलिए उम्मीद थी कि वो फ्लाईट नहीं छुटेगी बहरहाल जोश   अभी   इतना  था  कि  .मैंने पूरी रात एक चेयर  पर बैठ कर बिता दिया ,इसी बीच दो  लडकियों से दोस्ती होगई  जो कि मास्को मेडिकल कि पढाई करने के लिए जा रही थी तबमुझे थोड़ी तसल्ली हुई कि चलो मास्को तक का तो साथ मिला।
 
आखिर सारी ओउप्चारिक्ताएं   निभाने के बाद जहाज में बैठ गई । अन्दर बहुत सी सीटें खाली थी बहुत कम यात्री थे ,और मै रात भर  सो भी नहीं पाई थी सो तीनो सीट कि हेंडल उठा कर आराम से सो गई ....8  घंटे का सफ़र कैसे ख़तम हुआ पता ही नहीं चला मास्को पहुचने का जब अनाउंस  किया गया तब नींद खुली ।
 
बहार निकल कर जब जब काउंटर पर पहुंची और अपना बोर्डिंग पास  दिखाया रस्सियन महिला ने कुछ देर तक मेरे बोर्डिंग पास को निहारा फिर फोन पर अपनी भाषा में कुछ बात कि फिर मुझसे टूटी फूटी अंग्रेजी में बोली कि आपकी फ्लाईट आज नहीं जाएगी 23  को सुबह 6  बजे जाएगी .आप कुछ देर वहा  इन्तजार कीजिये आपको होटल पहुंचा दिया जायेगा "....इतना सुनने के बाद तो मुझे लगा कि मुझे चक्कर आ जायेगा बस लग रहा था कि ये जमीन फटे और मै समां जाऊ "हे भगवान तीन रात मास्को में अकेले कैसे काटूँगी.......मुझे अम्मा बाबुजी कि बाते याद आने लगी कि मत जाओ काश उनकी  बात मान ली होती .......अन्दर से रोने का मन कर रहा था पर अपने को बहुत काबू किया हुआ था मै ये नहीं दिखाना चाह  रही थी कि मै पहली बार सफ़र कर रही हूँ ।
 
बहरहाल जहा बताया गया,वहा जाने पर मुझे  कुछ राहत महसूस हुई क्युकी मुझे वहा कुछ भारतीय लोग दिखे वही जाकर एक कुर्सी पर बैठ गई । अब चिंता हुई कि सबको खबर  कैसे करू क्युकी उस समय मेरे पास मोबाइल भी नहीं था.एअरपोर्ट पर जगह जगह फोन बूथ बने हुए थे पर वो सब तब मेरे लिए बेकार होगये जब मुझे पता चला किफोन कार्ड  रूबल से मिल सकेगा डालर  से नहीं  ।  अब मै बिलकुल ही रुआंसी हो गई और फिर उसी कुर्सी पर आ कर धम से  बैठ गई ,मेरे बगल में एक एक आदमी मुझे बड़े ध्यान से देख रहा था ,उसने मुझसे पूछा कि क्या आपको कॉल करना है कही ? मेरी आवाज और भर्रा गई केवल सर हिला हा में हिला दिया ,आप को        "अर्जेंट  है तो मेरे सेल से कॉल कर सकती है" 
 
इतना   सुनते ही मैंने संकुचाते  कहा प्लीज  बस एक कॉल अपने पति  को करके बता दू कि फ्लाईट  २३ को यहाँ से जाएगी...उसने तुरंत अपने सेल से नंबर मिला कर पति से बात करा दी .....बात करने के बाद बहुत राहत महसूस हुई...मैंने फिर उस महोदय को थैंक्स कहा और युही पूछने लगी आप इंडिया से कहा से हैं और कहा जाना है ?
उसने बोला "मै सुहैल करांची .......से कनाडा भाई के पास जाना है "
जबतक उसने सुहैल बोला मुझे ठीक लगा पर जैसे ही उसने करांची बोला मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मै एक आतंकवादी के बगल में बैठी हूँ ,हलकी दाढ़ी  थी उसकी रंग गोरा उम्र करीब 25-30 कि .......वो बिलकुल वैसा ही नज़र आने लगा
 
मै कुछ बहाने से वहा से उठ कर एक बुजुर्ग पंजाबी महिला थी उनके बगल में आ कर बैठ गई और उनसे बात करने कि कोशिश  करने लगी उस महिला को हिंदी भी नहीं आती थी केवल  पंजाबी बोलरही थी वहा जितने लोग रुके हुए थे उनमे एक बुजुर्ग पंजाबी जोड़ा ,  एक जोड़े कि नई नई शादी हुई थी पठानकोट के रहने वाले थे ,एक श्रीलंका का था जो अपने को पृष्ट(इसाई पुजारी) बता रहा था उसकी उम्र भी करीब45-50 का रहा होगी  ,और एक वो पाकिस्तानी ,मुझे छोड़ कर सबको टोरेन्टो जाना था ,जागरेब जाने वाली केवल मै थी ,उनलोगों कि भी फ्लाईट 23 को 10  बजे थी ,आतंकवादी धमकी कि वजह से काफी फ्लाईट निरस्त्र कर दी जारही थी 
रात के १२ बज गए एअरपोर्ट पर ही खाना खिला कर हमलोगों को एअरपोर्ट के निकट ही "नोवाटेल "होटल में ठहराया गया ,१४ माले पर सबको एक एक रूम दे दिया गया , मैंने जान बुझ कर बुजुर्ग दंपत्ति के बगल वाला रूम  लिया क्युकी एक तो उनलोगों को अपना रूम खोलना बंद करना हीं आ रहा था और भी कई दिक्कते हो रही थी वो भी बेचारे अपने बेटे बहु के पास पहली बार जा रहे थे .इसलिए मै उनका सहारा बन गई और वो मेरा मुझे भी ऐसा लगरहा था कि मेरे साथ कोई है ।,
 
हमलोगों को एक तरह से कैद ही किया गया था केवल तीन समय नास्ता दोपहर का खाना और रात्री भोजन के समय ही लिफ्ट का ताला खोला जाता रूम में फोन कर दिया जाता , एक  सिक्यूरिटी वाला आता और हमसब को एकसाथ ही नीचे डायनिंग  हाल तक लेजाता ,फिर खाने के बाद ऊपर लाकर लाक कर देता था,एक एक फोन कार्ड दे दिया गया था जिससे केवल ३ कॉल कही भी कर सकते थे ,
 
वो पाकिस्तानी कई बार बात करनी चाही पर मै हेलो हाय करके इग्नोर  कर देती ,हमलोगों कि मुलाकात तीन समय होती डायनिंग हॉल में होती ,मेरे मेज पर अंकल आंटी व श्रीलंका का जो अपने को पृष्ट बोलता था वो बैठता था उससे अक्सर इसाई धर्म व हिन्दू धर्म कि ही बाते होती बाचीत करने में वो ठीक लगा बाकि जो नए  शादी शुदा दम्पति थे उनकी तो लाटरी  लग गई थी दीन दुनिया से बेखबर तीन दिनों कि ऐश थी फ्री में ,वो पाकिस्तानी बिलकुल अलग बैठता था ,
 
असल घटना  घटित हुई आखरी रात को डायनिंग  हॉल में जब हम पहुंचे तो उस इसाई के नक्से ही अलग थे शराब के नशे में धुत्त बगल में जब बैठा तभी मुझे कुछ अजीब लगा ,उसके बाद जब उसने बोलना चालू किया ""सम बडी मेकिंग मी क्रेजी ...यु  शुड  एन्जॉय यौर लाइफ  ....और भी पता नहीं क्या क्या मुझे कुछ ठीक नहीं लगा मै वहा से उठकर जाने लगी तब झट उसने मेरा हाथ पकड़ कर जबरजस्ती वही बिठाने लगा  , उसकी उम्र का लिहाज कर के पहले तो  मैंने हाथ झटकते हुए कहा कि   "प्लीस लीव माय हैण्ड "उसने और जोर से पकड लिया,    अंकल आंटी तो भौंचक थे कि क्या हुआ , युवा जोड़े ने मुड कर देखा फिर खाने में मशगुल हो  गए , सिक्यूरिटी गार्ड को बुलाने लगी उसे अंग्रेजी समझ नहीं आरही थी वो समझ पता,इससे पहले ही वो पाकिस्तानी झटके से आया उससे मेरा हाथ छुड़ाते हुए   दोनों हाथ ऐंठ कर पीछे कर धकेलते हुए दीवाल पर उसका सर धम भिड़ा कर बोलने लगा "
"साले तुमको तमीज नहीं कि किसी लेडी से कैसे पेश आते है ?"
 
मै इतना घबरा गई कि दौड़ते हुए सिक्यूरिटी गार्ड के पास गई और कहा कि " आइ वांट टू गो माय रूम "प्लीज।।।
उसको भी ये अहसास हो गया कि कुछ गड़बड़ होगया है वो तुरंत मुझे मेरे रूम तक छोड़ कर आ गया ,
वो सारी रात मैंने बेड पर बैठे हुए गुज़ार दी ।,फोन कि घंटी बजती रही पर हिम्मत नहीं हुई कि उठा लू,४
 बजे वैन आ गई एअरपोर्ट के लिए ,जाने के समय एक बार मन हुआ कि उस पाकिस्तानी का दरवाजा खटखटाकर उसे गलत समझने के लिए माफ़ी मांगू और रात कि घटना के लिए उसका आभार प्रकट करू ....पर संकोच वश हिम्मत नहीं जुटा पाई .....।
 
दो घंटे में मै जाग्रेव पहुँच गई और जब एअरपोर्ट पर पतिदेव को देखा तो जान में जान आई ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई जंग जीत कर आ रही हूँ ,रास्ते में मैंने सारी घटना बताई तो कहने लागे कि "तुम्हे कमसे कम उसको थैंक्स तो बोल देना चाहिए था ,यहाँ तो मेरा सबसे अच्छा दोस्त ही पाकिस्तानी है .ये सुन कर मुझे अपनी सोच  पर ग्लानि होने लगी ,तब से आज तक उस अपराध बोध से उबार नहीं पाई हूँ ।,अभी भी मन में एक आस रहती है कि कास वो एक बार मिल जाये और मै उससे माफ़ी मांग सकू ......शायद इस  घटना का यहाँ जिक्र कर के मै अपने को हल्का महसूस कर सकू ..........।।।।।।

 



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