अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, November 14, 2010

"ये दिल क्या क्या मांगे है"

"जेहेन में छाया  है उसका ऐसा 'वकार,'
के फरेबी दोस्त वो '''फ़रिश्ते' ' ' सा लागे  है "
 
" बंजर दिल को  'सरसब्ज' किया अश्कों से,
फिर भी ये जालिम दिल 'सहरा' मांगे है "
 
"नहीं देखते लोग अपनी  नीयतों को,
और  शक्ले  देखने को आईना   मांगे है "

3 comments:

  1. सरोज जी,

    वाह बहुत बढ़िया शेर.....दाद कबूल करें...

    पहले शेर में शायद 'फ़रिश्ते' होना चाहिए था|

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  2. BAHUT BAHUT SHUKRIYA IMRAAN JI ,BILKUL SAHI KAHA AAPNE MAINE EDIT KAR DIYA USE ......UMEED KARTI HUN KI BHAWISHY ME AAP YU HI MARGDARSHAN KARTE RAHENGE ....

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  3. bahut hi sunder nazm. dil ko chhu gai. dhanyabad.

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