अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, March 19, 2014

बहारें फिर भी आएँगी

पेड़-पौधों से झरते
ज़र्द पत्ते 
उम्मीद की शक्ल 
अख्तियार कर 
मेरे कानों में 
"रूमी" के लफ्ज़ गुनगुना गए 
"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम"
(हम हरियाली की तरह बार-बार उगे हैं)

2 comments:

  1. आभार राजीव जी

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया वाण भट्ट जी

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