पेड़-पौधों से झरते
ज़र्द पत्ते
उम्मीद की शक्ल
अख्तियार कर
मेरे कानों में
"रूमी" के लफ्ज़ गुनगुना गए
"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम"
(हम हरियाली की तरह बार-बार उगे हैं)
ज़र्द पत्ते
उम्मीद की शक्ल
अख्तियार कर
मेरे कानों में
"रूमी" के लफ्ज़ गुनगुना गए
"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम"
(हम हरियाली की तरह बार-बार उगे हैं)
आभार राजीव जी
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया वाण भट्ट जी
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