विषय विषद है पर जहाँ तक मैने जानकारी हासिल कि है उसके अनुसार लिंग के रुप मे शिव कि आराधना का
भाव यही है कि शिव अव्यक्त लिंग (बीज) के रूप में इस सृष्टि के पूर्व में स्थित हैं। वही अव्यक्त लिंग पुन: व्यक्त लिंग के रूप में प्रकट होता है। जिस प्रकार ब्रह्म को पूरी तरह न समझ पाने के कारण 'नेति-नेति' कहा जाता है, उसी प्रकार यह शिव व्यक्त भी है और अव्यक्त भी। वस्तुत: अज्ञानी और अशिक्षित व्यक्ति को अव्यक्त ब्रह्म (निर्गुण) की शिक्षा देना जब दुष्कर जान पड़ता है, तब व्यक्त मूर्ति की कल्पना की जाती है। शिवलिंग वही व्यक्त मूर्ति है।
भाव यही है कि शिव अव्यक्त लिंग (बीज) के रूप में इस सृष्टि के पूर्व में स्थित हैं। वही अव्यक्त लिंग पुन: व्यक्त लिंग के रूप में प्रकट होता है। जिस प्रकार ब्रह्म को पूरी तरह न समझ पाने के कारण 'नेति-नेति' कहा जाता है, उसी प्रकार यह शिव व्यक्त भी है और अव्यक्त भी। वस्तुत: अज्ञानी और अशिक्षित व्यक्ति को अव्यक्त ब्रह्म (निर्गुण) की शिक्षा देना जब दुष्कर जान पड़ता है, तब व्यक्त मूर्ति की कल्पना की जाती है। शिवलिंग वही व्यक्त मूर्ति है।
यह शिव का परिचय चिह्न है। शिव के 'अर्द्धनारीश्वर' स्वरूप से जिस मैथुनी-सृष्टि का जन्म माना जा रहा है, यदि उसे ही जनसाधारण को समझाने के लिए लिंग और योनि के इस प्रतीक चिह्न को सृष्टि के प्रारम्भ में प्रचारित किया गया हो तो क्या यह अनुपयुक्त और अश्लील कहलाएगा। जो लोग इस प्रतीक चिह्न में मात्र भौतिकता को तलाशते हैं, उन्हें इस पर विचार करना चाहिए।
शिव कर्पूर गौर अर्थात सत्वगुण के प्रतीक हैं। वे दिगंबर अर्थात माया के आवरण से पूरी तरह मुक्त हैं।
शिव लिंग को अंतर्ज्योति का प्रतीक माना गया है। यह ध्यान की अंतिम अवस्था का प्रतीक है, क्योंकि सृष्टि के संहारक शिव भय, अज्ञान, काम, क्रोध, मद और लोभ जैसी बुराइयों का भी अंत करते हैं।
शंकर जी को जगत पिता कहाँ गया है इसलिए पुर्व्काल मे मुर्ति शिश्नरूप मे होती थी , भग (योनी)एव लिंग इन् जनानिन्द्रियों के कारण हि प्राणी सृष्टि उत्पत्ति सम्भव होती है ,यह जन्ते हुए आदिमनाव समाज ne इन्हे पुजत्व प्रदान किया इसिसे योनी के प्रतीक शालुका और लिंग के प्रतिक लिंग के संयोंजन से पिंडी निर्मित हुइ ,भूमि( याने सृजन और शिव याने पवित्रता इस प्रकार शालुका(लिंग्वेदी) मे सृजन और पवित्रता के रह्ते हुए भी ,विश्व कि उत्पत्ति वीर्य द्वारा नही हुइ है ,बल्कि शिव के संकल्प द्वारा हुइ है .आठ शिव वा पार्वती जगत के मत पिता हुए ,
कनिष्क के पुत्र हुइइश्क ने दुसरे हस्तक से शिवलिंग पूजा कि शुरुआत कि ,शिव शक्ति सम्प्रदाय जब एकत्र हो गे तब शिवलिंग कि कल्पना कि गई ,शक्ति बिना शिव कुछ भी नही सकते इसलिए शिव(लिंग) के साथ् शक्ति (शालुका) का पुजन आरम्भ हुआ
शालुका(लिंग्वेदी)---दक्ष प्रजापति प्रथम कि कन्या भूमि है शालुका उनका हि एक रुप है ,शालुका का मूल नाम सुवर्ण शंख्नी है क्युकी शंख का आकार (कौडी )स्त्री के सर्जनेंद्रियो समान है ,शालुका कि पूजा अथार्थ मात्री देवी कि पूजा .शालुका के अंदर कि ओर पी जाने वाले खाचे महत्वपूर्ण होते है उनके कारण पिंडी निर्माण होने वली सात्विक शक्ति पिंडी वा गर्भ ग्रिह मे घुम्ती रहती है ,और विनाशकारी तम pradhaan शक्ति शालुका स्रोत से भर निकलती है ....
इसलिए कहाँ जाता है कि जो जल शालुका से बहर नाली मे बह्ता है उसे लान्घ्ना नही चाहिए
शिव के तत्वो का सार
- उनकी जटाएं वेदों की ऋचाएं हैं। शिव त्रिनेत्रधारी हैं अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों के ज्ञाता हैं।
- बाघंबर उनका आसन है और वे गज चर्म का उत्तरीय धारण करते हैं। हमारी संस्कृति में बाघ क्रूरता और संकटों का प्रतीक है, जबकि हाथी मंगलकारी माना गया है। शिव के इस स्वरूप का अर्थ यह है कि वे दूषित विचारों को दबाकर अपने भक्तों को मंगल प्रदान करते हैं।
- शिव का त्रिशूल उनके भक्तों को त्रिताप से मुक्ति दिलाता है।
- उनके सांपों की माला धारण करने का अर्थ है कि यह संपूर्ण कालचक्र कुंडली मार कर उन्हीं के आश्रित रहता है। चिता की राख के लेपन का आशय दुनिया से वैराग्य का संदेश देना है। भगवान
- शिव के विष पान का अर्थ है कि वे अपनी शरण में आए हुए जनों के संपूर्ण दुखों को पी जाते हैं।
- शिव की सवारी नंदी यानी बैल है। यहां बैल धर्म और पुरुषार्थ का प्रतीक है।
ज्ञानवर्धक - आभार तथा धन्यवाद्
ReplyDeletesahi kaha ji
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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