अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, April 23, 2010

कुछ अहसास मेरी नजरों से

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प्यास.....
खुश्क होठों पर जुबान फिराती नजरें
पानी कि तलाश में
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आसूं
वाह अव्यक्त दुःख जो कहा ना गया मुख से
मगर बह गया ....
आँखों से ....
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जीवन मृत्यु
जीवन एक प्रश्न
और ...
मृत्यु सदा उत्तर होता है
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वर्तमान
अतीत कि ड्योढ़ी पर खड़ा
भविष्य को तकता पल.....
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वक़्त
सबसे बड़ा शिक्षक.......
मगर अपने किसी भी शिष्य को
जीवित नहीं छोड़ता ...
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आत्मा
परमज्योति परमात्मा से निकली हुई
वह पवित्र जोत
जो हाड मॉस के इंसान तक आते ही
दूषित हो जाता है
और उसे पुनह पवित्र कर
विरले ही उस परमज्योति में विलीन हो पाते हैंta
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रिश्ता
अकेलेपन से दूर
किसी दुसरे से बंधता स्निग्ध
.....सम्बन्ध
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तुम .......
तुम समाय हो मुझमे किसी पानी कि तरह
जहाँ पटाता है जेहन किसी तनहाई कि तरह
खुदा करे के रह जाऊं ना कभी
अधूरी
किसी कहनी कि तरह ....
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इंसान ......
एक पतंग जिसकी डोर विधाता के हाथों में है .....
एक नाचता बंदर जिसका मदारी परमात्मा है
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सीमा
संबंधो कि तीव्रता में लागी रोक
और
शक्ति को बांधती
...अकाट्य रेखा
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ठोकर
लापरवाही का अहसास कराती
और
जिंदगी कि रफ़्तार को रोकती
......अड़चन
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