अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, May 19, 2014

" बागबानी "

तुमसे मिले वो कीमती पल 
लौट के ना आयेंगे कल 
ये सोच कर
मैंने उन्हें बो दिया
ख्वाब की क्यारीयों में
उन्हें संजो दिया
और तभी से ........
उन नर्म लम्स की हरारत 
इन लम्हों को सींचती है 
वो हंसी तब्बसुम 
गुंचे बन खिल उठते हैं 
वो एहसास 
उन बोये हुए 
लम्हों की उपज
बढ़ा देती है 
यक़ीन जानो...
तसव्वुर के बागान में 
बागबानी के अपने मजे हैं 

जाना ............!
हो जो कभी फुर्सत 
तो सैर को आ जाना !!
 
~s-roz~

Friday, May 16, 2014

प्रतिध्वनित स्वर

प्रतीक्षा की शिला पर 
खड़ी हो
बारम्बार 
पुकारती रही तुम्हे 
वेदना की घाटियों से 
विरह स्वर का 
लौटना 
नियति है 
किन्तु, तुम 
उन स्वरों को 
शब्दों में पिरो कर 
काव्य से .....
महाकाव्य रचते रहे 
मैं मूक होती गयी 
और तुम्हारी कवितायें 
वाचाल 
मैं अब भी अबोध सी 
खड़ी हूँ 
उसी शिला पर 
कि कभी तो 
प्रतिध्वनित स्वर 
मेरे मौन को 
मुखरित करने 
पुन: आवेंगे
!!!
~s-roz~

Saturday, May 10, 2014

"गधे "

गधे की पीठ पर 
लदी होती है 
रोड़ी , सीमेंट और ईंटें 
तल्ख़ मौसमों की मार सहते हुए 
घर की बुनियाद ढोए चलते रहते हैं 
मुफ़ीद ज़मीं तलक़
घर, तोरण, महूरत 
इससे उसका कोई वास्ता नहीं होता 
.
.

किसी अज़ीम ने कहा था 
"सिंहासन खाली करो कि जनता आती है "
हमने तो अब तलक़ उन्हें सिंहासन ढ़ोते ही देखा है !!

~s-roz~