"प्रायः अंत:करण के दर्पण में
"देवदूत" सी एक छवि उभरती है
जो मुझसे सदा यह प्रश्न करती है
क्यों हो मिलनों को आतुर मुझसे?
दूर रह कर भी तो हम पास रहा करते हैं,
जीवन रंगमंच में हम 'सह-कलाकार' ना सही
उर के सुर मंडप में तो हम साथ रमा करते हैं ?
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत अच्छी...दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये|
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