आपके कविता को पढ़ कर मुझे कवि वॄंद का यह दोहा स्मरण हो आया- "सरस कविन के चित्त को, बेधत हैं द्वै कौन। असमझदार सराहिबो, समझदार को मौन॥ सराहनीय रचना। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सुन्दर कविता। लेकिन कुछ जल्दीबाजी कर गईं। इसे और निखारिए। - जीवन नाव है तो नदी, सागर क्या हैं? - पाँव जमीं पर पड़ते हैं। - नदी में छाया नाव की ही पड़ती है। . . .
जीवन एक नान...बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसरोज जी,
ReplyDeleteसंदर उपमाओं से सुसज्जित है ये रचना .....बहुत खूब...."ठांव".....का मतलब किनारा ही है न ? और "आंव" ....का मतलब आँच ही है न?
अगर मैं गलत हूँ तो सही अर्थ बताएं......
आपके कविता को पढ़ कर मुझे कवि वॄंद का
ReplyDeleteयह दोहा स्मरण हो आया-
"सरस कविन के चित्त को, बेधत हैं द्वै कौन।
असमझदार सराहिबो, समझदार को मौन॥
सराहनीय रचना।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
ठावं - ठाँव
ReplyDeleteगावं - गाँव
दावं - दाँव
आवं - आँव
पावं - पाँव
छावं - छाँव
सुन्दर कविता। लेकिन कुछ जल्दीबाजी कर गईं। इसे और निखारिए।
- जीवन नाव है तो नदी, सागर क्या हैं?
- पाँव जमीं पर पड़ते हैं।
- नदी में छाया नाव की ही पड़ती है।
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