अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, November 17, 2011

"दरख़्त "

मेरी दरख़्त के पोसे चूजों के
अब 'पर' फड़ फड़ाने लगे हैं
खुश लम्स शाखों की ओट
नाकाफी है उनके लिए
जाना तो होगा ही उन्हें
... मंजिल की तलाश में
शायद लौटकर आना
मुमकिन ना हो उनके लिए
इल्तजा यही है ......
जान-ए-अज़ीज़ चूजों से
राह में दिखे कोई तनहा दरख़्त
उसमे 'अक्स' मेरा ही देखना
~~~S-ROZ~~~

Friday, November 11, 2011

ख्वाहिश को चलते देखा"

 मुद्दतों से 
अपाहिज सी
इक ख्वाहिश
जो पड़ी थी
दिल में कहीं
... जाने कैसे तो
कल ख्वाब में
उसे चलते देखा
पा लेने को उसे
मचलते देखा !
~~~S-ROZ~~~

Tuesday, November 8, 2011

"गुनगुनी धूप "

 
इस पहर की ,गुनगुनी  धूप
मेरे चौखट पर,यूँ आई है
जैसे तेरे प्यार की ,परछाई है
तन में तपन है ,नेह का सृजन है
लगता है ऐसे ,संग सजन है
इस पहर की ,गुनगुनी धूप
जो अब जाने को है
क्या कल फिर आयेगी ?
बीते  सुहाने एहसासों को
क्या फिर से जगाएगी ?
~~~S-ROZ~~~