अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, August 18, 2011

"जब बंद करते हो बंशी बजाना ,आती हूँ निःशब्द पुकार सुन "


उड़ीसा के प्रमुख सहित्यकार श्री रमाकांत रथ जी"का  अनूठा खंड काव्य "श्री राधा " राधा के उदात्त और प्रेममय चरित्र के अनगिनत पृष्ठ खोलता है , इन्हें पढ़ते हुए ऐसे अद्भुत नयनाभिराम दृश्य पलकों पर स्थिर हो जाएँ और इस अद्भुत प्रेम की पुलक और सिहरन को पलकों से बहता देखा जा सके . निष्काम प्रेम की बहती सरिता ...रमाकांत रथ की राधा में डॉ मधुकर पाडवी ने इस ग्रन्थ की बेहतरीन समीक्षा " अहा! जिंदगी" में पढने के बाद  तो बस मुग्ध भाव से मुंह से यही निकला ...अनोखी राधा तेरी प्रीत! सबसे अलग , सबसे अनूठा ... ....
"  श्री राधा से "कुछ अंश !!
तुम जब बंद करते हो  बंशी  बजाना
तुम्हारा कंठ वाष्परुध  हो जाने पर
शुद्ध   निशब्दता की भांति हर बार मै
आती हूँ निःशब्द पुकार सुन
मै जानती हूँ लौट जाउंगी रात बीतने पर
पुनः अपने घर ,पुनः अपने मृत्यु में
फिर भी मै आउंगी कल रात उसके बाद
हर रात लौटूंगी तुम्हारे ही पास
आती रहूंगी जबतक मेरी देह
तुम टिका नहीं लेते मेरा जीवन
और अपना जीवन अंत होने के बाद
जब तक मै निश्चिंह नहीं हो जाती
पूरी तरह तुम्हारी शुन्यता में
.
राधा-कृष्ण की प्रेम कथा विश्व के किसी भी प्रेम कथा से भिन्न है ,जब वे एक दुसरे से मिले राधा का विवाह हो चुका था और आयु में भी कृष्ण से बड़ी थी,कृष्ण के साथ उनका सम्बन्ध ऐसा था की साथ रहने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी , तब भी अगर वह अपने जीवन की अंतिम सांस तक कृष्ण को चाहती रही तो स्पष्ट है कि यह सब वह बिना किसी भ्रम के करती रही . कृष्ण के साथ अपने संबंधों का आधार उसने सांसारिक रूप से एक -दूसरे के साथ रहने के बजाय कुछ और बनाया , जो इससे कही अधिक श्रेष्ठ था . यदि व्यक्ति में कामना की निष्फलता को स्वीकार करने का साहस हो यह संभव ही नहीं कि वह किसी भी स्थिति में वियोग से पराजय स्वीकार करेगा .
प्रारंभ से ही वह ऐसी कोई आशा नहीं पाले रखती है अतः कुंठित होकर निराश होने होने की भी उसकी कोई सम्भावना नहीं है . यदि वह निराश हो सकती है तो केवल इसलिए कि कृष्ण को जिस सहानुभूति और संवेदन की आवश्यकता थी , वह उसे न दे सकी . न दे पाने की पीड़ा कुछ लोगों के लिए न ले पाने की पीड़ा से बड़ी होती है ! ...जय श्री राधे राधे
साभार-"अहा जिंदगी "
 

Wednesday, August 10, 2011

"ए भारतीय युवक निंद्रा त्याग !!

(युवक!' शीर्षक के नाम  से यह  भगत सिंह का  लेख   साप्ताहिक मतवाला (वर्ष  २ अंक सं  .१६ मई १९२५)में बलवंत सिंह के नाम से छपा था ,इसकी चर्चा "मतवाला" के सम्पादकीय कार्य से जुड़े आचार्य शिवपूजन सही कि डायरी में भी मिली है )उसी के कुछ अंश !!
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"ए भारतीय युवक ! तू क्यों गफलत कि नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है !उठ ,आँखें खोल ,देख प्राची -दिशा का ललाट सिन्दूर रंजित हो उठा !अब अधिक मत सो !सोना है तो अनंत निंद्रा कि गोद में जाकर सो रह !कापुरुषता के क्रोड़ में क्यों सोता है ?माया -मोह-ममता त्याग कर गरज उठ-!!!.
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Farewell Farewell My true Love
The  army is on move
And if I stayed with You Love
Acoward I shall prove ;
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तेरी माता, .तेरी परम वन्दनीय.तेरी जगदम्बा.तेरी अन्नपूर्णा  ,तेरी त्रिशुलधारिणी,तेरी सिंघ्वासिनी,तेरी शस्य  श्याम्लान्चला आज फूट फूटकर रो रही है ,क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी विचलित नहीं करती ?धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर !तेरे पित्तर भी शर्मसार हैं इस  नंपुसत्व  पर !यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो तो उठकर माता कि दूध कि लाज रख ,उसके उद्धार  का बीड़ा उठा ,उसके आँसुओं  कि एक एक बूंद की सौगंध ले!उसका  बेडा पार कर ,और बोल मुक्त कंठ से ....वन्दे मातरम!!!
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भगत सिंह ने ये तब लिखा था जब देश आजाद नहीं था पर ऐसा लगता है की ये आज के सन्दर्भ में भी उतना ही सटीक है ..!!तब दूसरो से अपने देश को आजाद कराना था आज अपनी मानसिकता.भ्रष्टाचार ,आतंकवाद,अनाचार,आदि से अपनी मातृभूमि को आजाद कराना है ...हम अभी आजाद कहा हुए हैं ?.....हर इंसान किसी  ना किसी गुलामी में फ़सा हुआ है !!!.......काश की भगत सिंह के कहे ये शब्द हमें आंदोलित कर पावें ..जय हिंद !!!
 

Monday, August 8, 2011

क्षणिकाएं

मेरी जिंदगी में ऐसा
कुछ नहीं जो तुम्हे सुनाऊं
'जी' में मेरे आता है के
अपनी ही मिटटी गूंथकर
खुद से खुद को बनाऊं "
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ये जिंदगी ...........!!!
छिल छिल कर छिलती है
कट कट कर कटती है
गोया, ये जिंदगी ना हुई
सुपारी हो गयी.....!!!
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 आज की इतवार!!
कुछ यूँ गुजारी है ,
दिल की दराज़ में,
बिखरे साजों सामां को
करीने से लगा दिया है
...अब तेरी यादों को वहां
ढूढने की दरकार न होगी
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इस जमीं के बाशिंदे
स्वप्न और एहसासों से भरे हैं
आसमाँ पे रहने वाले
इन खयालात से बिलकुल परे हैं
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