अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, September 29, 2010

"वही मेरा गाँव, "


वो पीपल की छाँव,
बरगद की ठाव  ,
गंगा   की  नाँव
वही मेरा गाँव, 
वो आँगन की खटिया 
जूट की मचिया ,
राब की हंडिया 
स्लेट की खड़िया,
 जब याद आता है मन भर आता  है
वो सावन की "कजरी"
बलिया की "ददरी "
"चईता, बिरहा" की नगरी , 
बगईचा की साँझ दुपहरी,
वो चूल्हे का धुआं
पास का कुआं
चाचा का अखाडा
वो गिनती वो पहाडा
जब याद आता है मन भर आता   है ,,
वो भूंजा  भुनाने
आजी   के उल्हाने 
बडकी  भौजी के ताने
मझली का गाने   
वो छट का ठेकुआ
फाग का फगुआ
लाई का तिलवा
आटे का हलुआ
जब याद  आता है मन भर आता   है .....
वो परसाद  की मिसरी
बसरोपन की टिकरी
मटर की घुघरी ,
सकरात की खिचड़ी  
वो लिट्टी वा चोखा
बेसन का "धोखा '
क्या था स्वाद अनोखा
खेल वो "ओका बोका"
जब याद आता है मन भर आता   है ...

Friday, September 17, 2010

तथ्य ,कथ्य व सत्य

किसी भी घटना के तीन पहलू होते हैं पहला - तथ्य ,दुसरा- कथ्य ,तिसरा- सत्य इन् तीन पह्लुओं से किसी घटना को समझने की कोशिश करनी चाहिए पर हम ऐसा नही करते हमारा मन जो चाह्ता है हम वही देखते हैं उदाहरण के तौर पर सडक के किनारे फूटपाथ   पर लेटे एक् व्यक्ति को देख्कर वहा से गुजरने वाले लोगो के मन मे क्या खयाल आए ,जरा देखिए
  • शराबी --लगता है रात ज्यादा  पी गया !सुबह हो गई.अभी तक उतरी नही ,
  • साधु --आहा!!कैसा ,समाधिस्थ साधक !रामकृष्ण जैस परम्हँस   प्रतीत होता है ,
  • डाक्टर --शायद कोमा मे है !ब्रेन हेम्रेज"का केस लग रहा है
  • भंगेडी  --वाह!उस्ताद ओवर डोज लोगे तो यू ही पडे रहोगे हमसे सीखो
  • अमीर व्यापारी --क्या घोडे बेचकर सो रहा है !एक् हम हैं की चिन्ता और अनिन्द्रा से पीडित हैं
  • पुलिस वाला --चलो १० रुपये की आमदनी हुइ  ,फूट पाथ पर सोने की फीस वसूली जाय
  • अविवाहित् युवक --  कुवारों का  दुख देखो .अकेले जीना अकेले मरना 
  • विवाहित प्रौढ   - काश मुझमे इतनी हिम्मत होती की मै अपनी झगडालु पत्नी से भाग कर सडक पर ही सो जाता ,यह साहसी मर्द वाह भाई वाह !!
  • नेता --एक् वोट यहाँ पडी है !थोडी दया दिखा दूँ  तो मेरी हो जाएगी ."ले नोट  दे वोट"
  • अभिनेता --गज़ब का सीन  है !अगली  फिल्म मे मै यहि किर्दार करूँगा
  • आम आदमी--भाग लो यहाँ से बच्चू!मर गया होगा तो गवाही देनी पड़ेगी फिर वही कोर्ट कचहरी का चक्कर ....    
हमारा ज्ञान ,पुर्व अनुभव ,भय,सन्देह,विश्वास,सोच-विचार का ढंग हमारी दृष्टि को लगातार अपने रंग मे रंगता रहता है ,हमे वास्तविकता के  सीधे सम्पर्क मे नही आने देता ,'जो है 'वह नही देख पाते,क्योकी जो नही है 'हम उसमे उलझ जाते हैं घटना का यथार्थ अनभिग्य ही रह जाता है
किसी भी घटना के तीन पहलू होते हैं पहला - तथ्य ,दुसरा- कथ्य ,तिसरा- सत्य इन् तीन पह्लुओं से किसी घटना को समझने की कोशिश  करें ,जब हम किसी घटना के आस पास कोइ कथा गढ कर देखते हैं तो हम अपनी कल्पना को ही देखते हैं 
काश हम सत्य को देख पाएँ तो हमारा   जीवन दुख मुक्त हो जाय 
हर कथा व्यथा मे ले जाती है ,सत्य द्वार है आनन्द का ,सच्चिदानन्द का ...........................      
 
 


श्रोत -a book "full of life by shree shailendr OSHO

Friday, September 10, 2010

" ये जिन्दगी"

गर्म रेत पर नंगे पावं चलने की जलन और दर्द सहने को विवश कराती  है,
ये जिन्दगी ........! 
किसी मोड पर  खुशी के फूल सी  सहलाती  तो कभी गम के काँटों  सी चुभती है,  
ये  जिन्दगी..........,!
कभी हमसफ़र के साथ् तो  कभी तन्हा  घुमाओदार  रास्तों  से गुजरती है,
ये  जिन्दगी ...........!
उलझे कटीले तारों से सिमटी ,खुद के बोझ से लदी,खिसकती जाती है ,
ये जिन्दगी........... !
कभी सुरज की तपिश तो कभी  चाँद  की शितलता का एहसास कराती  है ,
ये जिन्दगी ..........!
इन्सनियत के कफन मे लिपटी , अपने कई रिश्तों को  निभाती  है ,
ये जिन्दगी .........!
रिश्ते, वफा, दोस्ती,सब होते हुए भी किसी खालीपन  का एहसास कराती   है , 
ये जिन्दगी .............!
खुदा है और नही भी ,इन् सवालों से घिरी आसमा मे धरती सी समाती है
ये जिन्दगी...........!
कई रंग दिखाती इस जिंदगी को क्या नाम दें?  ,बड़ी जिंदगी सी नज़र आती है
ये ज़िन्दगी ..........!
 
 

Tuesday, September 7, 2010

"कब खिली गुलाब"

सुर्य देव पाठक "पराग"जी की लिखी ये भोजपुरी कविता भोजपुरी साहित्य की  एक् सुन्दर कृति है ...जो मुझे  बहुत पसंद है ......
 
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"
"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
सेंकेल जाता कसी के धरम के लंगोटी,
पहिरे के ताज सभे,देखत बा ख्वाब,
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब
 
मधुमासी मौसम पर ,पतझर के पहरा बा
आईल बरसात तबो,रेत  भरल सहरा बा,
चिखत बाते सवाल,कब मिली जवाब!
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"

कउओ अब बोलत बा,कोईल के बोली.
हँसन पर पर हावी बा बकुलन के टोली,
चोर आ चुहाड़ के समाज पर रुआब
,कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब

"मजहब का आग पर जरुरत के रोटी,
सेंकेल जाता कसी के धरम के लंगोटी,
पहिरे के ताज सभे,देखात बा ख्वाब,
कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब "

"करनी दसकंधर के,सूरत बा के राम के,
स्वारथ के झोरी में मूर्ति आवाम के
असली मुखड़ा तोपल,लागल बा नकाब!
 कांट भरल जिनगी में कब खिली गुलाब"
....................
सुर्य देव पाठक "पराग"(अध्यापक )
उच्च  विद्द्यालय ,कैतुकालछी
जीला -सारण(बिहार"
 

कठिन शब्द के हिन्दी अर्थ
१-कांट भारल =काँटों भरी
२-सेंकल=सेकना
३-पहिरे= पहनने
४-हंसन =हंसो
५-कउओ=कौवा
६=झोरी =झोली (झोला )
७-चुहाड़=लफंगे
८-तोपल-ढका हुआ

Saturday, September 4, 2010

दिल से निकले कुछ गुबार

"बचपन मे लकीरों के खेल बहुत खेलें हैं कुछ छोटी ,
कुछ बडी होती लकीरें पर क्या इन्सनियत के रुबरु कभी इन्सानो को मापा है?
इन्सानो की माप शायद कद से नही होती ,
मैने इस भीड मे ऐसे कई कद्दावर बौने देखे है जो गरीबों के घर जलाते ,
महिलाओं को बे आबरू करते
मानवता का खून करते निशछंद घुमते हैं
जो कद मे तो बहुत लम्बे हैं पर ना जाने क्यु दिखते बौने हैं "


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"रेल की इक पटरी ने दुसरी से कहा "क्या हमारा मिलन कभी सम्भव है?"
दुसरी ने जवाब दिया "कभी नही ",
"हम मात्र पटरियाँ ही नही ....."..
राह्गीरों को उनकी मन्जिल तक पहुचाते भी है ",
यदि हमारा मिलन हुआ तो ये अपनो से हमेशा के लिए बिछड जाएंगे ...... .
इससे बेहतर है के हम कभी ना मिले ......"


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‎"आहें भरोगे ,आवाज दोगे ...
कोइ ना होगा पास तुम्हारे ,
आवाज तुम्हारी ही तुम तक लौट के आएगी ,
दर्दोगम की साथी बन तुम्हारे मर्म सहलायेगी,
क्युकी ....................
अपनों से भरी दुनिया मे आपक़ा अपने सिवा "अपना" कोइ नही होता "
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‎"हम त जल के मछरिया हमरे लोरवा देखि के?
भैया जनमले थरिया बाजल,हमके जिए दिही के ?
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.कन्या भ्रूण को पैदा होने से पहले ही मार देना प्रगतिशीलता की देन है जिसे तकनीकी तरक्की ने आसान बना दिया है. लोग उसी डाल को काट रहे हैं जिस पर बैठे हैं. मूर्खता ही नहीं यह एक शर्मनाक कर्म है. इंसान के बनाये कानून का ही उल्लंघन ही नहीं, ख...ुदा के कानून का भी उल्लंघन है
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"गम के सहरा मे,मुट्ठी भर रेत सी खुशी,
संभाले ना सम्भाली गई
"बचे थे कुछ जर्रे मुट्ठी मे
 सोचा क्यु कैद करु इन्हे
सो उन्हे भी निजात मिल गई "


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