अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, November 11, 2010

"भावों के जोड़ तोड़"

‎"नाउम्मीद" लोग
अक्सर अपनी 'किस्मत' को रोतें हैं
'उम्मीद' बशर लोग
'कंगाली' में भी "दौलत की फसल" बोते हैं "
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"हम तमाम 'उम्र'
नए नए 'ख्वाब' पलकों पे संजोते हैं
जो 'ख्वाब' होते नहीं पूरे
वो न जाने क्यूँ 'आँखों' में चुभे होते हैं "
 
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‎"रातों को जाग कर,
तेरी यादों के चादर में ,
जड़े थे मैने जो 'सितारे' नायाब"
.
उन्ही सितारों को
'पैबंद' कहकर उसने
दे दिए न जाने कितने 'अज़ाब'
.
अज़ाब = पीड़ा, सन्ताप
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"अब  ना होगा 'दिल के घरौंदे' में कोई दरवाज़ा,
ना होगा कोई खौफ किसी 'दस्तक' का
"रौशनी' नहीं आती टपकते'आँखों के रौशनदान' से
अब तो डर है उस 'घरौंदे' में 'सीलन' का "

1 comment:

  1. बहुत खूब सरोज जी.....सब शेर एक से बढकर एक आखिर वाला सबसे अच्छा लगा....क्या बात है आजकल आप कभी हमारे ब्लॉग पर नहीं आतीं ....शायद व्यस्त होंगी|

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