अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, June 22, 2011

"रेल की पटरियां"

"मुसलसल चलती जिंदगी
पटरियों पर रेंगते डब्बों कि मानिंद
साथ चलती पटरियां
कहीं मिलती नहीं कभी
हमसफ़र ,हमराज है
बिछुड्ती  नहीं कभी  
रेल का सफ़र जाना  सा!पर
जिंदगी का सफ़र अनजाना सा
कहाँ  से चला याद नहीं
कहाँ है जाना पता नहीं
रेल के पहियों से दबी पटरियां
रोती भी है कभी-कभी..
पटरियों पर हुए घाव और उनकी तड़प! .
मैंने महसूस की हैं ...
उन जख्मों की तरह....
जो कुछ गैर और कुछ अपने दे गए थे कभी
जिस्म के कटे हिस्सों पर
रेल की दिशा  बदलती है, पटरियां
जिंदगी भी पटरियों पर ...
रूकती ....रेंगती.....दौड़ती ...हैं .!
आज जी चाहता है
इस रेल को छोड़...
पटरियों के साथ चलूँ
एक अनजान मंजिल की ओर
कभी ना ख़त्म होने वाले सफ़र पर !!!!
~~~S-ROZ~~~..

Wednesday, June 15, 2011

कल की रात!

कल की रात!
धरा से चन्द्रमा के  प्रणय की रात थी .....
हर रात धरा और चन्द्रमा के बीच 
चाँदनी  आ जाती थी ..
धरा यु हीं  उस चन्द्रमा  
को तकते रह जाती थी ....
चाँदनी भी इस बात   पर 
खूब  इतराती थी .............
पर कल रात चाँदनी कही खो गई
कुछ क्षणों  को 
धरा चन्द्रमा के अंक में सो गयी ...
कल की रात!
धरा से चन्द्रमा के  प्रणय की रात थी .....
~~~S-ROZ ~~~

Monday, June 13, 2011

"बुत उसूलों का"

तोडा है "बुत उसूलों का, आज फिर किसी ने
लोगों ने कहा, भागने न पाय, यही है, यही है
कहने में अक्सर ,हम क्यूँ आ जाते हैं किसी के!
खुद क्यूँ नहीं सोचते! क्या गलत है क्या सही है!
~~~S-ROZ~~~

Monday, June 6, 2011

"राम राज्य' "

‎"तब का दौर और था ,
एक 'राम' ही काफी थे
'राम राज्य' लाने को
अब के दौर और है ,
एक 'राम' काफी नहीं
राम राज्य दोहराने को"
~~~S-ROZ~~~