आज कि समाज में हमारे पुलिस महकमे कि जो छवि है वो किसी से छुपी नहीं है पर यहाँ मै उनकी दुसरे पहलु से अवगत करना चाहूंगी....
मै "सी आई एस ऍफ़" (नागपुर )के "फॅमिली वेलफेअर अध्यक्ष" के नाते वर्दीधारी और उनके परिवारों को बहुत करीब से देखा है ,उनकी व्यक्तिगत-पारिवारिक जीवन कितना कठिन और दुरूह होता शायद इसका अंदाजा बाहरी व्यक्ति नहीं लगा सकता।
"बाबूजी आज घर जल्दी आओगे ना क्यू रानी ?आज क्या है ?
जा बाबू तुम्हे कुछ याद नहीं रहता ,आज हमारा जन्मदिन है ।
बाबू का चेहरा कुम्भलाया ,क्या कहूँ बेटी से कुछ ना सुझाया
आज मंत्री जी को आना है।......
वी आई पी ड्यूटी है घर नहीं आ सकता ,
वर्दी पहनते सोचने लगा अब कोन बहानाकरूँ,पैंट खिचती बिटिया बोली,आज मंत्री जी को आना है।......
वी आई पी ड्यूटी है घर नहीं आ सकता ,
क्या बाबू होली, दिवाली, ईद, पर भी तुम घर नहीं रहते ।
मीना को देखो उसके बाबू हर त्युहार मिठाई खिलौना लाते हैं ।
तुम तो घर पर ही रहते नहीं, हमारी दूरी कैसे हो सहते ?
बाबू कि आँख भर आई बात बदलते बोले,बोल रानी तुझे क्या लाऊं ?
रानी का चेहरा खिल आया ,बोली मीना के जैसी गुडिया लाना ।
फिर सोच बोली, गुडिया चाहे मत लाना,बाबू घर जल्दी आ जाना ।
भारी मन से बाबू गए ड्यूटी, यही सोचते कि,साहब से कैसे मिलेगी मुझे छुट्टी ?"
" काम चोर पुलिस".निकम्मी पुलिस,भ्रष्टाचारी पुलिस,और ना जाने क्या क्या ? रोज के समाचारों में यही रहता है शायद ही कोई हो जिसने पुलिस वाले के भीतर झाँकने कि कोशिश कि होगी । मै यहाँ कुछ बिन्दुओं द्वारा उनको आपके सामने दर्शाने कि कोसिस करती हूँ..।
*दर असल पुलिस को लेके सामाजिक सोच नेगेटिव होने का कारण जगजाहिर है असल में हमलोगों कि आदत है कि हर बात के लिए पुलिस को दोष दे ।पुलिस यदि अच्छा काम करे ता कुछ भी प्रसंशा नहीं मिलती ! बहुत हुआ तो विभागीय प्रोमोशन मिल जायेगा !
*अपने देश में यदि कही कोई बलात्कार के घटना घटित हुई तो १०० करोड़ जनता का नाम नहीं लिया जाता वरण जिसने ये कुकर्म किया है उसे दोषी करा दिया जाता है पर यदि किसी पुलिस वाले ने ये कुकर्म किया पूरा पुलिस डिपार्टमेंट बदनाम होजाता है सब पूरे पुलिस महकमे को ही एक बलात्कारी के दृष्टि से देखने लगती है !ये पुलिस वाले भी कहीं आसमान से नहीं आते हमारे बंधू बांधव और रिश्तेदार ही होते हैं ।
*सोचिये जब बेटी के साथमुस्कुराने का वक्त हो तब उनको वी आई पी ड्यूटी में जाना पड़े बाप बीमार है और सिपाही बेटा नौकरी बजा रहा हो ,तब वो पूरे मनोबल से कैसे ड्यूटी करेगा ?महीनो सालो परिवार से दूर रह के ड्यूटी करना कितना कठिन होता है ।
*आज भी उन्ही प्रशिक्षण तकनीक और उपकरनो का उपयोग कर जवान तैयार किये जाते हैं जो वर्षों पहले [ अंग्रेज जमाना या 1865 माडल कहा जाता tha] नकार दिया गया हैं मुझे याद है तुकाराम आम्ब्ले जिन्होंने अजमल कसब के इ के-४७ का सामना डंडे से किया और ८ गोली सिने पर खा ली यदि वो गोली खा कर कासब को पकड़ा नहीं होता तो ना जाने कितने और बे मौत मरते ,मै तो कहती हूँ कि उसे कासब ने नहीं सरकार ने मारा है यदि उसके पास भी आधुनिक हथियार होते तो शायद वो जिन्दा होता ।
*होली,दीवाली,ईद,दीवाली, सब राष्ट्रिय छुट्टी के दिन भी त्यौहार का मजा ना लेकर ड्यूटी बजाना पड़े तब ऐसे में पुलिस मन के संवेदना का हरण ही है ना ?
*अक्सर हमने लोगो से कहते सुना है "कि हमलोग टैक्स किसलिए भरते है अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस को तनख्वाह हमारे टैक्स से दिया जाता है,"मगर ये कोन समझाए कि पुलिस को तनख्वाह खाली दिन में ८ घंटा ड्यूटी करने के मिलते हैं पर जो 24 घंटे में कोई काम का घंटा तय न हो उस पर भी लगातार ड्यूटी करे और जगह ओवर टाइम का अतिरिक्त पैसा मिलता है वर्दीधारी को नहीं मिलता ।
*जो एजेन्सी के संख्या बल रोज बढती जनसंख्या और अपराध के अनुपात में हास्यास्पद अंक या नगण्य है [ पुलिस में अक्सर एके हौसला अफजाई के जुमला के रूप में इस्तेमाल किया जाता है कि एक सिपाही पूरे गाँव के हड़का आता है और एक थानेदार अपने इलाके का मालिक होता है पर अब हकीकत क्या है , चैतन्य जनता संग अपराधी भी समझने लगे हैं]*जो आम से दूर होकर सदैव ख़ास(नेता ,मंत्री) के पास की ड्यूटी करना पड़ता है और जहाँ की एक ही जवान सफ़ेद वस्त्रधारियों की सुरक्षा, अपराध विवेचना, पतासाजी, धर पकड़ से लेकर मण्डी-मेले और ट्रैफिक की व्यवस्था सब में पारंगत हो और सब कर सके ऐसी उम्मीद कि जाति है।
*जब किसी आई पी एस कि ड्यूटी किसी अनपढ़ नेता कि सुरक्षा में लगा दिया जाए और उस नेता द्वारा उसे गाली खाने को मिले तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसके मान पर क्या बिताती होगी ।
*जिसके बढ़िया काम करने पर कभी-कभार यह कह दिया जाता है कि ठीक है !!ये तो उसका काम ही है और बिगड़ने पर दूसरों का दोष भी उनके सर फूटता हो ।
*यह भी एक विडम्बना ही है फील्ड पर ड्यूटी करने वाले 55-60 साल के कांस्टेबल/ हेड कांस्टेबल भी जवान ही काहे जाते है सो काम भी जवानों की तरह करे ऐसी उम्मीद कि जाती है । *जिसके पास कानूनी अधिकार ता है पर मगर मानव अधिकार नहीं?
*शहीद मोहन चन्द्र शर्मा का नाम शायद ही किसी ने नहीं सुना होगा जिसका बेटा अस्पताल में डेंगू से लड़ता रहा और वो आतंक्वादियों कि गोली के शिकार हो गए नमन है ऐसन जांबाज़ पुलिस को
*वर्ष- 2007-2008 के दौरान ख़ाली एक वर्ष की अवधि में 3000 से अधिक पुलिस जवान शहीद हुए केवल २१ अक्तूबर को शहीद दिवस मना कर श्रधांजलि दे दिया जाता है .......।
उपरोकत कुछ बिन्दुओं द्वारा मैंने अपने man कि कुछ भड़ास निकली है क्युकी मै भी एक पुलिस ऑफिसर कि पत्नी हूँ और मैंने भी बहुत कुछ झेला है और उसके बावजूद भी पुलिस महकमे कि मीडिया द्वारा छिछालेदर होते देखती हूँ तो मन उद्वेलित हो जाता है ।
सरकार को इनके ऊपर विशेष ध्यान देने कि जरुरत है ,और मीडिया और हमें इनके दुसरे पहलु को भी समझना होगा यहाँ ये सब लिख कर पुलिस महकमे कि सफाई देना मेरा उद्देश्य नहीं है बल्कि आपलोग के मन में जो पुलिस को लेकर कटुता है उसमे थोड़ी कमी आ जाये। .....आखिर।।।।।
तिरंगा झंडा कि शान है वर्दी
भारत के पहचान है वर्दी
धन्यवाद्.............http://..http://knol.google.com/k/वर-द-ध-र-क-प-रत-हम-र-स-च#
Hi Good One and
ReplyDeleteYou rocks all the way
and this is new way....!!!!
Woooowww.........
नीमन, बहुत नीमन, पूरा बलागवे आदमी के झकझोर देता......
ReplyDelete