अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, February 25, 2011

"त्रिवेणी "एक कोशिश

त्रिवेणी(एक नई  विधा ) के बारे में गुलजार लिखते हैं:-त्रिवेणी न तो मसल्लस है,ना हाइकू,ना तीन मिसरों में कही एक नज्‍़म। इन तीनों 'फ़ार्म्ज़'में एक ख्‍़याल और एक इमेज का तसलसुल मिलता है। लेकिन त्रिवेणी का फ़र्क़ इसके मिज़ाज का फर्क है। तीसरा मिसरा पहले दो मिसरों के मफ़हूम को कभी निखार देता है,कभी इजा़फा करता है या उन पर 'कमेंट' करता है। त्रिवेणी नाम इस लिये दिया गया था कि संगम पर तीन नदियां मिलती हैं। गंगा ,जमना और सरस्वती। गंगा और जमना के धारे सतह पर नज़र आते हैं लेकिन सरस्वती जो तक्षिला(तक्षशिला) के रास्ते बह कर आती थी,वह ज़मीन दोज़ हो चुकी है। त्रिवेणी के तीसरे मिसरे का काम सरस्वती दिखाना है जो पहले दो मिसरों में छुपी हुई है।
कुछ त्रिवेणियाँ
.
ख्वाबों के बाज़ार में,ख्वाहिशों के गहने सजे दिखे ,
ज्यों ही डाला हाथ किस्मत के बटुवे में....

अपनी मुफलिसी पे हमें रोना आया "
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
"काश यूँ आज का दिन ढल जाय,
उसको सोचूं तो दिल बहल जाय
.
रही बात कल की, तो कल किसने देखा है ?
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
वो रोज धरती को बनाते है बिस्तर अपना ,
और फिर सर पे गगन ओढ़ सो जाते हैं ....

'गरीबी' की रजाई उन्हें इस ठण्ड से महफूज़ रखती है
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
"बंद मुट्ठी कर ये समझ बैठे के ज़िन्दगी पकड़ ली मैंने
खोला तो चंद  लकीरों के सिवा कुछ भी न था"
.
क्या पता था के जिंदगी उन्ही टेढ़े मेढ़े लकीरों से होकर गुजरेगी  ...
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
"दोस्त" अब ना रहे वो...'तवज्जो' देने वाले .......
फिर भी हर एक शब् ....मुझको आती है "हिचकियाँ ", ....
.
मेरे "दुश्मनों" से कह दे कोई... इतना याद न किया करें
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
मेरे फलाने यहाँ, मेरा फलाना वहां
मेरे अमकाने ये ,मेरा ढिमकाना वो
.
अमा मिया ! ये बता दो तुम क्या हो ?
~~~S-ROZ~~~

 

Thursday, February 24, 2011

"तुम्हारे माथे पर कोन सा सूर्य प्रतिष्टित कर दे?'[पुष्पा भारती के नाम धरमवीर भारती का पत्र ]के कुछ अंश

आज पुस्तकों वाळी अलमारी साफ करते हुए सहसा एक पुरानी पत्रिका(ज्ञानोदय  ,जनवरी ०८ ) हाथ लगी जिसमे एक आलेख "तुम्हारे माथे पर कौन सा सूर्य प्रतिष्ठित कर दें ?(पुष्पा भारती के नाम धरमवीर भारती का पत्र )जिसे ना जाने मैंने  कितनी बार पढ़ा होगा ...आज फिर याद हो आया .
यह पत्र एक  कालजयी रचनाकार के अन्तरंग का आलोक है जिसने भारतीय साहित्य को अभिनव आकाश प्रदान किए हैं। धर्मवीर भारती के ये पत्र भावना की शिखरमुखी ऊर्जा से आप्लावित हैं.इस  पत्र में प्रेम की अनेकायामिता अभिव्यक्ति का पवित्र प्रतिमान निर्मित करती है। पुष्पा भारती को धर्मवीर भारती न जाने कितने विशेषणों में पुकारते ....मेरी सब कुछ, मेरी एकमात्र अन्तरंग मित्र, मेरी कला, मेरी उपलब्धि, मेरे जीवन का नशा, मेरी दृष्टि की गहराई',सूर्या....
पूरे पत्र को यहाँ पोस्ट करना संभव नहीं अत:   उसका एक अंश जो मुझे बहुत पसंद है लिख रही हूँ ......
"मैंने कितनी बार कहा है कि इसके पहले मैंने जो भी लिखा था वह भूमिका थी.वह खोज थी .तब तक मैंने तुम्हे पाया नहीं था -तुम्हारा अनुमान   करता था ,तुम्हारे स्वप्न देखता था,तुम्हारी खोज करता था .पर तुम मिली नहीं थी ,अब जब तुम मिल गई हो ,तभी ना मै अपने आपको पा सका हूँ .और अब सारे युग को इस बात में मदद दे सकता हूँ कि वह अपने को पाए  -अपनी
 
आत्मा खोजें ,अपने सत्य को खोजें ,अभी यह सारा आधुनिक युग आत्माहीन ,दिशाहीन,विभिन्न दिशाओं में भटकाव ,चीखता ,चिथड़े चिथड़े होता हुआ दिख रहा है -उसमे आत्मा नहीं प्रतिष्ठित हुई है -वह अपनी नियति का साक्षात्कार  नहीं कर पा रहा है -क्योंकि वो आत्माहीन है ,आत्मा के लिए हमारे यहाँ कहा गया है कि "सूर्य आत्मा जगत स्थलशच "(जगत कि आत्मा सूर्य है)
 
तभी ना उस दिन मैंने अपनी श्रृष्टि ,अपनी शक्ति,अपनी योगमाया,अपनी पार्वती,अपनी सीता ,से पूछा था "बोलो ये उँगलियाँ तुम्हारे माथे पर कोन सा सूर्य प्रतिष्टित कर दे?"और जब वह सूर्य, वह आत्मा उसके माथे पर प्रतिष्टित हो गयी तो अकस्मात्   वह सूर्या -जो विपरीत दिशाओं में भटकती घुमती थी-अपनी आत्मा पा गयी.अब मै उससे  कह रहा हूँ -सुनो सूर्या ,जो हमारी आत्मा है वही जगत कि आत्मा है जो सत्य हम पाते हैं वह सबका है ! आओ (जो आजतक समस्त संसार के ज्ञान विज्ञानं,दर्शन ,धर्म ने खोजा है उस खोज के मूल में हम अपने प्यार अपनी आत्मा ,अपने सत्य  को पहचाने !यह हमारे चरम डुबान कि ,हमारे मोतियों कि हमारी तित्ती नशीली खुशबु कि उद्दात सार्थकता है )जिसे हम पहचाने !"
आधुनिकता और आधुनिक युग के बारे में बहुत सी बातें तुमने जानी और सुनी हैं और आगे जोनोगी पर एक बात यह जननी सबसे जरुरी  है राज !कि आधुनिक  युग कि सबसे बड़ी tragedy यह है कि उसका अधिकांश ज्ञान -विज्ञानं केंद्र्च्युत है .उसका सूर्य उसकी आत्मा खो गयी है फलस्वरूप उसकी अजब-सी गति है ,जैसे धुरी से उतरा हुआ पहिया होता है न ...तेजी से चलता है ,पर हर क्षण उसकी गति ,दिशा भ्रष्ट   होती चली जाती है ,इस युग का सारा ज्ञान विज्ञानं मानों अपने केंद्र सूर्य से रहित होकर छिटक गया है या तो निरुदेश्य भटक रहा है या एक विज्ञान दुसरे विज्ञान से टकरा कर चूर चूर हो गया है .साहित्यकारों ने चिंतकों ने बार बार इसे पहचाना --तुमने कभी W.B .yeats का नाम सुना है?जिसने टैगोर  को नोबल प्राईज़   दिलाने में मदद कि थी उनकी कुछ महत्वपूर्ण पंक्तियाँ ...

 "Things fall apart;The centre can not hold,

mere anarchy is loosened upon the world,

The blood drainnedtide is loosened everywhere,

The ceromony of innocence is drowned,

The best lack all conviction,

while the wrost,are full of passionate intensity...

we are closed in ,and the key is thrown,

on our uncertainity....

 
अथार्त -सब वस्तुएं छिटक रही हैं.केंद्र उन सबको  होल्ड नहीं कर पा रहा है.सारे जगत पर अनियम ,अव्यवस्था छा गयी है .खुनी लहरें ज्वार पर हैं और निष्छलता  डूब रही है,श्रेष्ट लोग आस्थाहीन हो रहे हैं और नीच लोग उत्तेजित हैं ,हम कटघरे में जैसे बंद हो गए हैं ,अनिश्चय में छोड़ दीये गए हैं और कपाट बंद हो गया है ......

Tuesday, February 22, 2011

जोगीरा सा रा रा रा ...

 ना बच्चे ना बेंच  
"ना-पट्टी ना शौचालय
ऐसा है देश का प्राथमिक विद्यालय
होए जोगीरा सा रा रा रा...
.
"मध्यान भोजन!!
लाभकारी आयोजन
शिक्षा से दूरी सौ योजन 
होए जोगीरा सा रा रा रा...
.
"देश कि प्रगति दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ी है
महंगाई कि समस्या
मुह बाए खड़ी है
होए जोगीरा सा रा रा रा
.
"मेल ,मुहब्बत सादगी
 मस्ती धूम धमाल
सारे जेवर लुट गए गाँव हुआ कंगाल 
होय जोगीरा सा रा रा रा ....... 
.
कौवा भी बोल रहा कोयल कि बोली
हंसों पर हावी है बगुलों  कि टोली
नेताओं और चोरों का एक सा अंदाज़
होए जोगीरा सा रा रा रा
.
उत्तर प्रदेश में
अँधेरा छाया है
क्या करे माया का साया है ...:)
होय जोगीरा सा रा रा रा
.
अन्धो के इल्जास में गूंगों पर अभियोग
और फैसला लिख रहे ,बिना कान के लोग 
होय जोगीरा सा रा रा रा ...
~~~S-ROZ ~~~
 

Monday, February 21, 2011

"सूरज का दर्द"

‎"सुनो! उस दिन तुमने कहा था ना !
मै सूरज हूँ, मुझे रात के दर्द का इल्म नहीं
किसी रोज़ 'रात' के छत पे आके देख!!
सच कहा था,पर क्या तुम्हे पता है?
रात के दर्द को चांदनी सहलाती तो है
मै तो खुद कि तपिश में जलती हूँ
मेरे जख्म तो कभी सूखते ही नहीं
किसी रोज़ मेरे जख्म आके देख !!
~~~S-ROZ ~~~

 

Friday, February 11, 2011

"तहरीर "

"सभी सिली तीलियाँ लिए बैठे है ..
इंतज़ार में  उस तेज़  धूप कि किरण का
 जो चली है मिस्र से अभी "
~~~S-ROZ~~~
 
फिर चुके दिन तानाशाहों के, आवाम को इतना मजलूम न कहिये
पर .......
जम्हूरियत में भी जीने को तरसते लोग,उसकी सूरत को क्या कहिये?
~~~S-ROZ~~~
 
"देखना बाँध उनके सब्र का ना बह चले
जो छेड़ा जिक्र रोटी का फाकाकशों के सामने"
~~~S-ROZ~~~
 
"रुकते नही अब हम सड़कों के हादसे देख
जम सा गया है मेरा ज़मीर भी कुछ
सड़क पर जमे उस खूँ की तरह "
~~~S-ROZ~~~
 
"काश के फिर चले वो हवाएं पूरब की,
वो सोंधी खुशबु जो आती थी हर एक गाँव से
अब तो डर है के मिट ना जाए,
हमारी तहज़ीब-ओ-तमद्दुन पश्चमी हवाओं के दबाव से"
~~~S-ROZ ~~~
...तहज़ीब-ओ-तमद्दुन =सभ्यता एवं संस्कृति

Thursday, February 10, 2011

"ज़िन्दगी "

"उससे मैंने पूछा..
कौन तू ? क्यूँ है तू ? 
उसने कहा, मै,तेरी ज़िन्दगी
कल बताउंगी  क्यूँ हूँ  मैं
 उस कल के इंतज़ार में 
बीत गए  कल परसों 
और फिर बरसो
लेकिन वो न आई
शायद वो कल आये
बताने कि वो क्यूँ है?"
~~~S-ROZ~~~

Friday, February 4, 2011

"बसंत बहार "

"मौसमों  की मंडी से, दो ही रुत, मुझे मोल मिले 
गिरते पत्तों वाला पतझड़,और पियराती बसंत  बहार
पतझड़, के  सूखे पत्ते मेरे जैसे,  वो मै रख लूंगी
बासंती पवन सुहाना, तेरे जैसा, वो तुम रख लेना"
~~~S-ROZ~~~ 
 
 
 
 
 
 
 

Tuesday, February 1, 2011

"ज़ज्बात "

मंजिल की जुस्तजू में ....
मेरी जिंदगी इक मुसलसल सफ़र है .....
जो मंजिल पे पहुचूँ तो मंजिल ही चल दे ....."
~~~S-ROZ
****************************************************
"स्याह रातों में पोछे है इसने मेरे आंसू
सिरहाने लगकर खड़ी थी जो दीवार ,
संगे मरमर के ताज से भी हसीं है ये
अपने घर की वो पुरानी खुरदरी दीवार ,
मगर,दिल में न खड़ी करना यारों इसे
...फिर आंगन में भी ये खड़ी करेगी दिवार",
~~~S-ROZ ~~~
*******************************************************
अजब हाल है दोस्तों!!!,
नेकी का तो अब वो जमाना ही न रहा
हम चुन रहे थे उनके, ढहे घर के टुकडे सहेजकर
वो देखते हमें भाग चले, हाथ मेरे 'पत्थर' देखकर" `
~~~S-ROZ ~~~;-)
*************************************************
"बरकत क्या कम हुई मेरे घर की
गमले में क़ैद बोनसाई मुस्कुरा उठी"
~~~S-ROZ~~~
************************************************
"हम दोनों  रहे अपने 'अना' के कैदी
खामिया किसी में भी ना 'कम' थी
बिछड़ते  वक़्त दिल बहुत भारी था मेरा 
और तुम्हारी आँख भी  तो कुछ 'नम' थी"  
~~~S-ROZ ~~~