अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, November 17, 2010

जीवन का गणित "

"गणित,जोड़ घटा गुणा ,भाग
बचपन में स्लेट से लेकर पन्नों तक
गणित के सवाल कठिन लगते थे,
पर मास्टर की छड़ी के डर से हल हो जाते,
.
गणित, अब जीवन का
जोड़+ निज सुख को औरों के सुख से
घटा -दुःख को औरों के दुःख से
गुणा* प्रेम का विश्वास से,
भाग% इर्ष्या का द्वेष से
कोई कठिन काम नहीं पर
हम हल करना ही नहीं चाहते
इस बात से अनभिग्य की
उसकी अदृश्य 'छड़ी' कब चल जाय"

3 comments:

  1. अपने गणित के सूत्र से जीवन को अच्छा समझाया है | इसी शीर्षक से मेरी एक रचना भी है

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  2. बहन सरोज सिंह जी जीवन के गणित का आपने न्य अंदाज़ बनाया हे बहन जी तबियत खुस हो गयी नई चीज़ सिखने को मिली हे मुबारक हो . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान my blo akhtarkhanakela.blogspot he

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  3. सरोज जी,

    वाह....जीवन को नए गणित के सूत्र में बाँध दिया है आपने....बहुत खूब...

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