बरसा तो खूब जम कर शब भर पानी
फिर भी तिश्नगी लब पर छोड़ गया है
गुल पत्ते बूटे शाख शजर हैरां हैरां से
ये कौन हमें बे मौसम झिंझोड़ गया है
बिछड़े पत्ते फिर न बैठ पायेंगे शाखों पे
ठीकरा इसका गैरों के सर फोड़ गया है
दिल के गर्द-ओ-गुबार यूँ उड़ते नहीं देखे
गोया कारवां भी रुख अपना मोड़ गया है
s-roz
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 जून 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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Deleteवाह वाह, बहुत सुन्दर. बिछड़े पत्ते फिर से बैठ जाएँ शाखों पर उसी तरह टूटे रिश्ते जुड़ जाएँ तो जिंदगी हसीन हो जाए. बेहतरीन
ReplyDeleteआभार मनोज जी
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