अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, June 27, 2016

ग़ज़ल

बरसा तो खूब जम कर शब भर पानी
फिर भी तिश्नगी लब पर छोड़ गया है

गुल पत्ते बूटे शाख शजर हैरां हैरां से
ये कौन हमें बे मौसम झिंझोड़ गया है

बिछड़े पत्ते फिर न बैठ पायेंगे शाखों पे
ठीकरा इसका गैरों के सर फोड़ गया है 

दिल के गर्द-ओ-गुबार यूँ उड़ते नहीं देखे
गोया कारवां भी रुख अपना मोड़ गया है
s-roz

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 जून 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. वाह वाह, बहुत सुन्दर. बिछड़े पत्ते फिर से बैठ जाएँ शाखों पर उसी तरह टूटे रिश्ते जुड़ जाएँ तो जिंदगी हसीन हो जाए. बेहतरीन

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    1. आभार मनोज जी

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