घाट की चढ़ती सीढ़ी तेरी, तुझे आसमां दिखलाए है
उतरती सीढ़ी मेरी जो पानी में आसमां झलकाए है
यहीं हमारा ठौर-ठिकाना, अब यही हमारी दुनिया है
पिंजरे की चिड़िया दूजे को हरपल यही समझाए है
कूड़े के कचरे में लिपटी, अधमरी, नंगी, भूखी बच्ची
रो रो कर जाने वो किसको अपनी फरियाद सुनाए है
रखना बंद वरना बिगड़ जायेंगी घर की सभी तहजीबें ...
खुली खिड़कियों से बंद दरवाज़ा अक्सर ये बतलाये है
जो तू मेरी ना बनी, तो किसी और की भी ना बनेगी
आज का मजनू roz तेज़ाब लिए लैला को धमकाए है !!
~s-roz~
उतरती सीढ़ी मेरी जो पानी में आसमां झलकाए है
यहीं हमारा ठौर-ठिकाना, अब यही हमारी दुनिया है
पिंजरे की चिड़िया दूजे को हरपल यही समझाए है
कूड़े के कचरे में लिपटी, अधमरी, नंगी, भूखी बच्ची
रो रो कर जाने वो किसको अपनी फरियाद सुनाए है
रखना बंद वरना बिगड़ जायेंगी घर की सभी तहजीबें ...
खुली खिड़कियों से बंद दरवाज़ा अक्सर ये बतलाये है
जो तू मेरी ना बनी, तो किसी और की भी ना बनेगी
आज का मजनू roz तेज़ाब लिए लैला को धमकाए है !!
~s-roz~
"आज का मंजनू तेज़ाब लिए लैला को धमकाए है"
ReplyDeleteसादर आभार आपका राकेश जी .नवरात्रि और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11-10-2013) को " चिट़ठी मेरे नाम की (चर्चा -1395)
ReplyDelete" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
नवरात्रि और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें
सादर आभार राजेन्द्र जी ,नवरात्रि और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें आपको भी
Deleteयहीं हमारा ठौर-ठिकाना, अब यही हमारी दुनिया है
ReplyDeleteपिंजरे की चिड़िया दूजे को हरपल यही समझाए है ...
दिल को छूता है ये शेर ... लाजवाब ...
सादर आभार आपका दिगंबर जी ..
ReplyDeleteआभार सुषमा जी ,
ReplyDeleteबहुत खूब ....
ReplyDeleteसुरS
mankamirror.blogspot.in
सादर आभार सुरेश जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया रश्मि
Deleteबहुत सुंदर गजल |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
बहुत बहुत शुक्रिया प्रदीप जी
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