शहरों की भीड़
भीड़ भरी सड़कें
सिमट कर चलते लोग
मंजिल की होड़ में औरों को
तेजी से,पीछे छोड़ते लोग
नज़रें बगल नहीं देखती
और नहीं, ज़मीं देखती हैं
फलक का चमकता सितारा
है मंजिल सभी का
उसी भीड़ के,
हम भी एक हिस्से थे
कुछ दूर ही चल पाए थे
तभी ज़मीर ने झकझोरा
ये किसके ऊपर चल रहे हो ?
जरा देखो तो,
किसको कुचल रहे हो ?
नज़रें ज्यों ही झुकाईं
तो देखा,हम जिस्मों पर चल रहे हैं
सर-ए-राह को मक़तल कर रहे हैं
इक पल को हम,
ये अभी सोच ही रहे थे
अचानक पीछे से तेज़ झोंका आया
और, अगले ही पल
हमने खुद को मंज़िल पे पाया
इस जीत की ख़ुशी हम मनाते
के तभी नजर, आती हुई भीड़ के क़दमों पर गयी
देखा के उन जिस्मों में
मेरा जिस्म भी कुचला जा रहा है
जो रुका नहीं तेज है,
वही बच के चला आ रहा है
अफ़सोस हमें रुकने का नहीं है
पर यूँ मज़िल पर पहुंचना क्या सही है ?
भीड़ तो चीटियों की भी होती है
पर वो क़तार बांध चलती है
"कुचलो या कुचले जाओगे "
ये फलसफा आलिम इंसानों ने बनाए हैं !!
~S-roz~
भीड़ भरी सड़कें
सिमट कर चलते लोग
मंजिल की होड़ में औरों को
तेजी से,पीछे छोड़ते लोग
नज़रें बगल नहीं देखती
और नहीं, ज़मीं देखती हैं
फलक का चमकता सितारा
है मंजिल सभी का
उसी भीड़ के,
हम भी एक हिस्से थे
कुछ दूर ही चल पाए थे
तभी ज़मीर ने झकझोरा
ये किसके ऊपर चल रहे हो ?
जरा देखो तो,
किसको कुचल रहे हो ?
नज़रें ज्यों ही झुकाईं
तो देखा,हम जिस्मों पर चल रहे हैं
सर-ए-राह को मक़तल कर रहे हैं
इक पल को हम,
ये अभी सोच ही रहे थे
अचानक पीछे से तेज़ झोंका आया
और, अगले ही पल
हमने खुद को मंज़िल पे पाया
इस जीत की ख़ुशी हम मनाते
के तभी नजर, आती हुई भीड़ के क़दमों पर गयी
देखा के उन जिस्मों में
मेरा जिस्म भी कुचला जा रहा है
जो रुका नहीं तेज है,
वही बच के चला आ रहा है
अफ़सोस हमें रुकने का नहीं है
पर यूँ मज़िल पर पहुंचना क्या सही है ?
भीड़ तो चीटियों की भी होती है
पर वो क़तार बांध चलती है
"कुचलो या कुचले जाओगे "
ये फलसफा आलिम इंसानों ने बनाए हैं !!
~S-roz~
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [08.07.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1300 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
सरिता .इस चर्चा के लिए मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ !
Deleteविचारणीय .... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय संगीता जी, आपके स्नेह एवं मार्गदर्शन की आभारी हूँ
Deletebahut khub
ReplyDeleteआभार पूनम जी !!
Deleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार संजय जी ,
Deleteबहुत अच्छी और सार्थक रचना....
ReplyDeleteअनु
सादर आभार अनु जी !!
Delete"बेशक जुरुरी हो गया है खंजर निकालिए,हौश्लों को धर दे कुछ आजमाईये " बेहतरीन
ReplyDeleteअजीज़ जौनपुरी जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको .
ReplyDeleteसादर आभार मदन मोहन जी !
Deleteसुंदर भावपूर्ण और गंभीर प्रस्तुति. सार्थक लेखन के लिए बधाई.
ReplyDeleteसादर आभार रचना जी !
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete