"रिश्तों के मैले कपडे आजकल
अना की वाशिंग मशीन में धुलते हैं
जो साफ तो हो जातें हैं
पर कुछ चक़त्ते रह जाते हैं
जिन्हें "सब्र हाथों" से ही रगड़कर
साफ करना होता है
मशीन से धुले कपड़ों में,
शिकवे ,शिकायतों की
शिकनें भी बहुत पड़तीं है
जो शिद्दत की हलकी इस्त्री से
मिटती भी नहीं .....
बहरहाल ...........
दिल की तसल्ली को
कपडे बदल भी दें
मगर रिश्तों को कैसे ........?
~~~S -ROZ ~~~
बिल्कुल सही कहा।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ..नए बिम्ब प्रयोग किये हैं
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
वंदना जी .संगीता जी ,यशवंत जी आपकी प्रतिक्रिया एवं सराहना महत्वपूर्ण है आभार !!
ReplyDeleteनया बिम्ब...सुन्दर कविता !!
ReplyDeleteरिश्तो का कटु सत्य.....
ReplyDeleteनिधि एवं सुषमा जी .......ह्रदय से आभार आप दोनों का
ReplyDeleteक्या बात है जी ........
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव लिए कविता |वैसे आज कल रिश्ते भी कपड़ों की तरह ही बदलते रहते हैं |
ReplyDeleteआशा
नवीन विम्बों की नज़र से रिश्तों को देखती सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteरिश्तों में दाग अच्छे नहीं होते....
ReplyDeleteरिश्तों के इन कपड़ों को सहेजना वाकई बहुत मुश्किल होता जा रहा है ! कोई न कोई दाग या शिकन रह ही जाती है जिसे मिटाना नामुमकिन हो जाता है ! बहुत ही सुन्दर रचना ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया !
ReplyDeleteअदभुत रचना ! बधाई
बहुत सुन्दर, हटकर....सशक्त अभिव्यक्ति !
ReplyDeletesundar rachna..
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