अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, April 21, 2014

नेह के नीले एकांत में

नेह के नीले एकांत में
तुम, मुझसे विमुख
किन्तु......
तुम्हारा मौन 
मेरे सन्मुख
रच देता है 
स्नेह की परिभाषा
इस नेह को निहारता सूरज 
समेट लेता है
अपनी तीक्ष्ण किरणें

और तुम .......
बादलों के कान में
धीरे से कुछ कह कर
बन जाते हो आकाश
के तभी बूंदे बरसने लगतीं हैं
और मैं मिटटी सी गल कर 
बन जाती हूँ धरती।
.
बिन मौसम बरसात की बूंदे यूँ ही नहीं बरसती ......

s-roz

7 comments:

  1. वाह!! खूबसूरत !!

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    1. हर्दिक आभार अभी जी

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  2. धरती और आकाश की बढ़िया तुलना की है...

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  3. हार्दिक आभार Vanbhatt ji

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  4. हार्दिक आभार Vanbhatt जी

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  5. और मैं मिटटी सी गल कर
    बन जाती हूँ धरती।

    एक बहुत ही सवेदनशील कवयित्री को मेरा सलाम...भावपुर्ण कविता

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