अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, November 29, 2010

"प्रिय!! आज तुम्हारा जन्मदिन "

प्रिय!! आज तुम्हारा जन्मदिन
क्या दूँ मैं तुम्हे 'उपहार' ?
बहुमूल्य ना सही ,हो सबसे भिन्न
एक क्षण विशेष को कैसे सजा दूं
लगे तुम्हे हर दिन जैसे 'त्यौहार'
तुम्हारे 'ह्रदय' में एक साज़ बजा दूं
 जो बजता रहे,सुमधुर,संबंधों  का,
अदभुद  ,सुर्गम्य ,सरगम  'संसार  '
हमारे 'हृदय' के,पुराने होते रंगों,
को रंग दूँ इन्द्रधनुषी प्यार और विश्वास के
रंगों से जिससे आ जाये संबंधों में नया'निखार'
"तुम्हारे जनम दिन में यही है मेरा 'उपहार "

2 comments:

  1. हाँ ! यही उपहार सबसे भिन्न होगा

    ReplyDelete
  2. सरोज जी,

    आपके प्रिय को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें.....कविता रुपी ये उपहार बहुत बहुमूल्य है क्योंकि इसमें आपके सच्चे उद्गगार भरे हैं|

    ReplyDelete