नहीं बतातीं अब कुछ, रौनकें बाज़ारों की
पुलिस की गश्त देती है ख़बर त्योहारों की
जरा सी बारिश शहर को दरिया बना देती है
कारें बेच डालो सख्त जरुरत है पतवारों की
दरवाज़े पर दस्तक अब अच्छी नहीं लगती
फ़िक्र बड़ी रहती है मगर फेसबुकी यारों की
माईक,मेज़ें,कुर्सियों का,है तज़ुर्बा बहुत इन्हें
लड़े ये सीमा पर,ज़रूरत क्या हथियारों की
लिव इन रिलेशनशिप की बेबाक़ ज़िन्दगी ने
हिलाकर रख दी है नींव भरे-पुरे परिवारों की
पैदल मुमकिन है,दिल्ली कोई दूर नहीं roz
मंज़िल पाने को तरसती है कारें क़तारों की
~s-roz~
पुलिस की गश्त देती है ख़बर त्योहारों की
जरा सी बारिश शहर को दरिया बना देती है
कारें बेच डालो सख्त जरुरत है पतवारों की
दरवाज़े पर दस्तक अब अच्छी नहीं लगती
फ़िक्र बड़ी रहती है मगर फेसबुकी यारों की
माईक,मेज़ें,कुर्सियों का,है तज़ुर्बा बहुत इन्हें
लड़े ये सीमा पर,ज़रूरत क्या हथियारों की
लिव इन रिलेशनशिप की बेबाक़ ज़िन्दगी ने
हिलाकर रख दी है नींव भरे-पुरे परिवारों की
पैदल मुमकिन है,दिल्ली कोई दूर नहीं roz
मंज़िल पाने को तरसती है कारें क़तारों की
~s-roz~
बहुत सुन्दर रचना ,
ReplyDeleteसादर आभार दर्शन जी
Deleteबहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुती, आभार
ReplyDeleteसादर आभार राजेंद्र जी
Deleteसुन्दर प्रस्तुति की बधाई !
ReplyDeleteसादर आभार दुर्गा प्रसाद जी
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