अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, June 6, 2011

"राम राज्य' "

‎"तब का दौर और था ,
एक 'राम' ही काफी थे
'राम राज्य' लाने को
अब के दौर और है ,
एक 'राम' काफी नहीं
राम राज्य दोहराने को"
~~~S-ROZ~~~

4 comments:

  1. अब रावण भी अधिक है अच्छी सोंच बधाई

    ReplyDelete
  2. बिलकुल सही

    ReplyDelete
  3. प्रिय मित्रों !! आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन का आभार!!

    ReplyDelete