"महाभारत" के....
उस अंधे युग सा
आज के .....
इस अंधे युग का
तंत्र भी "संजय" सदृश है
दिव्य दृष्टि से पूर्ण ....
पर निष्क्रीय !निरपेक्ष !
न मार पाने में सक्षम!
न बचा पाने में सक्षम!
कर्म से पृथक !
क्रमश खोता जा रहा.
अर्थ अपने अस्तित्व का !
~~~S-ROZ ~~~
उस अंधे युग सा
आज के .....
इस अंधे युग का
तंत्र भी "संजय" सदृश है
दिव्य दृष्टि से पूर्ण ....
पर निष्क्रीय !निरपेक्ष !
न मार पाने में सक्षम!
न बचा पाने में सक्षम!
कर्म से पृथक !
क्रमश खोता जा रहा.
अर्थ अपने अस्तित्व का !
~~~S-ROZ ~~~
आपकी हर कविता पढ़ते ही बनती है ............बहुत सुन्दर लिखा है आपने
ReplyDeleteगूढ़ अर्थ समेटे हुए रचना ........
ReplyDeleteसही कहा आज का तंत्र भी संजय सदृश है ...
ReplyDeleteसंजय भास्कर जी//निधि जी/ सुनील जी आप सभी की उत्साहित करती अनमोल टिप्पणियां मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं ....आप सभी का ह्रदय से आभार !!!!
ReplyDelete