मेरी बेपनाह परस्तिश 
गढ़ने लगी है अब
ऊँची दर ऊँची
शीशे की इबादतगाह
जहाँ न कोई बुत है
न कोई मौलवी..... न कोई पंडित
सिर्फ औ सिर्फ ...'हम' और 'तुम'
जिनकी दीवारों,छत,खिडकियों से आर-पार
मैं तुम्हे औ तुम मुझे शफ्फाफ देख पाओ
हमारे दरमियां कोई राज़ न रहे
जो कभी गुम भी हो जाओ
तो मैं.... तुम्हे
बंद आँखों की रौशनी में भी ढूंढ लूं
गोया इस बात से बेखबर
कि हक़ीकत की आंधी में
ऊँची इमारतें खतरे में रहती हैं
किसी रोज ऐसा होने पर
ज़मीं पे बिखरी मुक़द्दस कीरचें
जिन्हें बुहारना लाज़िम नहीं
उन्हें जब उँगलियों से चुनती हूँ
तो उन पोरों पर रिस आतीं है तमाम बूँदें
जो ज़मीं पे टपके ....उसके पहले ही
मेरे लब..... उसे चूम कर सोख लेते हैं
जो भीतर कहीं गहरे जाकर
रौशनाई बन ...
रूह कि सतह पर
आयतें बन उभर आती हैं ..................!!!!!!!!
~S-roz~
शफ्फाफ=clear
रौशनाई = ink
परस्तिश=worship
आयत =holy sentence or mark
  
गढ़ने लगी है अब
ऊँची दर ऊँची
शीशे की इबादतगाह
जहाँ न कोई बुत है
न कोई मौलवी..... न कोई पंडित
सिर्फ औ सिर्फ ...'हम' और 'तुम'
जिनकी दीवारों,छत,खिडकियों से आर-पार
मैं तुम्हे औ तुम मुझे शफ्फाफ देख पाओ
हमारे दरमियां कोई राज़ न रहे
जो कभी गुम भी हो जाओ
तो मैं.... तुम्हे
बंद आँखों की रौशनी में भी ढूंढ लूं
गोया इस बात से बेखबर
कि हक़ीकत की आंधी में
ऊँची इमारतें खतरे में रहती हैं
किसी रोज ऐसा होने पर
ज़मीं पे बिखरी मुक़द्दस कीरचें
जिन्हें बुहारना लाज़िम नहीं
उन्हें जब उँगलियों से चुनती हूँ
तो उन पोरों पर रिस आतीं है तमाम बूँदें
जो ज़मीं पे टपके ....उसके पहले ही
मेरे लब..... उसे चूम कर सोख लेते हैं
जो भीतर कहीं गहरे जाकर
रौशनाई बन ...
रूह कि सतह पर
आयतें बन उभर आती हैं ..................!!!!!!!!
~S-roz~
शफ्फाफ=clear
रौशनाई = ink
परस्तिश=worship
आयत =holy sentence or mark
 
 
bahut sundar
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Deleteहार्दिक आभार।
Deleteहार्दिक आभार।
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