बोतलों में क़ैद
वो हसीं, दिलक़श, माशुक़ा
जब क़तरा-क़तरा
दीवाने की हलक़ से
ज़ेहन में उतरती है तो
इक धड़कते जिस्म की
खुशबु औ नर्म लम्स पाकर
बन जाती वैम्पायर
नशे की नुकीले दांतों से
तिल-तिल काटती है
उसकी सोच, उसका विश्वास
फिर उसकी देह, फिर मांस
कर देती है उसे अपनों से जुदा
गिरवी रख देती है उसकी हर सांस
तहज़ीब पर लगा देती है पहरे
उसकी तिलस्मी खूबसूरती का वो
इस क़दर दीवाना हो जाता है, के
अपनी दुनिया, अपने लोग
उसे ज़हालत लगने लगते है
वो रोज़ अपनी हदें बनता है
वो रोज़ उसकी हदें तोड़ देती है
और जब किसी रोज़ वो
हक़ीकत के आईने में
उसके असली चेहरे से वाकिफ़ होता है
तब वो चाहकर भी खुद को
उसके चंगुल से निकल नहीं पाता
तिल-तिल उसके गलने से गलने लगते हैं उसके अपने भी .................!!
~स-रोज़~...
" नशा शौक़ तक रहे तो बेहतर वरना ये ज़िन्दगी कब SUCK करने लगती है इसका इल्म होने तक शायद देर हो चुकी होती है "
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