डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Wednesday, March 30, 2011
"हमारी निगाहें "
अंदाज़ हम दोनों के देखने का था कितना मुख्तलिफ थी हमारी निगाहें एक ही शजर पर तुम थे देखते उसकी, सरसब्ज़ झूमती शाखें और मेरी नज़र थी, उस खोखली होती जड़ पर" ~~~S-ROZ ~~~
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा. यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं. मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
सरोज जी,
ReplyDeleteपहले तो तस्वीर बहुत अच्छी लगी......फिर 'नज़रिए' का फर्क है अच्छा या बुरा तो कुछ भी नहीं सब नज़रिए पर निर्भर है.....प्रशंसनीय |
सुन्दर,अति सुन्दर !
ReplyDeleteचंद पंक्तियों में ही सागर से भी गहरे भाव का अहसास करा दिया !
आभार !
अत्यंत भावपूर्ण रचना है .........सरोज जी,
ReplyDeletebahut khub!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
ReplyDeleteयहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
hausalaafzaai ka bahut bahut shukriya doston!!
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