अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, April 20, 2011

"उम्मीद भरा इक हाथ रहे "

"लोगों की भीड़ सब ओर है
हर तरफ हो रहा शोर है
बाहर बेगानों के मेले है
अंदर हम कितने अकेले हैं"
"कुछ दिनों  पहले "बहल बहनों"(noida) के बारे में सुना और पढ़ा जिन्होंने  अपनों के गम में ६ महीनो से खुद को घर में बंद कर उसे कब्रगाह बना लिया और पड़ोसियों को इल्म नहीं .....क्या सच ,हम सभी की संवेदनाये.अपनापन,भाईचारा सब शेष हो चुका  हैं ???ऐसा आगे ना हो इसलिए
आइये हम सभी हर दिल के दरवाजे पर दस्तक दे ताकि ...
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"घरों में  खुद को, यु ना कोई क़ैद करे
अपनों के गम में तिल तिल ना कोई  मरे  
इस जहाँ में सबको  साथ की आस रहे ,
मेरा अपना है कोई, ऐसा विश्वास रहे
हर हाथ के पास उम्मीद भरा  इक  हाथ रहे
~~~S-ROZ ~~~ 
 
 

6 comments:

  1. एक सन्देश देती हुई, एक जरुरी पोस्ट अच्छी लगी ,बधाई,
    (वर्ड वरिफिकेसन हटा दें तो अच्छा रहेगा )

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  2. rishton mein aas jagati apki ye paktiyaan ... bahut hi sarthak sandesh deti hui ...

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  3. सन्देश देती पोस्ट .......

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  4. सरोज जी,

    बहुत खुबसूरत अशार सजा दिए हैं आपने इस पोस्ट में....आपके जज्बे को सलाम....

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  5. मित्रों !! आप सभी प्रबुद्ध जनों को इस कविता की भावना को समझने के लिए
    धन्यवाद... आपलोगों ने जिस विश्लेषण के साथ अपनी प्रतिक्रिया दी वो सराहनीय है ....आभार !!

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  6. आपके ब्लोग का अनुसरण किया, आज देखा कई प्रविष्टियों को ..अच्छा लगा।
    यह घटना आज तक मुझे सोचने पर विवश किये रहती है, इन दो बहनों से एक शायद गुजर गयी, भाई को पता भी नहीं था कुछ..अजीब है दुनिया !! सगे भी बेगाने !

    जो कहना चाह रहा था, यहाँ कहना ज्यादा मुफीद होगा कि घटना को थोड़ा और वितार देना चाहिये, और मनो-वैज्ञानिक अक्ष को देखना चाहिये, इससे और निखार आयेगा। हम-आप सभी का आनंद बढ़ जायेगा!! सादर..!

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