ज़मीं इक अंधा कुआँ है
और चाँद
उसका संकरा मुहाना
रौशनी की मुन्तजिर
सभी की नज़रें हैं ऊपर
कोई है जो अपने हाथों से
ज़मीं खोद रहा है
उसे यकीं है
रौशनी यहीं से निकलेगी
यकीनन निकलेगी
ज़मीं अपने गर्भ में
अज़ल से है आग छुपाये !!!
~s-roz~
और चाँद
उसका संकरा मुहाना
रौशनी की मुन्तजिर
सभी की नज़रें हैं ऊपर
कोई है जो अपने हाथों से
ज़मीं खोद रहा है
उसे यकीं है
रौशनी यहीं से निकलेगी
यकीनन निकलेगी
ज़मीं अपने गर्भ में
अज़ल से है आग छुपाये !!!
~s-roz~
उम्दा लिखा है..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अमृता जी
Deleteबहुत ही गहरे भावों को समेटे हुए लाजबाव प्रस्तुति..
ReplyDeleteप्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति.......
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