अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, February 3, 2014

"अल्फाज़ का इक पुल "

हमारे दरमियाँ 
लम्हा दर लम्हा 
अल्फाज़ का 
इक पुल सा 
बना जाता है 
मैं इस छोर पर
किस ओर हूँ 
नहीं जानती 
मेरे लिए तो 
रोज़ अलसुबह
"सूरज"..... 
पुल के उस छोर से ही 
निकलता है !

2 comments:

  1. खुद को भी कोई जगाता है...अल्फाज़ पुल के उस पार से ही आते हैं...सुप्रभात...

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  2. सुप्रभात एवं आभार वाण भट्ट जी

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