बसंत के आगमन से ही
गाँवों में जो उठने लगती है
फगुनई बयार ...
वो उठ कर
हमारी जानिब भी आती हैं
देने संदेशा फाग की
मगर शहर की
ऊँची मीनारों से टकराकर
मायूस लौट जाती है
कंक्रीट से घिरे हम
नहीं सूंघ पाते
महुवे की मीठी सुगंध ,
आम का बौराना ,
कोयल की कूक
टेसू का सूर्ख रंग
पियारती सरसों का पीलापन
सुनहली होतीं गेहूं की बालियाँ
अब तो दीवारों पर टंगी केलेंडर
और पुलिस की गस्त
देती है इत्तिला त्योहारों की
और हम स्मृति के केनवास पर
अंकित उन छवियों को याद कर
रस्म अदायगी के तौर पर
हाथ में केमिकल गुलाल लिए
एक दूजे को लगा कर
कह लेते हैं "हेप्पी होली"
~स-रोज़~
गाँवों में जो उठने लगती है
फगुनई बयार ...
वो उठ कर
हमारी जानिब भी आती हैं
देने संदेशा फाग की
मगर शहर की
ऊँची मीनारों से टकराकर
मायूस लौट जाती है
कंक्रीट से घिरे हम
नहीं सूंघ पाते
महुवे की मीठी सुगंध ,
आम का बौराना ,
कोयल की कूक
टेसू का सूर्ख रंग
पियारती सरसों का पीलापन
सुनहली होतीं गेहूं की बालियाँ
अब तो दीवारों पर टंगी केलेंडर
और पुलिस की गस्त
देती है इत्तिला त्योहारों की
और हम स्मृति के केनवास पर
अंकित उन छवियों को याद कर
रस्म अदायगी के तौर पर
हाथ में केमिकल गुलाल लिए
एक दूजे को लगा कर
कह लेते हैं "हेप्पी होली"
~स-रोज़~
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