बसंत नाई सा
छांट रहा है
पेड़ों से ज़र्द पत्ते
टेसू नाईन सी
कुल्ल्हड़ में
घोल रही है
महावर
आम के माथे
बंध चूका है मऊर
गेंदें ने दुआर पर
सजा दी है, रंगोली
बेला-चमेली ने
इत्रदानों से
छिड़क दिया है सुगंध
कोयल,पपीहे गा रहे है
स्वागत में
मधुर गान
बंसवारी में
पवन मुग्ध मगन
छेड़ चूका है
बांसुरी की तान
फाग के इस राग़ में
मन का ढोल-मजीरा
जोह रहा हैं
उस जोगी को
जो गायेगा
अबके फागुन
"अहो जोगिनिया अईली हम छोड़ के सहरिया के नवकरिया तोहरे कारन"
जोगीरा सा रा रा रा रा !!!!
~स-रोज़~
छांट रहा है
पेड़ों से ज़र्द पत्ते
टेसू नाईन सी
कुल्ल्हड़ में
घोल रही है
महावर
आम के माथे
बंध चूका है मऊर
गेंदें ने दुआर पर
सजा दी है, रंगोली
बेला-चमेली ने
इत्रदानों से
छिड़क दिया है सुगंध
कोयल,पपीहे गा रहे है
स्वागत में
मधुर गान
बंसवारी में
पवन मुग्ध मगन
छेड़ चूका है
बांसुरी की तान
फाग के इस राग़ में
मन का ढोल-मजीरा
जोह रहा हैं
उस जोगी को
जो गायेगा
अबके फागुन
"अहो जोगिनिया अईली हम छोड़ के सहरिया के नवकरिया तोहरे कारन"
जोगीरा सा रा रा रा रा !!!!
~स-रोज़~
बहुत सुन्दर लाइव टेलीकास्ट है जी ...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया उपासना जी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteहार्दिक आभार वाण भट्ट जी
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