अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, August 19, 2013

"ग़ज़ल"

नहीं बतातीं अब कुछ, रौनकें बाज़ारों की
पुलिस की गश्त देती है ख़बर त्योहारों की

जरा सी बारिश शहर को दरिया बना देती है
कारें बेच डालो सख्त जरुरत है पतवारों की

दरवाज़े पर दस्तक अब अच्छी नहीं लगती
फ़िक्र बड़ी रहती है मगर फेसबुकी यारों की

माईक,मेज़ें,कुर्सियों का,है तज़ुर्बा बहुत इन्हें  
लड़े ये सीमा पर,ज़रूरत क्या हथियारों की

लिव इन रिलेशनशिप की बेबाक़ ज़िन्दगी ने
हिलाकर रख दी है नींव भरे-पुरे परिवारों की

पैदल मुमकिन है,दिल्ली कोई दूर नहीं roz
मंज़िल पाने को तरसती है कारें क़तारों की
~s-roz~

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना ,

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    1. सादर आभार दर्शन जी

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  2. बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुती, आभार

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    1. सादर आभार राजेंद्र जी

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  3. सुन्दर प्रस्तुति की बधाई !

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  4. सादर आभार दुर्गा प्रसाद जी

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